HI/Prabhupada 0126 - यह आंदोलन केवल मेरे आध्यात्मिक गुरु की संतुष्टि के लिए शुरू किया गया था



Lecture on BG 4.18 -- Delhi, November 3, 1973

महिला भक्त: अापने कहा कि अगर हम कुछ कार्य कर रहे हैं, तो उस कार्य से क्या भगवान कृष्ण संतुष्ट हैं यह परीक्षण करना होगा। लेकिन यह परीक्षण क्या है?

प्रभुपाद: अगर आध्यात्मिक गुरु प्रसन्न हैं, तो श्री कृष्ण भी प्रसन्न हैं। तुम दैनिक गा रहे हो। यस्य प्रसादाद् भगवत्प्रसादो यस्यप्रसादान् न गति: कुतोऽपि। अगर आध्यात्मिक गुरु प्रसन्न हैं, तो श्री कृष्ण प्रसन्न हैं। यही परीक्षा है। अगर वे खुश नहीं हैं, तो हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। यह समझना बहुत आसान है। अगर कोई कार्यालय में काम कर रहा है, तो तत्काल मालिक अध्यक्ष, प्रधान क्लर्क या उस विभाग का अधीक्षक है। तो हर कोई काम कर रहा है। अगर वह अधीक्षक को संतुष्ट करता है, या प्रधान क्लर्क को, तो यह समझ लेना चाहिए कि उसने प्रबंध निदेशक को भी संतुष्ट किया है। यह बहुत मुश्किल नहीं है। तुम्हारा तत्काल मालिक, श्री कृष्ण का प्रतिनिधि, उसे संतुष्ट करना है।

यस्य प्रसादाद् भगवत्प्रसादो यस्य। इसलिए आध्यात्मिक गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। कृष्ण मार्गदर्शन करने के लिए आध्यात्मिक गुरु के रूप में आते हैं। यह चैतन्य-चरितामृत में कहा गया है। गुरु-कृष्ण-कृपाए। गुरु-कृष्ण-कृपाए। तो गुरु-कृपा, गुरु की कृपा, ही कृष्ण की कृपा है। तो जब दोनों जन संतुष्ट हों, तो हमारा रास्ता साफ है। गुरु-कृष्ण-कृपाए पाए भक्ति लता बीज (चैतन्य-चरितामृत मध्य १९.१५१)। फिर हमारी भक्तिमय सेवा एकदम सही है। तो तुमने गुरुअष्टक में इस बयान को चिह्नित नहीं किया? यस्य प्रसादाद् भगवत्प्रसादो यस्यप्रसादान् न गति: कुतो अपि।

जैसे यह आंदोलन। यह आंदोलन केवल मेरे आध्यात्मिक गुरु की संतुष्टि के लिए शुरू किया गया था। वह चाहते थे। चैतन्य महाप्रभु चाहते थे कि यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैले। तो उन्होंने मेरे कई गुरुभाईयों को आदेश दिया, और इच्छा की ... आदेश नहीं, वह चाहते थे। उन्होंने, प्रसार करने के लिए विदेशी देशों में मेरे कुछ गुरुभाइयों को भेजा, लेकिन जैसे भी हो, बहुत सफल नहीं हुँए। उन्हें वापस बुलाया गया था। तो मैंने सोचा, "मुझे इस बुढ़ापे में कोशिश करने दो।" तो एक ही इच्छा थी कि आध्यात्मिक गुरु की इच्छा पूरी करूँ। तो तुमने अब मदद की है। यह सफल होने को है। अौर यह है यस्य प्रसादाद् भगवत्प्रसादा: अगर हम वास्तव में ईमानदारी से आध्यात्मिक गुरु के निर्देशन में काम करते हैं, यही कृष्ण की संतुष्टि है, और कृष्ण हमें अागे बढने में मदद करेंगे।