BH/Prabhupada 1079 - भगवद गीता दिव्य शास्त्र ह, ओह के सावधान होके पढ़े के चाहीं



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

सिद्ध पुरुष से, भगवद गीता या श्रीमद भागवतम के श्रवण कईला से चौबीसों घंटा भगवान के बारे में सोचत रहे के , शिक्षा मिलेला, , ओकरा चलते धीरे धीरे अंत - काले , शरीर के अंत होखे का समय , भगवान के सुमिरन हो जाई , आ इ शरीर छोडला के बाद दिव्य अध्यात्मिक शरीर मिल जाई , आध्यात्मिक देह , जेकरा माध्यम से भगवान से निकटता हो सके . भगवान कहतानीं जे , "अभ्यास योग युक्तेन चेतसा नान्यगामिना परमम् पुरुषम दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन " ( भ गी ८.८) . अनुचिन्तयन , हर दम भगवान् के बारे में सोचला से . इ बहुत मुश्किल काम नईखे . एह लाइन में अनुभवी आदमी से इ तरीका सीखे के चाहीं . तद विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभिगाछेत ( मु उ १.२.१२) . जे अभ्यास कर लेहले बा ओकरा लगे जाए के चाहीं . तब अभ्यास योग युक्तेन . एकरा के अभ्यास योग कहल जाला , सीखल. अभ्यास .... कैसे भगवान् के हर घरी स्मरण करत रहल जाव. चेतसा नान्य गामिना . मन , मन त हर घरी उड़त रहेला , इहाँ, कबही उहाँ . तब आदमी का हमेशा परम पुरुष भगवान् श्री कृष्ण का विग्रह का ऊपर ध्यान राखे के चाहीं , चाहे उनका नाम संकीर्तन के आवाज पर , इ त आउर आसान बा. मन पर अपना मन पर ध्यान लगावे से . मन त बेचैन रहेला , कबहू एह तरफ त कबहू ओह तरफ . लेकिन कान के भगवान कृष्ण के ध्वनी पर लगावल एक दम आसान बा. आ ओह से फायदा भी बा . इहे अभ्यास योग ह . . चेतसा नान्य गामिना परमम् पुरुषम दिव्यं . परम पुरुष के . , भगवान् श्री कृष्ण के धाम में . ' अनुचिन्तयन ' बराबर भगवान के केवल चिंतन कईला से ही आदमी आध्यात्मिक आकाश में पहुँच जाई . एकर साधन आ तरीका दूनो भगवत गीता में बतावल बा , एह अभ्यास करे में केहू पर भी रोक नईखे . इहो ना जे खाली एक जात या समूह के लोग ही एकर अभ्यास कर सकता . भगवान कृष्ण के बारे में सोचल, भगवान् कृष्ण के कीर्तन, सभे कर सकता. भगवद गीता में भगवान् कहले बानीं जे 'माम हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये पि स्यु: पाप योनय: स्त्रियो वैश्याः तथा शूद्राः ते पि यान्ति परां गतिम् "( भ गी ९.३२) . " किम पुनः ब्रह्मणा: पुण्याः भक्ताः राजर्षयः तथा अनित्यं असुखं लोकं इदं प्राप्य भजस्व माम " ( भ गी ९.३३) . भगवान कहले बानीं जे अधम से भी अधम योनि में कवनो आदमी हो, चाहे पतिता नीच स्त्री हो, या वैश्य हो या मजदूरा आदमी हो..... बनिया , मजदूर आ नारी लोग , सब लोग एके टाईप के लोग होला, काहे कि उ लोग छोट बुद्धि के होला . लेकिन भगवान् कहतानीं जे उहो लोग, चाहे ओह लोग से भी पतित लोग , ' माम ही पार्थ व्यपाश्रित्य ये पि स्यु: पापयोनय:' ( भ गी ९.३२) , उहे लोग ना , ओह लोग से भी अधम , चाहे केहू भी . एईसे इ मतलब नईखे कि उ के ह , नर कि नारी , जे केहू भी भक्ति योग के स्वीकार करे आ मन से मान ले कि भगवान कृष्ण ही जीवन के ध्येय बानीं , जीवन के सबसे ऊँचा लक्ष्य , सर्वोच्च प्राप्य ... " माम ही पार्थ व्यपाश्रित्य ये पि स्यु: .. , ते पि यान्ति परां गतिम् ". उ आध्यात्मिक आकाश में सबसे ऊँचा गति , केहू का भी मिल सकता . बस सही तरीका से अभ्यास करे के बा . एह पद्धति के भगवद गीता में बहुत सुन्दर इशारा कईल बा. एकरा के अपना कर के जीवन के आदर्श जीवन बनावल जा सकता , आ सब समस्या के खूब सुन्दर समाधान कईल जा सकता . बस इहे भगवद गीता के संक्षेप में सन्देश ह . तब एह बात के समझे के चाहीं जे भगवद गीता दिव्य साहित्य ह , एकर अध्यययन सावधानी से करे के चाहीं . " गीता शास्त्रं इदं पुण्यम , यः पठेत प्रयतः पुमान ". अगर गीता के सलाह सही ढंग से मानल जाव त एकर परिणाम होई जे , उ आदमी जीवन के सब दुःख तकलीफ, आ चिंता से मुक्त हो जाई . " भय शोकादि वर्जितः " . एह जीवन के सब भय से मुक्ति , आ अगिला जनम में दिव्य आध्यात्मिक शरीर भी मिली . " गीताध्ययन शीलस्य प्राणायाम परस्य च , नैव शान्ति ही पापानि पूर्व जन्म कृतानि च ". गीता पढ़ला से दोसर लाभ , ध्यान से आ गंभीरता से , तब भगवान के कृपा से , पहिले के जनम के पाप के कुपरिणाम से भी रक्षा हो जाई .