HI/Prabhupada 1012 - सुनना और दोहराना, सुनना और दोहराना । आपको निर्माण करने की अावशयक्ता नहीं है



750620c - Arrival - Los Angeles

प्रभुपाद: ... वृत्ति, वृत्ति तो है अापमें । स्वाभाविक रूप से मैं किसी से प्यार करना चाहता हूं । यह अस्वाभाविक नहीं है । लेकिन जब यह प्यार श्री कृष्ण से हो जाये, तो यह पूर्ण है । मायावादी, वे निराश हैं; इसलिए वे इस प्यार को शून्य करना चाहते हैं । वे गोपियों के साथ श्री कृष्ण के प्रेम को समझ नहीं सकते हैं । वे इसे भौतिक प्यार समझते हैं... ओह, आप कैसे हैं, हयग्रीव प्रभु ? केसे हैं ? आप बेहतर दिखते हैं । अाप बेहतर दिख रहे हैं, मैंने जब अापको न्यु वृन्दावन में देखा था उसकी तुलना में ज़्यादा तेजस्वी दिख रहे है । आपको कृष्ण की सेवा के लिए इतनी प्रतिभा मिली है । सब के पास है । यही मैं बात रहा हूँ । हमें इसका उपयोग करना है । जब से मैं आप से मिला हूं, मैंने अापको निर्देश दिया है संपादन करने के लिए । यह "भगवद्दर्शन" पत्रिका काअारम्भ था । वे अच्छे टाइपिस्ट भी हैं । आप जानते हैं ? (हंसी) मुझे लगता है वे हमारे आदमियों में सब से श्रेष्ठ हैं । वे बहुत तेजी से और सही ढंग से टाइप कर सकते हैं । मुझे लगता है हमारे समूह में हयग्रीव प्रभु अौर सत्सवरूप महाराज बहुत अच्छे टाइपिस्ट हैं । और जयाद्वैत, मेरे ख्याल से तुम भी हो, नहीं ?

जयाद्वैत: हॉ ।

प्रभुपाद: तुम भी अच्छे टाइपिस्ट हो ? (हंसी) तो क्यों तुमने बलि मर्दन के लेख को प्रकाशित नहीं किया ?

जयाद्वैत: बलि मर्दन का लेख |

प्रभुपाद: हाँ ।

जयाद्वैत: हम इंतज़ार कर रहे थे । हमें समझ नहीं अा रहा था कि इसे प्रकाशित करना उपयुक्त है या नहीं ।

प्रभुपाद: उसने सोचा, निराशा । उसने प्रकाशित किया है । उसने बहुत अच्छी तरह से लिखा है ।

जयाद्वैत: उसने अच्छी तरह से लिखा है ?

प्रभुपाद: हाँ ।

जयाद्वैत: हम इसे प्रकाशित कर सकते हैं ?

प्रभुपाद: तो हमे... हाँ, यहाँ... यह क्या है ?

ब्रह्मानंद: "भ्रम और वास्तविकता," दो निबंध...

प्रभुपाद: उसने बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है । तो हमें अपने आदमियों को प्रोत्साहित करना चाहिए ।

जयाद्वैत: यह प्रकाशित करें ।

प्रभुपाद: हाँ । और हमारे अादमी, हमारे सभी अादमियों को लिखना चाहिए । वरना हमें पता कैसे चलेगा कि उसने इस तत्वज्ञान को समझा है ? लिखना मतलब श्रवणम कीर्तनम । श्रवणम का अर्थ है अधिकृत लोगों से सुनना, और इसे फिर से दोहराना । यह हमारा काम है, श्रवणम कीर्तनम विष्णो: (श्रीमद भागवतम ७.५.२३), विष्णु के बारे में, न कि किसी राजनेता या किसी अन्य आदमी के बारे में । श्रवणम कीर्तनम विष्णो:, श्री कृष्ण या विष्णु के बारे में । तो यही सफलता है । सुनना और दोहराना, सुनना और दोहराना । आपको निर्माण करने की कोई अावश्यक्ता नहीं हैं ।

