HI/Prabhupada 0980 - हम भौतिक समृद्धि से सुखी नहीं हो सकते, यह एक तथ्य है



720905 - Lecture SB 01.02.06 - New Vrindaban, USA

प्रद्युम्न: अनुवाद: "सभी मानवता के लिए परम कर्तव्य या धर्म यह है जिसके द्वारा व्यक्ति भगवान के प्रति प्रेममय भक्ति सेवा प्राप्त कर सकता हैं । इस तरह की भक्ति सेवा पूरी तरह से अहैतुकी अौर निर्बाध होनी चाहिए ।"

प्रभुपाद: तो...

स वै पुंसाम परो धर्मो
यतो भक्तिर अधोक्षजे
अहैतुकि अप्रतिहता
ययात्मा सुप्रसीदति
(श्रीमद भागवतम १.२.६)

हर कोई संतुष्टि की खोज कर रहा है, अत्यंतिक्षु । हर कोई अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है परम सुख के लिए । लेकिन इस भौतिक दुनिया में, हालांकि वे सोच रहे हैं भौतिक धन रखने से वे संतुष्ट हो जाॅएगे, लेकिन यह तथ्य नहीं है । उदाहरण के लिए तुम्हारे देश में, तुम्हारे पास पर्याप्त भौतिक संपन्नता है अन्य देशों की तुलना में, लेकिन फिर भी कोई संतोष नहीं है । भौतिक आनंद के लिए अच्छी व्यवस्था के बावजूद, पर्याप्त भोजन, पर्याप्त... अच्छा अपार्टमेंट, मोटर गाड़िया, सड़कें, और यौन सम्बन्ध में स्वतंत्रता के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था, और रक्षा के लिए भी अच्छी व्यवस्था - सब कुछ पूरा है - लेकिन फिर भी, लोग असंतुष्ट, भ्रमित हैं और युवा पीढ़ी, वे हिप्पी में बदल रहे हैं, विरोध, या असंतुष्ट क्योंकि वे खुश नहीं हैं ।

मैंने कई बार उदाहरण उद्धृत किया है कि लॉस एंजलिस में, जब मैं बेवर्ली हिल्स में मेरी सुबह की सैर ले रहा था, कई हिप्पी एक बहुत सम्मानजनक घर से बाहर आ रहे थे । एसा लगता था कि उसके पिता, उनके पास भी एक बहुत अच्छी गाड़ी है, लेकिन पोशाक हिप्पी की थी । तो तथाकथित भौतिक व्यवस्था के खिलाफ एक विरोध है, वे पसंद नहीं करते हैं । वास्तव में हम भौतिक समृद्धि से खुश नहीं हो सकते हैं, यह एक तथ्य है । यह भी श्रीमद-भागवतम में कहा गया है । प्रहलाद महाराज अपने नास्तिक पिता से कहते हैं... उनका पिता हिरण्यकशिपु था । हिरण्य मतलब सोना और कशिपु मतलब नरम बिस्तर, तकिया । यही भौतिक सभ्यता है ।

वे बहुत नरम बिस्तर चाहते हैं, और बिस्तर में साथी, और पर्याप्त बैंक बैलेंस, पैसा । यह हिरण्यकशिपु का एक और अर्थ है । तो वह भी खुश नहीं था । हिरण्यकश्यप खुश नहीं था - कम से कम वह खुश नहीं था, की उसका बेटा प्रहलाद भक्त बन रहा था, जो उसे पसंद नहीं आया । तो उसने अपने बेटे से पूछा कि "तुम कैसा महसूस कर रहे हो ? तुम एक छोटे से लड़के हो, कैसे तुम इतना आराम महसूस कर रहे हो मेरे इतनी धमकी के बावजूद ।

तो तुम्हारी वास्तविक संपत्ति क्या है? " तो उन्होंने उत्तर दिया, "मेरे प्रिय पिता, न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम (श्रीमद भागवतम ७.५.३१) | मूर्ख व्यक्ति, वे नहीं जानते हैं कि सुख का अंतिम लक्ष्य है विष्णु, भगवान, परम भगवान, हैं । " दुराशया ये बहिर अर्थ मानिन: (श्रीमद भागवतम ७.५.३१) । दुराशया, दुर, आशा न होते हुए भी अाशा करना, वे वह उम्मीद करते हैं जो कभी पूरी नहीं होगी । वो क्या है ? दुराशया ये बहिर अर्थ मानिन: |