"तो यदि आप केवल इस चेतना में रहते हैं, कि "मैं भगवान का एक शाश्वत दास हूँ, और मेरा काम भगवान की सेवा करना है ..." और कृष्ण, या ईश्वर से सम्बंधित सेवा दूसरी प्रकार की सेवा हैं। जिस प्रकार हम यह सेवा दे रहे हैं। हम कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहे हैं, क्यों? यह कोई हमारा व्यवसाय नहीं है। किन्तु क्योंकि हमने भगवान के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित कर लिया है, हम उसका प्रचार करना चाहते हैं। अतेव कृष्ण भावनामृत का अर्थ इस भौतिक संसार से अलग होना नहीं है, किन्तु उसके कार्य अलग होते हैं। वह ऐसा कर्म नहीं कर रहा जो चिंताजनक है। यहाँ हम कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहे हैं। हाँ, ये कोई व्यवसाय नहीं। हम आपसे कुछ भी अपेक्षा नहीं रखते हैं। किन्तु यदि आप इसे स्वीकार करते हैं, तो हमारा मिशन सही है। यदि आप इसे स्वीकार नहीं करते हैं, तो भी कोई चिंता नहीं है।"
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