HI/690621b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यू वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो मान लो हम इस कृष्ण भावना का अनुसरण कर रहे हैं। अब मृत्यु अचानक आ सकती है। हम सभी मरते हैं। इसलिए नारद मुनि हमें प्रेरित करते हैं कि पुनर एव ततो स्वेड्व (?): "या तो हम मर जाते हैं अथवा कभी हम पतित हो जाते हैं....,"क्योंकि माया और कृष्ण, अगल बगल हैं। "तो कोई बात नहीं है। (क्योंकि) हम कृष्ण भावना में हैं। किन्तु यदि हम पतित हो जाते हैं...,"वर्से वा तदा स्व-धर्म त्याग निमित्त अनर्थाश्र्य(?), "तब तुमने तुम्हारी सभी अन्य ज़िम्मेदारियाँ त्याग दी हैं। तो ज़िम्मेदारियों को त्यागने के लिए कुछ दंड अवश्य होगा। "मेरा मतलब लौकिक दंड से नहीं है। ठीक जैसे वैदिक संस्कृति में, ब्राह्मण, क्षत्रिय हैं; उदाहरण के लिए, जैसे कृष्ण अर्जुन को परामर्श दे रहे थे कि "तुम क्षत्रिय हो। इसलिए यदि तुम इस युद्ध में मृत्यु को प्राप्त होंगे, तब तुम्हारे लिए स्वर्ग का द्वार खुला है।" क्योंकि, शास्त्र के अनुसार, यदि क्षत्रिय युद्ध करते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है, तब अनायास ही उसे स्वर्ग लोक में उन्नति मिलती है। और यदि वह पलायन करता है, युध्द का त्याग करके, तब वह नर्क को जाता है। तो इसी प्रकार, यदि व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह नहीं करता, नियत ज़िम्मेदारियों का, तब उसका पतन हो जाता है।"
690621 - प्रवचन SB 01.05.17-18 - New Vrindaban, USA