HI/Prabhupada 0406 - जो कोई भी कृष्ण का विज्ञान जानता है, वह आध्यात्मिक गुरु हो सकता है



Discourse on Lord Caitanya Play Between Srila Prabhupada and Hayagriva -- April 5-6, 1967, San Francisco

प्रभुपाद: पहला दृश्य होगा विजय नरसिंह गढ़ मंदिर की यात्रा ।

हयग्रीव: विजय ...

प्रभुपाद: विजय नरसिंह गढ़ ।

हयग्रीव: मैं अापसे बाद में इनके शब्द-विन्यास ले लूँगा ।

प्रभुपाद: मैं शब्द-विन्यास देता हूँ । वि-ज-य-न-र-सिं-ह-ग-ढ । विजया नरसिंह गढ़ मंदिर । यह आधुनिक विशाखापट्टनम के शिपयार्ड के पास है । एक बहुत बड़ा भारतीय शिपयार्ड है, विशाखापट्टनम । पूर्व में यह विशाखापट्टनम नहीं था । तो उस के पास, पांच मील दूर स्टेशन से पहाड़ी पर एक अच्छा मंदिर है । तो मुझे लगता है कि मंदिर का दृष्य हो सकता है, और चैतन्य महाप्रभु का उस मंदिर में जाना । और मंदिर के बाद, वे गोदावरी नदी के तट पर आए थे । जैसे गंगा नदी बहुत पवित्र नदी है, उसी तरह दूसरे हैं, चार अन्य नदियॉ । यमुना, गोदावरी, कृष्ण, नर्मदा । गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, और कृष्ण । इन पांच नदियों को बहुत पवित्र माना जाता है । तो वे गोदावरी के तट पर आए और उन्होंने अपना स्नान लिया, और एक पेड़ के नीचे एक अच्छी जगह पर बैठे थे, और हरे कृष्ण हरे कृष्ण का जाप कर रहे थे ।

इस दौरान उन्होंने देखा कि एक बड़ा जुलूस आ रहा था, और इस बात का परिदृश्य होना चाहिए ... उस जुलूस में ... पूर्व में राजा और राज्यपाल, वे अपने सामान के साथ गंगा में स्नान लेने के लिए जाते थे, बैंड पार्टी और कई ब्राह्मण और धर्मार्थ की सभी प्रकार की चीज़ें । इस तरह वे स्नान लेने के लिए आया करते थे । तो भगवान चैतन्य नें देखा कि कोई उस महान जुलुस में आ रहा है, और उन्हें रामानंद राय के बारे में बताया गया, मद्रास प्रांत के गवर्नर । सर्वभौम भट्टाचार्य नें उनसे अनुरोध किया कि "आप दक्षिण भारत को जा रहे हैं । आप रामानंद राय से ज़रूर मिलें । वे एक महान भक्त हैं । " तो जब वे कावेरी के तट पर बैठे हुए थे, और रामानंद राय जुलूस में आ रहे थे, वे समझ गए कि वे रामानंद राय हैं । लेकिन वे सन्यासी थे, उन्होंने उसे सम्बोधित नहीं किया । लेकिन रामानंद राय, वे एक महान भक्त थे, और एक अच्छे सन्यासी को देखा, युवा सन्यासी बैठे थे और हरे कृष्ण का जाप कर रहे थे । आम तौर पर, संन्यासी वे हरे कृष्ण मंत्र का जाप नहीं करते हैं । वे, "ओम, ओम ..." बस ओम ध्वनि । हरे कृष्ण नहीं ।

हयग्रीव: क्या मतलब है कि वे उन्हें सम्बोधित नहीं करेंगे क्योंकि वे एक सन्यासी थे ?

प्रभुपाद: संन्यासी, प्रतिबंध यह है कि सन्यासी को पैसे कमाने वाले आदमी से भीख नहीं माँगनी चाहिए या उन्हें नहीं देखना चाहिए । यह एक प्रतिबंध है । महिला एवं कमाने वाला आदमी ।

