HI/Prabhupada 0507 - अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो



Lecture on BG 2.18 -- London, August 24, 1973

अब तुम एक दिन की गणना के द्वारा ब्रह्मा की आयु क्या है यह समझने की कोशिश करो । तुम्हारा सहस्र-युग, यहॉ चार युग हैं, सत्य, त्रेता, द्वापर, कली - ये चार कहे जाते हैं... यह गणना है ४३,००,००० सालों की । यही चार युगों का कुल जोड़ है । अठारह, बारह, आठ, और चार | कितना यह आता है? अठारह और बारह? तीस, और उसके बाद आठ, अड़तीस, फिर चार । यह मोटा अनुमान है । ४२, ४३ । सहस्र युग-पर्यन्तम । तो इतने साल, सहस्र युग-पर्यन्तम अह: | अह: का मतलब है दिन । सहस्र युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: (भ.गी. ८.१७) | यह ब्रह्मा का एक दिन है । एक दिन का मतलब है सुबह से शाम । ४३,००,००० तुम्हारी गणना के अनुसार ।

इसलिए इन बातों को शास्त्र के माध्यम से समझा जाना चाहिए । अन्यथा, तुम्हे ज्ञान नहीं है । तुम गणना नहीं कर सकते हो । तुम ब्रह्मा को पास नहीं जा सकते हो, तुम तो चंद्र ग्रह को भी नहीं जा सकते हो । और ब्रह्मलोक की क्या बात करें, वह परम है, इस ब्रह्मांड का सबसे दूर भाग । तो अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो, और तुम जा भी नहीं सकते हो । वे अनुमान लगाते हैं, आधुनिक वैमानिकी, वे अनुमान लगाते हैं, कि सर्वोच्च ग्रह पर जाने के लिए, ४०,००० साल लगेंगे प्रकाश वर्ष के हिसाब से । प्रकाश वर्ष की तरह, हमारे पास गणना है ।

तो हम प्रत्यक्ष धारणा से अनुमान नहीं कर सकते हैं इस भौतिक संसार में भी, और आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात करें । नहीं... पंथास तु कोटि-शट वत्सर संप्रगम्यो वायोर अथापि मनसो मुनि पुंगवानाम (ब्रह्मसंहिता ५.३४) | मानसिक रूप से, मुनि-पुंग का मतलब है मानसिक अटकलें । तुम मानसिक अटकलें किए जाअो । लेकिन अगर तुम कई सैकड़ों और हजारों साल के लिए भी करते रहो, यह गणना करना संभव नहीं है | तुम्हे शास्त्र के माध्यम से इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा, अन्यथा यह संभव नहीं है ।

इसलिए कृष्ण ने कहा, नित्यस्योक्ता: शरीर-उक्त । उक्त का मतलब है यह कहा जाता है । ऐसा नहीं है कि "मैं कुछ हठधर्मिता पेश कर रहा हूँ," हालांकि वे ऐसा कर सकते हैं । वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । यही विधि है । जब तक उक्त न हो, अधिकारियों द्वारा कहा गया, पिछले अधिकारियों द्वारा, अाचार्यों द्वारा, तुम कुछ नहीं कह सकते । यह परम्परा कहा जाता है । तुम अपनी बुद्धि से समझने की कोशिश करो, लेकिन तुम कोई भी वृद्धि या परिवर्तन नहीं कर सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए यह नित्यस्योक्त: कहा जाता है । यह पहले से ही कहा गया है, तय हो चुका है । तुम बहस नहीं कर सकते हो । नित्यस्योक्त: शरीरिण: अनाशीनो अप्रमेयस्य (भ.गी. २.१८), अमाप्य ।