HI/Prabhupada 0180 - हरे कृष्ण मंत्र, निस्संक्रामक है



Lecture on SB 1.5.11 -- New Vrindaban, June 10, 1969

प्रभुपाद: विनापि पाद-चातुर्यम् भगवद-यश:-प्रधानम् वच: पवित्रम् इति अह तद वाग पवित्र इति । यह इतना शुद्ध है । क्या कहते हैं ? निस्संक्रामक । पूरा संसार माया के प्रभाव से संक्रमित है, और यह कृष्णभावनामृत आंदोलन, हरे कृष्ण मंत्र, निस्संक्रामक है। यह निश्चित है । निस्संक्रामक । तद्-वाग-विसर्गो जनताघ-विप्लव: । भगवद-यश:-प्रधानम् वच: पवित्रम इति अह तद वाग इति, स चासौ वाग-विसर्गो वच: प्रयोग: । जनानाम समुहो जनता, तस्य अघम विप्लवति नश्यति । विप्लव इसका अर्थ है यह मारता है । निस्संक्रामक है । उदाहरण के लिए, हम दे सकते हैं, अब कैसे यह कृष्णभावनामृत आंदोलन निस्संक्रामक है, जिन लोगों ने इसे गंभीरता से लिया है, वे तुरंत पापपूर्ण प्रतिक्रियाओं को रोकते हैं, चार सिद्धांत, नियामक सिद्धांत, अवैध यौन-जीवन, नशा, जुआ और मांस खाना । कैसे यह निस्संक्रामक है । इन चार सिद्धांतों से पापकार्य बढ़ जाते हैं । अन्य सभी पाप गतिविधियाँ एक के बाद एक, एक के बाद एक आ जाती हैं । चोरी, फिर धोखा, फिर ... कई अन्य चीजें अाएँगी जब हम इन चार सिद्धांतों का पालन करते हैं । और यदि हम यह चार सिद्धांत रोकते हैं, तो अौर पाप कार्य करने का स्विच बंद हो जाता है । आपको यह पता होना चाहिए । और यह कैसे बनाए रखा जा सकता है ?

यह निस्संक्रामक विधि द्वारा, हरे कृष्ण जप । अन्यथा, यह नहीं होगा, केवल सैद्धांतिक ज्ञान से काम नहीं चलेगा । तो यह निस्संक्रामक है, वास्तव में । जनताघ-विप्लव: । यह उस व्यक्ति के आगे की पापपूर्ण गतिविधियों को बंद कर देता है । अगर हम वह ज़ारी रखते हैं, "ठीक है, मुझे एक निस्संक्रामक विधि मिल गई है, हरे कृष्ण जप । इसलिए मैं यह चार पाप करता रहुँगा और मैं (निस् )संक्रमित हो जाऊँगा । " जैसे की ईसाई चर्च में वे जाते हैं अौर स्वीकार करते हैं । यह ठीक है । स्वीकार करना निस्संक्रामक है । लेकिन आप इसे फिर से कैसे करते हैं ? इसका क्या अर्थ है ? आप चर्च जाते हैं, स्वीकार करते हैं । वह बहुत अच्छा है । अब आपकी पापपूर्ण गतिविधियाँ निष्प्रभावी हैं । यह ठीक है । लेकिन क्यों आप फिर से वही पाप करते हैं ? क्या उत्तर है ? हम्म ? यदि मैं किसी भी ईसाई सज्जन से पूछूँ तो संभव जवाब क्या होगा, किः "आप पापमय कार्य करते हैं, ठीक है, आप चर्च में प्रभु ईसा मसीह के सामने स्वीकार करते हैं, उनके प्रतिनिधि या भगवान । आपके पापकार्य निष्प्रभावी हो जाते हैं, सब माफ़ । ठीक है । लेकिन क्यों आप फिर दुबारा क्यों करते हैं ?" क्या जवाब होगा ?

नर-नारायण: वे फिर से स्वीकार करेंगे ।

प्रभुपाद: वे फिर से स्वीकार करेंगे । इसका अर्थ है कि यह एक व्यवसाय बन गया है । कि "मैं करूँगा ..." यह विचार नहीं है । हमारा, इस अपरोधों की सूची में आपने ध्यान दिया है, यह अपरोधों की सूची, यह प्रतिबंध करता है कि... नाम्नो बलाद् यस्य हि पाप-बुद्धि: । इस तरह से जो कोई भी सोचता कि, "क्योंकि मुझे यह निस्संक्रामक विधि मिल गई है, इसलिए मैं पापकार्य करूँगा और मैं हरे कृष्ण मंत्र का जप करूँगा और यह निष्प्रभावी हो जाएँगे ।" तो यह सबसे बड़ा पाप है ।