HI/Prabhupada 0340 - तुम मौत के लिए नहीं बने हो, लेकिन प्रकृति तुम्हे मजबूर कर रही है



Lecture on BG 9.1 -- Melbourne, June 29, 1974

नमो महावदान्याय
कृष्ण-प्रेम-प्रदायते
कृष्णाय कृष्ण-चैतन्य-नाम्ने
गौर-त्विषे नमः
(चैतन्य चरितामृत मध्य १९.५३) ।

श्रील रूप गोस्वामी, जब वे प्रयाग में श्रीचैतन्य महाप्रभु से मिले ... एक जगह है, भारत में पवित्र जगह है, जिसे प्रयाग कहा जाता है । तो श्री चैतन्य महाप्रभु, सन्यास स्वीकार करने के बाद, वे प्रयाग और अन्य पवित्र स्थानों में गए । तो श्रील रूप गोस्वामी, वे सरकारी मंत्री थे, लेकिन उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया, और श्रीचैतन्य महाप्रभु के साथ इस हरे कृष्ण आंदोलन में शामिल हो गए । तो जब वे पहली बार मिले थे, और उन्होंने इस श्लोक को कहा, नमो महावदान्याय । वदान्याय का मतलब है "सबसे उदार" । भगवान के कई अवतार हैं, लेकिन रूप गोस्वामी ने कहा, "अब भगवान का यह अवतार, श्रीचैतन्य महाप्रभु, सबसे उदार हैं ।" नमो महा वदान्याय । क्यों उदार ? कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते: "आप कृष्ण वितरित कर रहे हैं तुरंत अपने इस संकीर्तन आंदोलन से ।"

कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल काम है । कृष्ण नें व्यक्तिगत रूप से भगवद्गीता में यह कहा है,

मनुष्याणाम सहस्रेषु
कश्चिद यतति सिद्धये
(भ.गी. ७.३)

"कई लाखो व्यक्तियों में से," इस युग में ही नहीं, अतीत में भी । मनुष्याणाम सहस्रेषु,"कई लाख व्यक्तियों में से," कश्चिद् यतति सिद्धये" कोई एक आदर्श बनने की कोशिश कर रहा है ।" आम तौर पर, वे नहीं जानते हैं कि पूर्णता क्या है । पूर्णता वे नहीं जानते । पूर्णता का मतलब है जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी की इस प्रक्रिया को रोकना । इसे पूर्णता कहा जाता है । हर कोई पूर्ण होने की कोशिश कर रहा है, लेकिन पूर्णता क्या है उन्हें पता नहीं है । पूर्णता का मतलब यह है: जब तुम इन चार खामियों से मुक्त हो जाते हो । वह क्या हैं ? जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । हर कोई । कोई भी मरना नहीं चाहता है, लेकिन ज़बरदस्ती होता है: तुम्हें मरना होगा । यही अपूर्णता है । लेकिन ये दुष्ट, वे नहीं जानते । वे सोचते हैं कि हमें मरना ही होगा । लेकिन एेसा नहीं है । क्योंकि तुम शाश्वत हो, तुम मृत्यु के लिए नहीं बने हो, लेकिन प्रकृति तुम्हें मजबूर कर रही है, मरना होगा ।