HI/Prabhupada 0101 - हमारा स्वस्थ जीवन, स्थायी जीवन व्यतीत करने में है



Press Conference -- April 18, 1974, Hyderabad

अतिथि (१): कृष्ण भावनामृत का परम लक्ष्य क्या है ?

प्रभुपाद : हाँ, परम लक्ष्य है, कि... यह जानना कि, आत्मा और पदार्थ पृथक हैं । जैसे भौतिक ग्रह हैं, वैसे ही आध्यात्मिक ग्रह भी हैं । परस् तस्मात् तु भावः अन्यः अव्यक्तः अव्यक्तात् सनातनः (गीता ८.२०) । आध्यात्मिक जगत शाश्वत हैं, भौतिक जगत अस्थायी हैं । हम सब आत्मा हैं । हम नित्य हैं । अतः हमारा कर्तव्य है, अध्यात्मिक जगत को वापस लौट जाना । यह नहीं की हम यहाँ भौतिक जगत में रहकर, पुनः पुनः देह त्याग और देह ग्रहण करते रहें । यह हमारा कार्य नहीं है । यह हमारा रोग है । हमारा स्वस्थ्य जीवन, स्थायी जीवन व्यतीत करने में है । यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद् धाम परमं मम (गीता १५.६) । अतः मनुष्य शरीर का उपयोग उस उच्चतम पद को प्राप्त करने में लगाना चाहिए, और पुनः यह भौतिक शरीर न मिलना जिसे हमें बदलना पड़े । यही जीवन का लक्ष्य है ।

अतिथि (२): क्या यह उच्चतम पद इसी जीवन में प्राप्त किया जा सकता है ?

प्रभुपाद : हाँ, एक ही क्षण में, यदि आप विश्वास करें । कृष्ण कहते हैं कि

सर्व​-धर्मान् परित्यज्य
मां एकं शरणं व्रज
अहं त्वां सर्व​-पापेभ्यो
मोक्षयिष्यामि मा शुचः
(गीता १८.६६)

हम अपने पाप कार्यों के आधार पर, अपना शरीर बदलते हैं । किन्तु यदि हम कृष्ण को समर्पित हो जाते हैं और कृष्णभावनामृत को ग्रहण कर लेते हैं, तो उसी क्षण हम अध्यात्मिक स्तर तक उठ जाते हैं ।

मां च यो ऽव्यभिचारेण
भक्ति-योगेन सेवते
स गुणान् समतीत्य्ऐतान्
ब्रह्म​-भूयाय कल्पते
(गीता १४.२६) ।

जैसे ही आप कृष्ण के शुद्ध भक्त बन जाते हैं, त्योंही आप इस भौतिक स्तर से ऊपर उठ जाते हैं । ब्रह्म​-भूयाय कल्पते, आप अध्यात्मिक स्तर पर स्थित हो जाते हैं । और यदि आपकी अध्यात्मिक स्तर पर आकर मृत्यु होती है, तो आप अध्यात्मिक जगत में जाएँगे |