HI/Prabhupada 0080 - कृष्ण अपने सखाओं के साथ क्रीडा करने के बहुत शौकीन है



Lecture on CC Madhya-lila 21.13-49 -- New York, January 4, 1967

ए-मत अन्यत्र नाही शुनिये अद्भुत
याहार श्रवणे चित्त हय अवधूत
कृष्ण-वत्सैर असन्ख्यातै:-शुकदेव-वाणी
कृष्ण-संगे कट गोप-संख्या नाहि जानि
(चैतन्य चरितामृत मध्य २१.१८-१९)

गोप । कृष्ण, तुम जानते हो, उनके धाम में, वे सोलह साल के लड़के की तरह हैं, और उनका मुख्य विहार है, गायों को चराने ले जाना अपने दोस्तों के साथ, ग्वाल दोस्त, और उनके साथ खेलना । यही कृष्ण का दैनिक कार्य है । तो शुकदेव गोस्वामी ने एक बहुत सुंदर श्लोक लिखा है, कि ये लडके जो कृष्ण के साथ खेल रहे हैं, उनके पिछले जनम में उन्होंने बहुत सारे पुण्य कमाए थे । कृत-पुण्य-पून्जा: (श्रीमद भागवतम १०.१२.११ ) । सकाम विजह्रु: इत्थं सताम ब्रह्म-सुखानुभूत्या (श्रीमद भागवतम १०.१२.११ ) ।

अब, शुकदेव गोस्वामी लिख रहे हैं । ये लड़के जो कृष्ण के साथ खेल रहे हैं, वे किसके साथ खेल रहे हैं ? वे परम सत्य के साथ खेल रहे हैं, जिन्हें बडे बडे ऋषि निराकार समझते हैं । इत्थं सताम ब्रह्म.. ब्रह्म-सुख । ब्रह्म, दिव्य ब्रह्म अनुभूति । ब्रह्म के अागार यहीं हैं, कृष्ण । तो ये लडके जो कृष्ण के साथ खेल रहे हैं, वे ब्रह्म अनुभूति के अागार हैं । इत्थं सताम ब्रह्म-सुखानुभूत्या दास्यं गतानाम पर-दैवतेन (श्रीमद भागवतम १०.१२.११ ) । अौर, दास्यं गतानाम (श्रीमद भागवतम १०.१२.११ ), जिन्होंने परम भगवान को अपने स्वामी के रूप में स्वीकार किया है, इसका अर्थ है भक्त, उनके लिए ये कृष्ण ही परम भगवान हैं । निर्विषेशवादियों के लिए वे परम ब्रह्म हैं, और सगुणवादियों के लिए वे परम भगवान हैं । अोर मायाश्रितानां नर दारकेनण (श्रीमद भागवतम १०.१२.११ ) । अौर जो लोग भौतिकतावाद के जादु में फसे हुए हैं, उनके लिए वे सिर्फ़ एक साधारण लड़के हैं । मायाश्रितानां नर-दारकेण साकं विजह्रु: कृत-पुण्य-पुन्जा: (श्रीमद भागवतम १०.१२.११ ) उनके साथ ये लडके, जिन्होंने लाखों और करोड़ों जन्मों का पुण्य कमाया है, अब उन्हे कृष्ण के साथ व्यक्तिगत रूप से खेलने का मौका मिला है जैसे साधारण बच्चे खेलते हैं ।

ऐसे ही, कृष्ण को अपने युवा सख़ाओं के साथ खेलना बहुत ज़्यादा पसंद है । यह ब्रह्म-संहिता में कहा गया है । सुरभीर अभिपालयन्तम, लक्ष्मी-सहस्र-शत-संभ्रम सेव्यमानं (ब्रह्मसंहिता ५.२९) । तो इन बातों कि व्याख्या यहॉ भी की गई है ।

एक एक गोप करे ये वत्स चारण कोटी,
अर्बुद, शंख, पद्म, ताहार गणन
(चैतन्य चरितामृत मध्य २१.२० ) ।

अब वहॉ इतने सारे दोस्त, ग्वाल हैं, कोई गिन नहीं सकता है । कोई भी.. असीमित, सब कुछ असीमित । उनके पास असीमित गाए, असीमित ग्वाल, हर एक चीज़ असीमित है ।

वेत्र, वेणु दल, शृंग, वस्त्र, अलंकार,
गोप-गणेर यत, तार नाहि लेखा-पार ।
(चैतन्य चरितामृत मध्य २१.२१ )

और यह ग्वाल, उनके हाथ मे डंडा रहता है - वेत्र. और हर एक के पास मुरली भी होती है । वेत्र वेणु दल । अौर कमल का फूल, और शृंगर, एक भोंपू । शृंगर वस्त्र, बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित । और बहुत सारे आभूषण । जैसे कृष्ण सुसज्जित हैं, उसी तरह से, उनके दोस्त, ग्वाल बाल भी सुसज्जित हैं ।

आध्यात्मिक जगत में, जब तुम वहाँ जाओगे, तुम्हे पता नही चलेगा कि कृष्ण कौन हैं, और कौन कृष्ण नहीं है । सब कृष्ण की तरह दिखते हैं । ऐसे ही वैकुण्ठ में सब विष्णु की तरह दिखते हैं । इसे सरुप्य-मुक्ति कहते हैं । सारे जीव, जब वे आध्यात्मिक जगत में जाते हैं, वे कृष्ण या विष्णु के जैसे बन जाते हैं - कोई अंतर नहीं है - क्योंकि वह परम जगत है ।

यहाँ अंतर है । निर्विशेषवादी, वह यह नहीं समझ सकते हैं कि अस्तित्व होते हुए भी कोई अंतर नहीं है । जैसे ही वे अस्तित्व के बारे मे सोचते हैं, अोह, उनको लगता है कि कोई अंतर है । तो फिर मुक्ति क्या है ? हाँ । असलियत मैं कोई अंतर नहीं है । अंतर यही है कृष्ण के अस्तित्व और जीवों के अस्तित्व में, वे सचेत हैं कि "कृष्ण ही हमारे प्रेम का लक्ष्य हैं ।" बस । कृष्ण केंद्र हैं । इस तरह से कृष्ण और सारे लडके और लड़कियॉ, सब परम आध्यात्मिक अानन्द का मौज़ उठा रहे हैं ।