HI/661205 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जीवात्मा, जीव, शाश्वत रूप में भगवान श्री कृष्ण का सेवक है, और एक सेवक को अपने स्वामी के स्वभाव को समझना चाहिए ताकि उसकी सेवा में भाव, प्रेम और गहराई हो। कल्पना कीजिए कि, मैं किसी स्थान पर नौकरी कर रहा हूँ। मुझे मालिक की सेवा का कार्य सौंपा गया है, किन्तु मैं नहीं जानता कि, मेरा मालिक कितना बड़ा है। यदि मैं अपने मालिक के प्रभाव, गौरव और महानता से परिचित हो जाऊँगा, तो मैं और भी परायणशील बन जाऊँगा कि: "मेरे मालिक कितने महान है।" अत: केवल यह जान लेने से कि भगवान् महान है, और मेरा भगवान् के साथ एक संबन्ध है - केवल यह पर्याप्त नहीं है। आपको यह ज्ञात होना ही चाहिए कि, वे कितने महान है। अवश्य, हम इसकी गणना नहीं कर सकते की वे कितने महान हैं, किन्तु, जितना संभव हो उतना आपको उनकी महानता का ज्ञान होना चाहिए।"
661205 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.१५२-१५४ - न्यूयार्क