HI/720814 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 06:34, 21 January 2021 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जब हमें शरीर का यह मानव रूप मिलता है, तो यह कृष्ण के शरीर की नकल है। कृष्ण के दो हाथ हैं; हमारे भी दो हाथ हैं। कृष्ण को दो पैर हैं; हमारे भी दो पैर हैं। लेकिन इस शरीर और कृष्ण के शरीर का अंतर इस श्लोक में कथित है, अंगानी यस्य सकलेन्द्रिय-वृत्ति-मंती (ब्र.सं ५.३२)। यहाँ, अपने हाथों से, हम कुछ पकड़ सकते हैं, लेकिन हम चल नहीं सकते। लेकिन कृष्ण अपने हाथों से चल सकते हैं। या अपने पैरों से हम बस चल सकते हैं, लेकिन हम कुछ पकड़ नहीं सकते। लेकिन कृष्ण पकड़ भी सकते हैं। अपनी आँखों से हम देख सकते हैं, लेकिन हम खा नहीं सकते हैं। लेकिन कृष्ण अपनी आँखों से देख भी सकते हैं और खा भी सकते हैं और सुन भी सकते हैं। यह इस पद्य की व्याख्या है। अंगानी यस्य सकलेन्द्रिय-वृत्ति-मंती 'प्रत्येक अंग को अन्य अंगों का कार्य मिला है'। इसे परम कहा जाता है।"
720814 - प्रवचन ब्र.सं ५.३२ - लॉस एंजेलेस