HI/Prabhupada 0434 - धोखेबाज को नहीं सुनो और दूसरों को धोखा देने की कोशिश मत करो



Morning Walk -- May 10, 1975, Perth

प्रभुपाद: आधुनिक युग का मतलब है सब दुष्ट और मूर्ख । इसलिए हमें दुष्ट और मूर्खों का अनुसरन नहीं करना है। तुम्हे सबसे उत्तम, कृष्ण का अनुसरन करना है।

परमहंस: समस्या यह है कि हर कोई धोखा दे रह है। हर कोई कुछ ज्ञान पेश कर रहा है इसका या उसका ...

प्रभुपाद: इसलिए हमने कृष्ण को स्वीकार किया है जो धोखा नहीं देते। तुम बेईमान हो, इसलिए तुम धोखेबाजों पर विश्वास कर रहे हो। हम धोखा नहीं देते हैं, और हम उस व्यक्ति को स्वीकार करते हैं जो धोखा नहीं देता। तुम्हारे और मेरे बीच अंतर यही है।

गणेश: लेकिन हम सभी धोखेबाज थे आप से मिलने से पहले, श्रील प्रभुपाद । हम सब धोखेबाज थे, तो यह कैसे है की हम एक बेईमान को स्वीकार नहीं कर रहे हैं? कैसे हम धोखेबाजों ने आप से कुछ ज्ञान स्वीकार कर लिया है?

प्रभुपाद: हाँ, क्योंकि हम वही बात कर रहे हैं जो कृष्ण ने कहा । वे बेईमान नहीं है। वे भगवान है। मैं तुमसे से बात कर रहा हूँ, एसा नहीं है कि, अपने खुद के ज्ञान से। मैं तुम्हे वही पेश कर रहा हूँ जो कृष्ण ने कहा। बस। इसलिए मैं धोखेबाज नहीं हूं। मैं एक बेईमान हो सकता हूँ, लेकिन क्योंकि मैं कृष्ण के ही शब्दों को दोहरा रहा हूँ, तब से मैं धोखेबाज नहीं हूं। (लंबा ठहराव) कृष्ण कहते हैं वेदाहम समतितानि (भ.गी. ७.२६), "मैं अतीत, वर्तमान और भविष्य जानता हूँ ।" इसलिए वह बेईमान नहीं है। लेकिन जहाँ तक हमारा संबंध है, हमें पता नहीं है अतीत क्या था और भविष्य में क्या है। और हमें पूरी तरह से वर्तमान का भी पता नहीं है। और अगर हम कुछ बोलते हैं, वह धोखा है। यह धोखा है। (लंबा ठहराव) हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन यही है कि धोखेबाज को नहीं सुनो और दूसरों को धोखा देने की कोशिश मत करो। ईमानदार रहो, और अधिकृत लोगों से सुनो। यह कृष्ण है। (लंबा ठहराव)

अमोघ: श्रील प्रभुपाद? ऐसा क्यों है कि कुछ लोग, जब वे कृष्ण भावनामृत के बारे में सुनते हैं, वे इसे लेते हैं, और कुछ नहीं। और फिर भी, उस के बाद, जो इसे लेते हैं उन में से कुछ रह जाते हैं, और कुछ जो इसे लेते हैं कुछ समय के लिए लेते हैं अौर उसके बाद वे असफल हो जाते हैं?

प्रभुपाद: यह भाग्यशाली और बदकिस्मती है। जैसे किसी को पिता की संपत्ति विरासत में मिली है। कई लाखों डॉलर, और वह गरीब आदमी बन गया है उस पैसे का दुरुपयोग करके। इस तरह। वह बदकिस्मत है। उसे पैसा मिला, लेकिन वह उसका इस्तेमाल नहीं कर सका।

जयधर्मा: क्या भाग्य का मतलब है यह कृष्ण की दया है ?

प्रभुपाद: कृष्ण की दया हमेशा है। तुम अपनी अाज़ादी का दुरुपयोग करते हो। तुम नहीं करते ... तुम्हे अवसर दिया जाता है- यह भाग्य है। लेकिन तुम भाग्य को स्वीकार नहीं करते। यह तम्हारा दुर्भाग्य है। यह चैतन्य-चरितामृत में कहा गया है। भगवान चैतन्य नें कहा, एइ रूपे ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव (चैतन्य चरितामृत १९.१५१)। कोनो -किई भाग्यशाली आदमी यह स्वीकार कर सकता है। ज्यादातर वे बदकिस्मत हैं। तुम देखो, हम पूरे यूरोप और अमेरिका में प्रचार कर रहे हैं। कितने छात्र आए हैं? एक बहुत नगण्य संख्या, हाँलाकि वे आए हैं। वे भाग्यशाली हैं।