HI/Prabhupada 0495 - मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ



Lecture on BG 2.14 -- Germany, June 21, 1974

श्रम एव हि केवलम (श्रीमद भागवतम १.२.८) । श्रम एव हि केवलम का मतलब है केवल काम करना, बेकार में और समय बर्बाद करना । तुम प्रकृति के कानून को रोक नहीं सकते हो । मान लो तुम इस जीवन में बहुत बड़े नेता हो, प्रधानमंत्री, और सब कुछ । यह ठीक है, लेकिन तुम्हारी मानसिकता के अनुसार, तुम अपना अगला जीवन तैयार कर रहे हो । तो इस जीवन में तुम एक प्रधानमंत्री बने हुए हो, और अगले जन्म में तुम एक कुत्ता बन जाते हो । फिर लाभ क्या है? इसलिए ये नास्तिक मूर्ख, वे अगले जन्म का इनकार करना चाहते हैं । यही उनके लिए बहुत भयानक है । यह उनके लिए बहुत भयानक है । अगर वे अगले जीवन को स्वीकार करते हैं... वे जानते हैं कि उनका जीवन बहुत पापी है । फिर उन्हें प्रकृति के नियमों के तहत क्या जीवन मिलेगा? जब वे इसके बारे में सोचते हैं, वे काँप जाते हैं । "बेहतर इस का इनकार करो । बेहतर इस का इनकार करो ।" एक खरगोश की तरह । दुश्मन उसके सामने है, और वह मरने जा रहा है, लेकिन सोचता है, "मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ । " यह नास्तिक दृष्टिकोण है, कि वे भूलने की कोशिश कर रहे हैं कि... इसलिए वे इनकार करते हैं "कोई जीवन नहीं है।" क्यों नहीं? कृष्ण कहते हैं, कि, "तुम्हारा बचपन का शरीर था... कहाँ है वह शरीर? तुमने उसे छोड़ दिया है । तुम एक अलग अलग शरीर में हो ।

इसी प्रकार, यह शरीर भी तुम बदलोगे । तुम्हे एक और शरीर मिलता है ।" और कौन कहते हैं? श्री कृष्ण कहते हैं । सबसे वरिष्ठ अधिकारी, वे कहते हैं । मैं शायद समझता नहीं, लेकिन जब वे कहते हैं... यह हमारे ज्ञान की प्रक्रिया है । हम सही व्यक्ति से ज्ञान स्वीकार करते हैं । मैं मूर्ख हो सकता हूँ लेकिन सही व्यक्ति से प्राप्त किया गया ज्ञान परिपूर्ण है । यह हमारी प्रक्रिया है । हम कल्पना करने की कोशिश नहीं करते हैं । यही सफल या असफल हो सकता है, लेकिन अगर यह ज्ञान तुम सही प्राधिकारी से स्वीकार करो, तो यह ज्ञान सही है । जैसे कि अगर हम अटकलें करते हैं, "मेरे पिता कोन हैं?" तुम कल्पना कर सकते हो कि तुम्हारे पिता कौन हैं, लेकिन यह अटकलें तुम्हारी मदद नहीं करेंगी । तुम कभी नहीं समझ पाअपगे कि तुम्हारे पिता कौन हैं । लेकिन अगर तुम अपनी मां के पास जाओ, सर्वोच्च प्राधिकारी के पास । वह तुरंत, "यहां तुम्हारे पिता है ।" बस । और तुम किसी अन्य तरीके से अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो । कोई दूसरा रास्ता नहीं है । यह व्यावहारिक है ।

तुम अपने पिता का पता नहीं कर सकते हो, अपनी मां के आधिकारिक बयान के बिना । इसी प्रकार, जो बातें तुम्हारी धारणा से परे हैं, अवन मानस-गोचर, तुम सोच नहीं सकते हो, तुम बात नहीं कर सकते हो । कभी कभी वे कहते हैं "भगवान के बारे में बात नहीं की जा सकती है । भगवान के बारे में सोचा नहीं जा सकता है।" यह सब ठीक है | लेकिन अगर खुद भगवान तुम्हारे सामने आते हैं और कहते हैं, "मैं यहाँ हूँ," तो कहां कठिनाई है? मैं अपूर्ण हूँ । मैं पता नहीं कर सकता हूँ । कोई बात नहीं । लेकिन अगर खुद भगवान मेरे सामने आते हैं... (तोड़)