HI/690522 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यू वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मत्तः स्मृतिर ज्ञानं अपोहनम च (श्रीमद भगवद्गीता १५.१५)। व्यक्ति भूलता है और व्यक्ति याद भी करता है। स्मृति और विस्मृति। तो क्यों व्यक्ति कृष्ण भावना याद रखता है और क्यों व्यक्ति कृष्ण भावना को भूलता है? वस्तुतः मेरी वैधानिक अवस्था है, जैसा कि चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण दास ( श्री चैतन्य चरितामृत २०.१०८-१०९)। दरअसल, जीवात्माओं की वैधानिक स्थिति है कि वह चिरकाल से भगवान का सेवक है। वही उसकी स्थिति है। वह उस प्रयोजन के लिए ही नियत है, किन्तु वह भूल जाता है। तो वह विस्मृति भी जन्मादि अस्य यतः (श्रीमद भागवतम १.१.१ ), सर्वोच्च है। क्यों? इसलिए कि वह भूलना चाहता था।"
690522 - प्रवचन SB 01.05.01-4 - New Vrindaban, USA