HI/Prabhupada 0276 - गुरु का कार्य है कृष्ण देना, न कि भौतिक सामग्री देना



Lecture on BG 2.7 -- London, August 7, 1973

तो यह ज्ञान ज़रूरी है, प्रामाणिक गुरुको कैसे ढूंढे अौर उनके सामने आत्मसमर्पण कैसे किया जाए। गुरु का अर्थ यह नहीं कि मैं गुरु रखूं उनको आज्ञा देने के लिए | "मेरे प्रिय गुरु, मै पीडित हूँ। क्या अाप मुझे दवा देंगे? "हाँ, हाँ, यह दवा लो।" "हाँ" वैसा गुरु नहि। अगर तुम पीडित हो, तो चिकित्सक के पास जाअो। गुरु का कार्य दवा देना नही। गुरु का कार्य है तुम्हे कृष्ण देना। कृष्ण सेइ तोमार, कृष्ण दीते पार। एक वैष्णव गुरु से प्राथना करता है, " पूजनीय, अाप कृष्ण के भक्त हैं।" "अाप चाहें तो कृष्ण मुझे दे सक्ते हैं।" यह शिष्य की स्थिति है। गुरु का कार्य है कृष्ण देना, न कि भौतिक सामग्री देना। भौतिक सामग्री के लिए, बहुत सारी संस्थाए हैं। लेिकन अगर तुमहे कृष्ण चाहिए, तो गुरु आवश्यक है। कौन है, किसको गुरु आवश्यक है।

तस्माद गुरुम प्रपद्येत
जिज्ञासु श्रेय उत्तमम
शब्दे परे च निष्णातम
ब्रह्मणि उपसमाश्रयम
(श्रीमद भागवतम ११.३.२१)
गुरु किसको अावश्यक है? गुरु फ़ैशन नहि है। "अो, मेरे पास गुरु है। मैं गुरु बनाऊँगा।" गुरु मतलब, जो गंभीर है। तसमाद गुरुम प्रपद्येत । व्यक्ति को गुरु तलाशना चाहिए। क्यों? जिज्ञासु श्रेय उत्तमम। जो व्यक्ति उच्चतम की खोज मे है। गुरु को फ़ैशन न बनाएँ । जैसे हम कुत्ता पालते हैं। वैसे ही, हम गुरु रखते है। यह गुरु नही है...... "गुरु हमारे विचार के अाधीन है।" एसे नहि। गुरु का मतलब है जो तुम्हे कृष्ण दे सके।  वह है गुरु। कृष्ण सेइ तोमार।  क्योंके कृष्ण गुरु हैं। यह ब्रह्मसंहिता में वर्णित है। वेदेशु दुर्लभम अदुर्लभम अात्म-भक्तो (ब्रह्मसंहिता ५.३३)। वेदेशु दुर्लभम । अगर तुम खोजना चाहो..... यद्यपि वेद का मतलब ज्ञान है, अौर परम ज्ञान है कृष्ण को समझना। वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम (भ.गी. १५.१५)। यही है उपदेश। 

तो अगर तुम स्वतंत्र रूप से वेद पढ़ना चाहते हो, जैसे कुछ धूर्त व्यक्ति हैं.... वह कहते हैं: " हम वेद समझते हैं" तुम क्या वेद समझते हो? तुम कैसे वेद समझोगे? तो, वेद कहता है, तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) | तुम वेद समझ पाअोगे, एक किताब खरीद कर, या लेकर, तुम वेद समझ जाअीगे? वेद इतनी सस्ती चीज़ नहीं है । ब्राह्मण बने बिना, कोइ भी वेद नहीं समझ सकता, की वेद क्या है। इस लिए यह प्रतिबंधित है । ब्राह्मण बने बिना, किसी को भी वेद का अध्ययन करने की अनुमती नही। यह सब बकवास है। तुम क्या समझ पाअोगे वेद को? इसलिए व्यासदेव ने, चारों वेदों को संकलन करने के बाद, वेदों को बांट कर महाभारत संकलित किया। क्योंकि यह वेद, वेदों का विषय इतना कठिन है। स्त्री-शूद्र-द्विज-बंधुनाम त्रई न श्रुती-गोचर: (श्रीमद भागवतम १.४.२५) | स्रीयों, शूद्रों अौर द्विज- बंधु के लिए। वह वेद समझ नहि सकते हैं ।

तो यह सब धूर्त शूद्रों अौर द्विज- बंधु, वह वेद पढना चाहते हैं। नहि, यह मुमकिन नहीं । व्यक्ति को सब से पहले ब्राह्मणवादी योग्यता में स्थित होना होगा, सत्यम शमो दमस तितिक्ष्व आर्जवम ज्ञानम विज्ञानम अास्तिक्यम ब्रम्ह कर्म स्व-भाव... (भ.गी. १८.४२) | फिर वेद को छूना। अन्यथा वेद तुम्हे क्या समझ अाएगा? बकवास। इसलिए, वेद कहते हैं: तद विज्ञानार्थम स गुरुम (मुंडक उपनिषद १.२.१२) | तुम्हे गुरु का आश्रय लेना ही होगा वेद समझने के लिए। अौर वेद क्या हैं? वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम (भ.गी. १५.१५) |

वेद मतलब, वेद का अध्ययन करने का मतलब है कृष्ण को समझना। अौर उनको आत्मसमर्पण करना । यह है वेदों का ज्ञान। यहां अर्जुन कहते है कि: प्रपन्नम्। "अब मै शरणागत हुँ अापके। अब मै समानता के स्तर पर अापसे बात नहीं करुंगा, जैसे कि मुझे बहुत ज्ञान हो।" वह सही था, पर वह भौतिक दृष्टिकोण से सोच रहा था। वह सोच रहा था प्रदूश्यन्ति कुल-स्रीय: (भ.गी. १.४०) । अगर सब....यह तो भौतिक तर्क है। पर वेदों का ज्ञान तो आध्यात्मिक है, उत्तमम्। तस्माद गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु श्रेय उत्तमम (श्रीमद भागवतम ११.३.२१) | यह श्रेय। उत्तमम । यच श्रेय स्यात निश्चितम । स्थिर रहना । बदलने का तो सवाल ही नहीं । वह उपदेश, अब कृष्ण देंगे। सर्व धर्मान परित्यज्य माम एकम् शरणम् व्रज । अौर यह होता है - बहुनाम जन्मनाम अन्ते ज्ञानवान माम प्रपद्यते (भ.गी. ७.१९) । तो जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को आश्रय लेना चिहिए कृष्ण या उनके प्रतिनिधि का । फिर उसका जीवन सफल है।

अापका बहुत धन्यवाद।