उस समय सनातन गोस्वामी के पास कोई मंदिर नहीं था; वह अपने विग्रह को वृक्ष पे लटका के रख रहे थे। तो मदन-मोहन उनसे बात कर रहे थे, 'सनातन, तुम यह सब सूखी रोटियां अर्पण कर रहे हो, और यह बासी है, और तुम मुझे थोड़ा नमक भी नहीं देते। मैं कैसे खा सकता हूं?' सनातन गोस्वामी कहते, 'प्रभु, मैं कहाँ जाऊँ? जो कुछ भी मुझे मिलता है मैं आपको देता हूं। आप कृपया स्वीकार करे। मैं बूढ़ा आदमी, हिल भी नहीं सकता।' आप देखिए। तो कृष्ण को वह खाना पड़ता। क्योंकि भक्त अर्पण कर रहे है, वह मना नहीं कर सकते। ये माम भक्त्या प्रयच्छती। असली चीज़ भक्ति है। आप कृष्ण को क्या अर्पण कर सकते हैं? सब कुछ कृष्ण का है। आपके पास क्या है? आपका मूल्य क्या है? और आपकी चीजों का मूल्य क्या है? यह कुछ भी नहीं है। इसलिए असली चीज़ भक्ति है; असली चीज़ है आपकी भावना। 'कृष्ण, कृपया इसे स्वीकार करे। मुझ में कोई योग्यता नहीं है। मैं अत्यधिक पतित व्यक्ति हूं परंतु फिर भी मैं यह वस्तु आपके लिए लाया हूँ। कृपया स्वीकार करें। यह स्वीकार किया जाएगा। अहंकार मत करो। सदैव सावधान रहो। आप कृष्ण से व्यवहार कर रहे हैं। यह मेरा अनुरोध है। बहुत धन्यवाद...(रोते है)
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