HI/Prabhupada 0127 - एक महानसंस्था खो गई सनकी तरीके की वजह से



Lecture on SB 1.2.11 -- Vrndavana, October 22, 1972

तो ... मेरे गुरु महाराज कहते थे कि, "कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो; ऐसा कुछ करो कि कृष्ण तुम्हें देखना चाहें।" यह अावशयक है। अगर कृष्ण, अगर तुम कृष्ण का थोड़ा सा ध्यान आकर्षित कर सको तो, यत्कारुण्य-कटाक्ष-वैभववताम्, कटाक्ष-वैभववताम्, ..... प्रभोदानन्द सरस्वती कहते हैं, अगर किसी भी तरह से तुम कृष्ण का थोड़ा सा ध्यान आकर्षित कर सको, तो तुम्हारा जीवन सफल हो जाता है। इसके तत्काल बाद। और तुम कैसे आकर्षित कर सकते हो ? भक्त्या माम् अभिजानाति (भ गी १८.५५) बस कृष्ण की सेवा करके। सेवा करो, सेवा करो कृष्ण की, जैसे आध्यात्मिक गुरु ने आदेश दिया है। क्योंकि आध्यात्मिक गुरु श्री कृष्ण के प्रतिनिधि है। हम सीधे कृष्ण तक नहीं पहुँच सकते हैं। यस्य प्रसादाद् भगवत्प्रसाद: । अगार तुम्हारे पास प्रमाणिक आध्यात्मिक गुरु हैं, कृष्ण के प्रतिनिधि, तो यह बहुत मुश्किल नहीं है। हर कोई कृष्ण का प्रतिनिधि बन सकता है। कैसे? तुम बस किसी भी मिलावट के बिना कृष्ण के संदेश का प्रचार करो। बस।

जैसे चैतन्य महाप्रभु ने कहा, अमार अाज्ञाय गुरु हञा (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८), "तुम मेरे आदेश के तहत एक आध्यात्मिक गुरु बनो।" तो अगर तुम चैतन्य महाप्रभु, श्री कृष्ण के आदेश का पालन करते हो, तो तुम गुरु बन जाते हो। अमार अाज्ञाय गुरु हञा । दुर्भाग्य से, हम आचार्यों के आदेश का पालन करने की इच्छा नहीं रखते हैं। हम अपने ही तरीके का निर्माण करते हैं। हमें व्यावहारिक अनुभव है कि कैसे सनकी तरीकों की वजह से एक महान संस्था खो दी गई । आध्यात्मिक गुरु के आदेश का पालन किए बिना, उन्होंने कुछ निर्माण किया और सब कुछ खो गया। इसलिए विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर नें आध्यात्मिक गुरु के शब्दों पर बहुत अधिक बल दिया है। व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन (भ गी २.४१) यदि तुम आध्यात्मिक गुरु के आदेश से जुड़े रहते हो, अपनी सुविधा या असुविधा का खयाल किए बिना, तो तुम सही हो।

यस्य देवे परा भक्तिर्
यथा देवे तथा गुरौ
तस्यैते कथिता हि अर्था:
प्रकाशन्ते महात्मन:
(श्वेताश्वतर उपनिषद् ६.२३)

यह सब अधिकारियों की पुष्टि है। हमें बहुत ही ईमानदारी से कृष्ण के प्रमाणिक प्रतिनिधि के आदेश का पालन करना चाहिए। तब हमारा जीवन सफल है। तो हम कृष्ण को तत्त्व से समझ सकते हैं। वदन्ति तत् तत्त्व-विदस् तत्त्वम् (श्रीमद्भागवतम् १.२.११) । हमें तत्त्व-वित् से सुनना चाहिए, तथाकथित विद्वानों और नेताओं से नहीं। नहीं। जो सत्यता जानता है, तुम्हें उससे सुनना चाहिए। और अगर तुम उस सिद्धांत से जुड़े रहते हो, तो तुम बहुत स्पष्ट रूप से सब कुछ समझते हो।

बहुत बहुत धन्यवाद।