हयग्रीव: लेकिन मैंरे ख्याल से रामानंद राय एक भक्त थे ।

प्रभुपाद: लेकिन वे भक्त थे, लेकिन निस्संदेह, लेकिन बाहरी तौर पर वे एक गवर्नर थे । बाहरी तौर पर । तो चैतन्य महाप्रभु उनके पास नहीं गए, लेकिन वे समझ गए कि "यहाँ एक अच्छा सन्यासी है ।" वह नीचे आए और उसको सम्मान प्रदान किया और उनके सामने बैठ गए । और वहाँ परिचय हुआ, और भगवान चैतन्य ने कहा कि "भट्टाचार्य नें पहले से ही आप के बारे में मुझे सूचित किया है । तुम एक महान भक्त हो । तो मैं तुम्हे मिलने के लिए आया हूँ ।' और फिर उन्होंने जवाब दिया, "ठीक है, क्या भक्त? मैं एक धंधादारी आदमी हूँ, राजनीतिज्ञ । लेकिन भट्टाचार्य मेरे प्रति बहुत दयालु हैं कि उन्होंने अापसे कहा मुझसे मिलने को । तो अगर आप आए हैं, तो कृपया, कृपया मुझे इस भौतिक माया से मुक्ति दिलाईए ।" तो रामानंद राय के साथ समय की नियुक्ति हुई थी, और दोनों शाम को फिर से मिले, और चर्चा हुई, कहने का मतलब है, जीवन की आध्यात्मिक उन्नति पर । भगवान चैतन्य नें उनसे पूछताछ की और रामानंद राय ने उत्तर दिया । बेशक, वह एक लंबी कहानी है, कैसे उन्होंने सवाल उठाया और कैसे उन्होंने जवाब दिया ।

हयग्रीव: रामानंद राय ।

प्रभुपाद: हाँ ।

हयग्रीव: ठीक है, क्या यह महत्वपूर्ण है? यह उस बैठक के बारे में दृश्य है ।

प्रभुपाद: बैठक, बैठक, वह चर्चा तुम देना चाहते हो ?

हयग्रीव: अगर वह महत्वपूर्ण है तो यह दृश्य में दिखाना है । अाप चाहते हैं कि मैं चर्चा प्रस्तुत करूँ ?

प्रभुपाद: महत्वपूर्ण यह दृश्य है कि वे रामानंद राय से मिले , वे जुलूस में आए थे, यह एक अच्छा दृश्य था । ये बातें पहले ही पूरी हो चुकी हैं । अब जहॉ तक वार्तालाप का सवाल है, बात का सार था...

हयग्रीव: बस मुझे संक्षिप्त सारांश दे ।

प्रभुपाद: संक्षिप्त सारांश । इस दृश्य में चैतन्य महाप्रभु छात्र बन गए | बिलकुल छात्र नहीं । उन्होंने पूछताछ की और रामानंद राय नें जवाब दिए । तो दृश्य का महत्व यह है कि चैतन्य महाप्रभु औपचारिकता का पालन नहीं करते हैं, केवल संन्यासियों को आध्यात्मिक गुरु होना चाहिए । जो कोई भी कृष्ण का विज्ञान जानता है, वह आध्यात्मिक गुरु हो सकता है । अौर व्यावहारिक रूप से इस उदाहरण को दिखाने के लिए, हालांकि वे सन्यासी और ब्राह्मण थे, और रामानंद राय एक शूद्र और एक गृहस्थ, गृहस्थ थे । फिर भी वे एक छात्र की तरह बन गए और रामानंद राय से पूछा । रामानंद राय नें, मेरे कहने का मतलब है, झिझक महसूस किया कि, "मैं कैसे एक सन्यासी के शिक्षक का स्थान ले सकता हूँ ?" फिर चैतन्य महाप्रभु नें कहा, "नहीं, नहीं । संकोच मत करो । " उन्होंने कहा कि या तो तुम एक सन्यासी हो सकते हो या गृहस्थ हो सकते हो या एक ब्राह्मण या शूद्र हो सकते हो, कोई बात नहीं है । जो कोई भी कृष्ण का विज्ञान जानता है, वह शिक्षक की जगह ले सकता है । तो यह था उनके, मेरे कहने का मतलब है, उपहार । क्योंक भारतीय समाज में, यह माना जाता है कि केवल ब्राह्मण और सन्यासी आध्यात्मिक गुरु हो सकते हैं । लेकिन चैतन्य महाप्रभु नें कहा, "नहीं । कोई भी आध्यात्मिक गुरु बन सकता है, अगर वह विज्ञान के साथ परिचित है ।" और चर्चा का सारांश था भगवान के प्रेम की उच्चतम पूर्णता में अपने आप को कैसे उन्नत करें । और भगवान का उस प्रेम वर्णित किया गया, वह था, मेरे कहने का मतलब है, राधारानी में परम उत्कृष्ट में । तो भाव में, राधारानी के रूप में । और रामानंद राय, राधारानी की सहयोगी ललिता-सखी के रूप में, वे दोनों गले लगे और उत्साह में नृत्य करने लगे । यह दृश्य का अंत होगा । वे दोनों उत्साह में नृत्य करने लगे ।

हयग्रीव: रामानंद राय ।

प्रभुपाद: और चैतन्य महाप्रभु ।

हयग्रीव: ठीक है ।