HI/Prabhupada 0493 - जब यह स्थूल शरीर आराम कर रहा है, सूक्ष्म शरीर काम कर रहा है



Lecture on BG 2.14 -- Germany, June 21, 1974

हम थोड़े सोच विचार के साथ समझ सकते हैं, कि इस शरीर में मैं हूँ, इस जीवन में भी... रात में मुझे एक और शरीर मिलता है । मैं सपने देखते हूँ । मैं सपना देखता हूँ कि शेर है । मैं जंगल में जाता हूँ, और एक शेर है, और वह मुझे मारने के लिए आ रहा है । तो मैं रो रहा हूँ, और वास्तव में मैं रो रहा हूँ । या, अन्य तरीके से, मैं किसी प्रेमी के पास गया हूँ, आदमी और औरत । हम गले लग रहे हैं, लेकिन शारीरिक कार्रवाई चल रही है । अन्यथा मैं क्यों रो रहा हूँ? और क्यों वीर्य स्खलन रहा है? तो लोगों को पता नहीं है कि मैं इस स्थूल शरीर को छोड़ रहा हूँ, लेकिन मैं सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर रहा हूँ । सूक्ष्म शरीर है, अंदर का सवाल नहीं है । हम भरे हुए हैं ।

जैसे यह शरीर, शर्ट और कोट के साथ भरा हुअा है, तो कोट स्थूल शरीर है, और शर्ट सूक्ष्म शरीर है । तो जब यह स्थूल शरीर आराम कर रहा है, सूक्ष्म शरीर काम कर रहा है । मूर्ख आदमी, वे समझते नहीं हैं कि: "मैं सूक्ष्म शरीर या स्थूल शरीर, किसी शरीर में हूँ ।" जो बहुत पापी है, उसे स्थूल शरीर नहीं मिलता है । वह सूक्ष्म शरीर में रहता है, और उसे भूत कहा जाता है । तुमने सुना है । तुम में से कुछ नें देखा होगा । भूत होते है । भूत का मतलब है उसे नहीं मिलता है । वह इतना पापी है कि उसे सूक्ष्म शरीर में रहने के लिए दंडित किया जाता है । उसे स्थूल शरीर नहीं मिलता है । इसलिए, वैदिक प्रणाली के अनुसार, श्राद्ध समारोह है । अगर पिता या रिश्तेदार को स्थूल शरीर नहीं मिला है, उस समारोह से उसे एक स्थूल शरीर को स्वीकार करने की अनुमति दी जाती है । यहि वैदिक प्रणाली है ।

तो ठीक है, हम समझ सकते हैं, "मैं कभी कभी इस स्थूल शरीर में हूँ, और मैं कभी कभी सूक्ष्म शरीर में हूँ । तो मैं स्थूल शरीर में या सूक्ष्म शरीर में हूँ । इसलिए मैं अनन्त हूँ । लेकिन जब मैं सूक्ष्म शरीर के साथ काम करता हूँ, मैं इस स्थूल शरीर को भूल जाता हूँ । अौर जब मैं इस स्थूल शरीर के साथ काम करता हूँ, मैं इस सूक्ष्म शरीर को भूल जाता हूँ । तो मैं स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर को स्वीकार करता हूँ, मैं अनन्त हूँ । मैं शाश्वत हूँ । तो अब समस्या यह है कि कैसे इस स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर से बचें । यही समस्या है । इसका मतलब है कि जब तुम अपने मूल शरीर में रहते हो, मतलब आध्यात्मिक शरीर, और इस स्थूल या सूक्ष्म शरीर में नहीं रहते हो, यही तुम्हारा शाश्वत जीवन है ।

यही है... हमें प्राप्त करना होगा । यह मानव जीवन प्रकृति द्वारा या भगवान से एक उपहार है । अब तुम्हे एहसास है कि तुम अपनी अलग अलग स्थितिओ को बदल रहे हो, दुःख और सुख, स्थूल और सूक्ष्म शरीर को स्वीकार करने के लिए मजबूर किए जाते हो । वह तुम्हारे दर्द और खुशी का कारण है । और अगर तुम इस स्थूल और सूक्ष्म शरीर से बाहर निकलते हो, अपने मूल, आध्यात्मिक शरीर में रहते हो, तो तुम इस दर्द और खुशी से स्वतंत्र हो । यही मुक्ति कहा जाता है । मुक्ति । एक संस्कृत शब्द है । मुक्ति का मतलब है मुक्ति, कोई स्थूल शरीर नहीं है, कोई सूक्ष्म शरीर नहीं । लेकिन तुम अपने खुद की मूल आध्यात्मिक शरीर में रहते हो । यह मुक्ति कहा जाता है । मुक्ति का मतलब है ... यह भागवतम में वर्णित है, मुक्तिर हित्वा अन्यथा रूपम स्व-रूपेन व्यवस्थिति: | यही मुक्ति कहा जाता है । अन्यथा रूपम ।