HI/Prabhupada 0826 - हमारा आंदोलन है कि उस कड़ी मेहनत को कृष्ण के काम में लगाना



The Nectar of Devotion -- Vrndavana, November 4, 1972

तो शास्त्र में यह कहा जाता है, "आम तौर पर, इस भौतिक दुनिया में लोग, वे रजो-गुण में हैं ।" इसलिए कड़ी मेहनत के काम, वे उसे सुख के रूप में लेते हैं । अगर कोई साधु काम नहीं करता है... वह भक्ति सेवा या ध्यान या जप में लगा हुआ है । कभी कभी यह इन लोगों द्वारा गलत समझा जाता है कि ये लोग भाग रहे हैं - क्योंकि वे कड़ी मेहनत को बहुत अच्छा समझते हैं ।

जब तक तुम बहुत मेहनत से काम नहीं करते हो, वे इसे भागने की एक प्रक्रिया के रूप में लेते हैं: "वे, वे सामाजिक दायित्व और अन्य दायित्वों से भाग रहे हैं भिक्षुक का जीवन अपनाके के और दूसरों पर निर्भर होकर ।" तो कई चीज़े । तो वे पसंद करते हैं, बहुत मेहनत से काम करना । लेकिन हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है उस कड़ी मेहनत को कृष्ण के काम में लगाना । कड़ी मेहनत की प्रवृत्ति का उपयोग किया जा सकता है । जैसे मायावदी तत्वज्ञानी, वे सोचते हैं कि वासना और क्रोध, ये हमारे दुश्मन हैं । काम क्रोध लोभ मोह मात्सर्य । लेकिन नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं कि काम भी कृष्ण की सेवा के लिए उपयोग किया जा सकता है ।

कामम कृष्ण-कर्मार्पणे । अगर कोई बहुत अासक्त है कृष्ण के लिए काम करने में, वही प्रवृत्ति जो कर्मी लोग इन्द्रिय संतुष्टि के लिए बहुत मेहनत से काम करते हैं, यह उपयोग किया जा सकता है । यह किया जा सकता है... इसी तरह - क्रोध भक्त-द्वेषि जने | क्रोध, गुस्सा, अच्छा नहीं है, लेकिन क्रोध भी कृष्ण की सेवा के लिए उपयोग किया जा सकता है । जैसे हनुमान की तरह है, वह प्रभु रामचंद्र की खातिर रावण पर गुस्सा हो गए, और उन्होंने रावण के स्वर्ण शहर, लंका, में आग लगा दी । तो यह क्रोध प्रभु रामचंद्र की सेवा के लिए उपयोग किया गया था । उन्होंने अपनी व्यक्तिगत इन्द्रिय संतुष्टि के लिए क्रोध का उपयोग कभी नहीं किया ।

इस तरह, सब कुछ प्रभु की सेवा में लगया जा सकता है, और जैसे मैं किसी दूसरे को समझा रहा था, छह वस्तुए हैं, कैसे भक्ति सेवा, शुद्ध भक्ति सेवा, कृष्ण को आकर्षित करने का एकमात्र साधन है । कृष्ण को आकर्षित करने के लिए तुम कर्मी या ज्ञानी या योगी की भावना का उपयोग नहीं कर सकते हो । तुम केवल भक्ति सेवा द्वारा ही कृष्ण को आकर्षित कर सकते हो । भक्त्या माम अभिजानाति (भ.गी. १८.५५) | कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं, की "केवल भक्ति सेवा के द्वारा, कोई मुझे समझ सकता है ।" भक्त्या माम अभिजानाति । तो कर्मियों के कार्य, जब वे कृष्ण की सेवा में लगते हैं, इतनी मेहनत से काम करके भी, हमारी प्रवृत्ति, हम कर सकते हैं...

वास्तव में, भक्ति सेवा मुख्य सिद्धांतों पर निर्भर करता है, श्रवणम कीर्तनम विष्णो: स्मरणम पाद सेवनम अर्चनम वंदनम दास्यम (श्रीमद भागवतम ७.५.२३) | लेकिन दास्यम की श्रेणी में... जैसे हनुमान, हनुमान जी: वे दास्यम के मंच में थे । अर्जुन सख्यम के मंच में थे । तो वे भी बहुत कड़ी मेहनत कर रहे थे । कुरुक्षत्र के युद्ध का मैदान, यह बहुत आसानी से और चुपचाप नीचे बैठेने की एक जगह नहीं थी । जब वे लड़ रहे थे, वे सिर्फ एक सिपाही की तरह लड़ रहे थे । उन्होंने सैनिक के सभी कर्तव्य निभाए । लेकिन यह कृष्ण के लिए लड़ी जा रही थी । यही आकर्षण है । यही शुद्ध भक्ति सेवा है ।

कृष्ण नें भी उसे प्रमाण पत्र दिया: भक्तो असि प्रियो असि (भ.गी. ४.३) । "मेरे प्यारे अर्जुन, तुम मेरे प्रिय मित्र और भक्त हो ।" तो कोई भी कार्य, अगर यह कृष्ण की संतुष्टि के लिए किया जाए, यह भक्ति सेवा है, और हम कृष्ण को, कृष्ण के ध्यान को, आकर्षित कर सकते हैं । कृष्ण का ध्यान शुद्ध भक्ति सेवा से आकर्षित किया जा सकता है, किसी भी निजी मकसद के बिना । अगर यह है... और वह मकसद, वह आदेश, प्राप्त किया जाता है परम्परा में आध्यात्मिक गुरु से, कैसे कृष्ण प्रसन्न होंगे ।