HI/750801 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यू ऑरलियन्स में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मृत्यु के समय, आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही शरीर आप प्राप्त करते हैं। यह प्रकृति का नियम है। प्रकृति..यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् (भ.गी.८.६), ऐसा कृष्ण कहते हैं। इसलिए हमें अपने भाव, अपने विचारों को प्रशिक्षित करना होगा। यदि हम सदैव कृष्ण के विचारों में रहते हैं, तो स्वाभाविक रूप से मृत्यु के समय हम कृष्ण का स्मरण कर सकते हैं। यह ही सफलता है। तत्पश्चात शीघ्र ही, त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति (भ.गी.४.९)। शीघ्र ही आप को कृष्णलोक में स्थानांतरित कर दिया जाता है, और आपकी इच्छा के अनुसार, आप गोपियों ग्वालबालों गायों तथा बछड़ों के बीच चले जाते हैं। आध्यात्मिक जगत में वे सभी समान हैं। यह ही आध्यात्मिक जगत है। यहाँ पुरुष, स्त्री, गाय , पेड़ अथवा पुष्प में कोई अंतर नहीं है। वहाँ पुष्प भी भक्त है, जीवित है। पुष्प कृष्ण की सेवा पुष्प के रूप में करना चाहता है। बछड़ा कृष्ण की सेवा बछड़े के रूप में करना चाहता है। गोपियां कृष्ण की सेवा गोपी के रूप में करना चाहती हैं। बहुरूपता सहित वे सभी समान हैं।"
७५०८०१ - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.४९ - न्यू ओर्लांस फार्म