HI/Prabhupada 0941 - हमारे छात्रों में से कुछ, वे सोचते हैं कि 'क्यों मैं इस मिशन के लिए काम करूँ?



730427 - Lecture SB 01.08.35 - Los Angeles

तो, यहाँ इस भौतिक दुनिया में, अस्मिन भवे, भवे अस्मिन, सप्तमे अधिकार । अस्मिन, इस भौतिक दुनिया में । भवे अस्मिन क्लिश्यनामानाम । हर कोई... हर कोई, हर जीव मेहनत कर रहा है । मुश्किल या नरम, यह बात नहीं है; हमें काम करना ही पड़ता है । कोई फर्क नहीं पड़ता है । जैसे हम भी काम कर रहे हैं । यह नरम हो सकता है, लेकिन यह भी का है। लेकिन यह अभ्यास है; इसलिए यह काम है । हमें काम नहीं लेना चाहिए । भक्ति वास्तव में सकाम कर्म नहीं है । यह उस तरह प्रतीत होता है । यह भी काम करना है । लेकिन अंतर यह है कि जब तुम भक्ति सेवा में लगते हो तो तुम्हे थकान महसूस नहीं होगी । और भौतिक काम, तुम थकान महसूस करोगे । यही अंतर है, व्यावहारिक । भौतिक, तुम एक सिनेमा गीत लो और गाअो, तो आधे घंटे के बाद तुम थक जाअोगे । और हरे कृष्ण, पच्चीस घंटे जपते रहो, तुम कभी थकोगे नहीं । है की नहीं ?

व्यावहारिक रूप से देखो । तुम एक भौतिक नाम लेो, "श्री जॉन, श्री जॉन, श्री जॉन," तुम कितनी बार जप सकते हो ? (हंसी) दस बार, बीस बार, समाप्त । लेकिन श्री कृष्ण ? " कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण," तुम जपते रहो अौर तुम्हे अधिक शक्ति मिलेगी । यही अंतर है । लेकिन मूर्ख व्यक्ति सोचते हैं, वे भी हमारी तरह काम कर रहे हैं, वे भी हमारी तरह कर रहे हैं । नहीं, यह नहीं है । तो अगर वे... समझने की कोशिश करो, भौतिक प्रकृति मतलब जो भी इस भौतिक दुनिया में अाया है । यहां आना हमारा काम नहीं है, लेकिन हम यहाँ आना चाहते थे । वह भी यहाँ उल्लेख किया है । क्लिश्यामानानाम अविद्या-काम-कर्मभि: | क्यों वे यहाँ आए हैं ? कोई विद्या नहीं । अविद्या मतलब अजान । वह अज्ञान क्या है ? काम । काम मतलब इच्छा । वे श्री कृष्ण की सेवा के लिए हैं, लेकिन वे इच्छा करते हैं कि "मैं क्यों श्री कृष्ण की सेवा करूँ ? मैं श्री कृष्ण बनूँगा ।" यह अविद्या है ।

यह अविद्या है । बजाय इसके की सेवा करें... यह, यह स्वाभाविक है । कभी कभी, जैसे एक नौकर मालिक की सेवा कर रहा है । वह सोच रहा है, "अगर मुझे इस तरह के पैसे मिलते, तो मैं एक मालिक बन सकता था ।" यह अप्राकृतिक नहीं है । तो, जब जीव सोचता है... वह श्री कृष्ण से अा रहा है, कृष्ण भूलि जीव भोग वांछा करे । जब वह श्री कृष्ण को भूल जाता है, मेरे कहना का मतलब है, भौतिक जीवन । यही भौतिक जीवन है । जैसे ही हम श्री कृष्ण को भूल जाते हैं । हम देखते हैं... हम में से कई... कई नहीं, हमारे छात्रों में से कुछ, वे सोचते हैं "मैं क्यों इस मिशन में काम करूँ ? ओह, मुझे चले जाने दो ।" वह चला जाता है, लेकिन वह क्या करता है ? वह एक मोटर चालक बन जाता है, बस । इसके बजाय की ब्रह्मचारी या सन्यासी का सम्मान पाए, उसे साधारण मज़दूर की तरह कार्य करना पड़ता है |