HI/730925 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 06:35, 21 January 2021 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इसलिए छात्रों को शिक्षा दी जाती है, लेकिन यह ज्ञान शैक्षणिक संस्थान में नहीं है। किसी को भी यह जानकारी नहीं है कि "मैं यह शरीर नहीं हूं।" इसलिए शास्त्र कहते हैं: "जो भी इस शरीर को अपने स्वरुप की पहचान समझता है," यस्यात्मा बुद्धि कुनपे त्रि धातुके (श्री.भा १०.८४.१३), "और शरीर के साथ संबंध, दूसरों के साथ भी," स्व-धीः, "सोचना, 'ये लोग हमारे अपने हैं,' "सव-धि: कलत्रादिषु भौमा इज्य-धीः, और भौमा, "जन्म भूमि पूजनीय है," इज्य-धीः ... तो यह चल रहा है।"
730925 - प्रवचन श्री.भा १३.०१.०२ - बॉम्बे