हम में से कोई भी, केवल इस तात्पर्य को दोहराए जो भागवतम में दिया गया है, तो आप एक अच्छे वक्ता बन जाते हो । मैं क्या कर रहा हूं ? मैं भी वही कर रहा हूं, वही लिख रहा हूं, ताकि आधुनिक आदमी समझ सके । अन्यथा हम वही बात दोहरा रहे हैं । वे भी वही बात दोहरा रहे हैं, इन्द्रिय संतुष्टि । पुन: पुनश चर्वित चर्वणानाम (श्रीमद भागवतम ७.५.३०) । लेकिन क्योंकि यह भौतिक है, वे सुख नहीं पाते हैं । लेकिन आध्यात्मिक चीज़, हम हरे कृष्ण का जप कर रहे हैं, केवल दोहराना, लेकिन हमें दिव्य आनंद की अनुभूती हो रही है । हम क्या कर रहे हैं ? वही "हरे कृष्ण, हरे कृष्ण ।" तो प्रक्रिया वही है; विषय वस्तु अलग है । तो क्यों तुम प्रकाशन करने में पीछे हो ? अब सभी बड़े आदमी यहाँ हैं । क्यों हमारी किताबें पीछे हैं ? क्यूँ ? यहाँ संपादक हैं । मुझे नहीं लगता है कि कोई कमी है ।

रामेश्वर: अब कोई कमी नहीं है ।

प्रभुपाद: हु ? पहले थी ? (तोड़)

रामेश्वर: अगर हम पुस्तकें बहुत जल्दी से प्रकाशित करना चाहते हैं, वे अमेरिका में प्रकाशित होनी चाहिए, नई पुस्तकें ।

प्रभुपाद: और वहाँ पुनर्प्रकाशन ।

रामेश्वर: हाँ, हम ऐसा कर सकते हैं ।

प्रभुपाद: तो क्यों न साधारण के लिए भी उन्हें कुछ किताब दी जाये ?

रामेश्वर: हम जापान में इस साल उनको बहुत व्यापार दे रहे हैं ।

प्रभुपाद: हाँ, हाँ । हमें बहुत अच्छी तरह से उन लोगों के साथ सौदा करना होगा । उन्होंने शुरू में मदद की थी । हाँ । मैंने उन्हें केवल ५,००० डॉलर दीये थे शुरुआत में । और मैंने ५२,००० का अार्डर दिया था, लेकिन उन्होंने आपूर्ति की । उन्हे पैसा मिला । वे अाश्वस्त थे कि हम उन्हें धोखा नहीं देंगे । इसलिए हमारा संबंध बहुत अच्छा है । तो इसका उपयोग करो । (तोड़) ...लड़की थी, वो जपानी, उन्हे हमारे प्रकाशन पसंद है ।

रामेश्वर: लड़की । मूल प्रकृति ।

प्रभुपाद: हु ?

रामेश्वर: वह लडकी जो आपको हवाई में मिली थी, मूल प्रकृति ।

प्रभुपाद: हाँ । वह बहुत उत्साहित थी । मूल प्रकृति । यदुबर प्रभु कहां हैं ? कहां हैं ?

जयतीर्थ: यही हैं ।

प्रभुपाद: ओह । अब आप अच्छा महसूस कर रहे हैं ?

यदुबर : हाँ । बहुत सुधार हुअा है मुझमें ।

प्रभुपाद: यह अच्छा है । तो हर कोई अच्छा महसूस कर रहा है ?

भक्त: हाँ ।

प्रभुपाद: तुम भी अच्छा महसूस कर रही हो ?

विशाखा: अब मैं ठीक हूँ ।

प्रभुपाद: हु ?

विशाखा: अब मैं ठीक हूँ ।

प्रभुपाद: (हंसते हुए) अच्छा है ।