HI/Prabhupada 0812 - हम पवित्र नाम का जाप करने के लिए अनिच्छुक हैं



741010 - Lecture SB 01.08.30 - Mayapur

अगर हम केवल कृष्ण के स्वभाव को समझने की कोशिश करते हैं, तो हम मुक्त हो जाते हैं । अौर अगर हम समझने की कोशिश करते हैं, कृष्ण मदद करेंगे । कृष्ण कहते हैं, शृण्वताम स्व कथा: कृष्ण: पुण्य श्रवण कीर्तन: (श्रीमद भागवतम १.२.१७)| जितना अधिक हम कृष्ण के बारे में सुनते हैं, हम शुद्ध हो जाते हैं । हम कृष्ण को समझ नहीं सकते हैं क्योंकि हम शुद्ध नहीं हैं । लेकिन, अगर तुम केवल कृष्ण के नाम को सुनो - हरे कृष्ण... हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे - अगर तुम जपते हो अौर सुनते हो, तुम शुद्ध हो जाते हो ।

तो हम क्यों न इसे अपनाऍ, इस सरल विधि को अपनाऍ और शास्त्र भी इसकी सलाह देता है, हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम (चैतन्य चरितामृत आदि १७.२१), केवल हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, जपो चौबीस घंटे ? कीर्तनीय सदा हरि: (चैतन्य चरितामृत आदि १७.३१, शिक्षाष्टक ३) । तुम पूर्ण हो जाते हो । क्यों हम इस अवसर को खो रहे है ? यह हमारा दुर्भाग्य है । यह श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा समझाया गया है, एतादृशि तव कृपा भगवन ममापि: "मेरे भगवान, अापने इतनी उदारतापूर्वक आपकी कृपा दिखाई है, वह नाम, अापके नाम का जप, पर्याप्त है ।" नामनाम अकारि बहुधा निज सर्व शक्ति: ।

नाम का यह जप, अभिन्नत्वान नाम नामिनो: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३३), उनकी सारी शक्ति है । नामनाम अकारि बहुधा निज सर्व शक्तिस तत्रार्पिता | सभी शक्तियॉ हैं । नामनाम अकारि... और कई नाम हैं, न केवल एक नाम । अगर तुम कृष्ण के नाम का जप करना पसंद नहीं करते हो, तो दूसरे नाम हैं, कोई भी नाम । नाम होना चाहिए हरेर नाम, नाम, हरि का नाम, दूसरों का नहीं, हरेर नाम । तो फिर तुम्हे सब शक्तियॉ मिलती हैं ।

नामनाम अकारि बहुधा निज सर्व शक्तिस तत्रार्पिता । और नियमित: स्मरणे न काल: और कोई नहीं है, मेरे कहने का मतलब है, कोई रुकावट कि तुम्हे जप करना है सुबह या शाम को या जब तुम शुद्ध हो या शुद्ध नहीं हो । किसी भी परिस्थिति में, तुम जप कर सकते हो । नियमत: स्मरणे न काल: । ऐसी कोई विचार नहीं है ।

तो कृष्ण उपलब्ध हैं बहुत अासानी से लोगों के लिए, खासकर कलौ, कलि के इस युग में, फिर भी, हम पवित्र नाम का जप करने के लिए अनिच्छुक हैं । इसलिए चैतन्य महाप्रभु पछतावा करते हैं कि, एतादृशि तव कृपा भगवन ममापि: "हालांकि अाप इतने उदार और दयालु हैं, इस पतित आत्मा पर, फिर भी, मैं अभागा हूँ, की मैं इस पवित्र नाम का जप करने के लिए इच्छुक नहीं हूँ ।" यह हमारी स्थिति, हठ, कुत्ते की हठ । लेकिन अगर हम यह करते हैं, तो हम शुद्ध हो जाते हैं । नषट प्रायेशु अभद्रेषु नित्यम भागवत सेवया (श्रीमद भागवतम १.२.१८) |

इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं की श्रीमद-भागवतम पढ़ो, या खुद, शुद्ध होकर या बिना शुद्ध हुए, तुम पढ़ सकते हो, जप कर सकते हो । यह हमारा वैष्णव विनियमन है, कर्तव्य । जितना संभव हो सके, हमें भगवद गीता और श्रीमद-भागवतम पढ़ना चाहिए । और ऐसा कोई भी साहित्य - चैतन्य-चरितामृत, ब्रह्म-संहिता । उनमे से कोई भी एक या सभी, कोई फर्क नहीं है । और चौबीस घंटे हरे कृष्ण का जप करो । यही हमारा काम है । इसलिए हम हर किसी को यह मौका दे रहे हैं । हमने इस बड़ी इमारत का निर्माण किया है, या अौर निर्माण कर रहे हैं - क्यों ? हर किसी को यह मौका देने के लिए । कृपया यहाँ अाइए ।

जाप करिए, प्रसाद लीजिए, हरे कृष्ण कीर्तन में शामिल हो जाइए, और पूरी कोशिश कीजिए, जो अापकी प्रतिभा है, अासानी से, बहुत अधिक बोझ के साथ नहीं । अगर तुम कुछ करना जानते हो, कृष्ण के लिए करो । हर कोई कुछ जानता है । हर किसी को कुछ प्रतिभा मिली है । तो यह प्रतिभा का कृष्ण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए । अौर अगर तुम सोचते हो कि "नहीं, मैं, बस मंत्र जपूँगा ।" ठीक है, तुम जपो । लेकिन जप के नाम से सोना नहीं । यह है... धोखा मत करो । यह धोखा अच्छा नहीं है ।

अगर तुम्हे लगता है कि तुम हरिदास ठाकुर की तरह जप कर सकते हो, तो केवल जप करो । हम आपको भोजन की आपूर्ति करेंगे । कोई चिंता नहीं है । लेकिन धोखा देने की कोशिश मत करो । तुम्हे सेवा में लगे रहना चाहिए । यद करोषि यज जुहोषि यद अश्नासी, कुरुष्व तद मद अर्पणम (भ.गी. ९.२७) बेशक अगर हम चौबीस घंटे जप कर सकें, तो यह बहुत अच्छा है । लेकिन यह संभव नहीं है । हम इतनी अत्यधिक उन्नत नहीं हैं । हमें कृष्ण के लिए कुछ करना ही चाहिए ।

तो यह... यह संस्था, कृष्ण भावनामत आंदोलन, हर किसी को मौका दे रहा है । और हम इस उद्देश्य से दुनिया भर में केन्द्र खोल रहे हैं, की अाप अाऍ, हरे कृष्ण मंत्र का जप करें, कृष्ण, भागवतम, भगवद गीता के बारे में सुनें, अौर जो कुछ भी अाप कर सकते हैं, केवल कृष्ण के लिए करें । तो अापका जीवन सफल होगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।