HI/700504b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हम केवल ऐसी चीजें खा सकते हैं जो विग्रह, कृष्ण को अर्पित की जाती हैं। यह यज्ञ शिष्टासिनः है (भगी ३.१३]। यहां तक ​​कि अगर हमने कुछ पाप किया है, तो इस प्रसाद को खाने से हम इसका प्रतिकार करते हैं। मुच्येन्ते सर्व-किलभिषेय। यज्ञ-शिष्टा... अशिष्टा का अर्थ है यज्ञ आहूति करने के बाद खाद्य पदार्थों के अवशेष। यदि कोई भोजन करता है, तो मुच्येन्ते सर्व-किलभिषेय। क्योंकि हमारा जीवन पापमय है, इसलिए हम, मेरा मतलब है कि,पापी गतिविधियों से आज़ाद हो जातें हैं। यह कैसे होता है? उसका वर्णन भी भगवद गीता में है, कि अहम् त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षिष्यामी (भगी १८.६६):'यदि आप हमें शरणागत होते हैं, तब मैं आपको सारे पाप प्रतिक्रया से सुरक्षा दूंगा'। इसलिए यदि आप यह प्रतिज्ञा करते हैं कि "मैं वह कुछ भी नहीं खाऊंगा जो कि कृष्ण को अर्पण नहीं किया गया है," इसका मतलब है कि यह समर्पण है। आप कृष्ण को समर्पण करते हैं, कि 'मेरे प्रिय भगवान, मैं वह कुछ भी नहीं खाऊंगा जो कि आपको अर्पण नहीं किया गया है'। यह प्रतिज्ञा है। वह प्रतिज्ञा समर्पण है। और क्योंकि समर्पण है, तो आप पापी प्रतिक्रिया से सुरक्षित हैं।"
700504 - प्रवचन इशो 0१ - लॉस एंजेलेस