HI/Prabhupada 0548 - अगर तुम हरि के लिए सब कुछ त्यागने के स्तर पर अाते हो



Lecture -- New York, April 17, 1969

तो अाराधितो यदि हरिस तपसा तत: किम (नराद पंचरात्र) । हम गोविन्दम आदि-पुरुषम की पूजा कर रहे हैं, मूल पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की जो हरि के रूप में जाने जाते हैं । वैदिक शास्त्र कहते हैं अाराधितो यदि हरि: अगर तुम हरि, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की पूजा करने के स्तर पर अाते हो, तपसा तत: किम, तो तपस्या, योग अभ्यास, की कोई अधिक ज़रूरत नहीं है, या ये या वो, तो कई यज्ञ, कर्मकांड... सब समाप्त । तुम्हे इन बातों के लिए मुसीबत लेने की आवश्यकता नहीं है, अगर तुम हरि के लिए सब कुछ त्यागने के स्तर पर अाते हो । अाराधितो यदि हरिस तपसा तत: किम । अौर नाराधितो यद हरिस तपसा तत: किम । और तुम, तपस्या, यज्ञ, कर्मकांड गतिविधियाँ, सब कुछ कर रहे हो, लेकिन मैं नही जानता कि हरि क्या है: यह बेकार है, सब बेकार ।

नाराधितो यद हरि:, नाराधित: । अगर तुम हरि की पूजा के स्तर पर नहीं आते हो, तो ये सब बातें बेकार हैं । तत: किम । अंतरबहिर यदि हरिस तपसा तत: किम । अगर तुम हमेशा अपने भीतर हरि को देखते हो और अगर तुम हमेशा हरि को बाहर देखते हो, अंदर और बाहर... तद वंतिके तद दूरे तद... वह श्लोक क्या है? ईशोपनिषद ? तद अंतरे... दूरे तद अंतिके सर्वस्य । हरि हर जगह मौजूद हैं, तो जो हरि को देखता है, अंतिके, पास, और... या दूरी पर, भीतर, बाहर, वह हरि को छोड़कर कुछ भी नहीं देखता है । यह संभव कैसे होता है ? प्रेमांजन-छुरित-भक्ति-विलोचनेन (ब्रह्मसंहिता ५.३८) ।

जब हम परमेश्वर के प्रेम में विलीन हो जाते हैं, वह हरि को छोड़कर दुनिया में कुछ भी नहीं दिखता है । यह उसकी दृष्टि है । तो अंतरबहिर यदि हरि, अंदर और बाहर, अगर तुम हमेशा हरि को, कृष्ण को, देखते हो, तपसा तत: किम, तो तुम्हारी अन्य तपस्या का क्या लाभ है ? तुम सर्वोच्च स्तर पर हो । यही अावश्यक है । नंत-बहिर यदि हरिस तपसा तत: किम । अौर अगर तुम हमेशा हरि को भीतर और बाहर नहीं देखते हो, तो तुम्हारी तपस्या का मूल्य क्या है? इसलिए सुबह में हम इस मंत्र का जप करते हैं, गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि । हमारा कोई अन्य काम नहीं है । केवल हमें गोविंद को संतुष्ट करना है, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, कृष्ण को । फिर सब कुछ पूर्ण है । वे पूर्ण हैं और उनकी पूजा पूर्ण है, उनका भक्त पूर्ण है । सब कुछ पूर्ण है ।

बहुत-बहुत धन्यवाद ।