HI/Prabhupada 0122 - ये दुष्ट, उन्हें लगता है कि, "मैं यह शरीर हूँ"



Morning Walk At Cheviot Hills Golf Course -- May 17, 1973, Los Angeles

प्रभुपाद: कृष्ण कहतें हैं, "तुम पूरी तरह से आत्मसमर्पण करो। मैं तुम्हें पूरी सुरक्षा दूँगा।" अहम् त्वाम् सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि (भ गी १८.६६) वह तुम्हें संपूर्ण बुद्धि देंगे. वह हमारी महान सफलता होगी जब वैज्ञानिक दुनिया यह मानेगी। उन्हें बस स्वीकार करना है। यह हमारे कृष्णभावनामृत आंदोलन की महान सफलता होगी। तुम बस यह कबूल कर लो "हाँ, भगवान और रहस्यवादी शक्ति हैं।" तब हमारा आंदोलन बहुत सफल होगा। और यह एक तथ्य है। केवल बकवास के बीच एक बकवास की तरह बात करना, यह बहुत महान श्रेय नहीं है। अंधा यथान्धैरुपनीयमाना: ([[Vanisource:SB 7.5.31|श्रीमद्भागवतम् ७.५.३१])। एक अंधा आदमी दुसरे अंधे आदमी को रास्ता दिखा रहा है। इसका मूल्य क्या है? वे सब अंधे हैं। और जब तक कोई अंधा और बदमाश रहता है, वह परमेश्वर को स्वीकार नहीं करता। यह परीक्षण है। जैसे ही हम देखते हैं कि वह भगवान को स्वीकार नहीं करता, वह बदमाश, मूर्ख अौर अंधा है, जो कुछ भी तुम उन्हें कहो। यह तय है लेकिन, चाहे वह जो कुछ भी हो। वह एक बदमाश है। इस सिद्धांत पर हम इतने बड़े, बड़े रसायनज्ञ, दार्शनिक को चुनौती दे सकते हैं, जो कोई भी हमारे पास आता है। हम कहते हैं "तुम दानव हो।" एक अन्य रसायनज्ञ आया था, तुम लाए थे उसे, वह भारतीय?

स्वरूप दामोदर : चौरी (?)

प्रभुपाद: तो मैंने कहा, "आप एक राक्षस हो।" लेकिन वह गुस्सा नहीं हुअा। उसने स्वीकार किया। और उसके सारे तर्कों को असत्य ठहराया गया। शायद तुम्हें याद हो।

स्वरूप दामोदर: हाँ, वास्तव में, वह कह रहा था कि "कृष्ण नें मुझे सभी प्रक्रियाएं, कदम नहीं दिए, कैसे प्रयोग करना चाहिए।" वह कह रहा था।

प्रभुपाद: हाँ। मैं तुम्हें क्यों दूँ? तुम एक बदमाश हो, तुम कृष्ण के खिलाफ हो, क्यों कृष्ण तुम्हें सुविधा देंगा? तुम कृष्ण के खिलाफ हो, और तुम कृष्ण के बिना श्रेय चाहते हो, यह संभव नहीं है। सर्वप्रथम तुम्हें विनम्र होना होगा। तब श्री कृष्ण तुम्हें सभी सुविधाएं देंगे। वैसे ही जैसे हम किसी भी रसायनज्ञ, किसी भी वैज्ञानिक, किसी भी दार्शनिक का सामना करने की हिम्मत रखते हैं। क्यों? कृष्ण के बल पर, हम मानते हैं कि "कृष्ण हैं।" जब मैं उनसे बात करूँगा, कृष्ण मुझे बुद्धि देंगे।" यह मूल है। अन्यथा, योग्यता, स्तर के अनुसार, वे बहुत अधिक योग्य हैं। उनके सामने हम अाम अादमी हैं। लेकिन हम कैसे उन्हें चुनौती देते हैं? क्योंकि हम जानते हैं। जैसे छोटे बच्चे की तरह, वह एक बहुत बड़े आदमी को चुनौती दे सकता है, क्योंकि वह जानता है कि, "मेरा पिता यहाँ हैं।" वह पिता का हाथ पकड़े हुए है, और सुनिश्चित है कि "कोई भी मेरा कुछ नहीं कर सकता है।"

स्वरूप दामोदर: श्रील प्रभुपाद, मैं इसका अर्थ सुनिश्चित करना चाहता हूँ : तद् अप्यफलताम्जातम्।

प्रभुपाद: तद् अप्यफलताम्जातम्।

स्वरूप दामोदर: तेशाम् अात्माभिमानिनाम्, बालकानाम् अनाश्रित्य तेशाम् अात्माभिमानिनाम्, बालकानाम् अनाश्रित्य गोविन्द चरण द्ववयम्

स्वरूप दामोदर: "यह मानव जीवन लोगों के लिए खराब हो जाता है ... "

प्रभुपाद: हाँ। "जो कृष्णभावनामृत को समझने की कोशिश नहीं करते।" बस वह जानवर की तरह मर जाता है। बस। बिल्लियों और कुत्तों की तरह, वे जन्म भी लेते हैं, वे सोते हैं, खाते हैं, और बच्चें उत्पन्न करते हैं, और मर जाते हैं। मानव जीवन ऐसा है।

स्वरूप दामोदर: जात का मतलब है प्रजातियाँ ? जात?

प्रभुपाद: जात। जात का मतलब है जन्म लेना। अफलताम् जातम्। जात का मतलब है वह व्यर्थ होता है। व्यर्थ। वह मानव जीवन व्यर्थ हो जाता है जो गोविंद-चरण को स्वीकार नहीं करता। गोविन्दम् आदि-पुरुषम् तमहं भजामि। अगर वह इस बात पर विश्वास नहीं करता है कि, "मैं परम पुरुषोत्तम भगवान, गोविंद की पूजा करता हूँ।" तो वह बरबाद है। बस। उसका जीवन बरबाद है।

स्वरूप दामोदर: अात्माभिमानिनाम् का मतलब है.....

प्रभुपाद: आत्मा, देहात्मा-मानिनाम्

स्वरूप दामोदर: तो जो आत्म केन्द्रित हैं...

प्रभुपाद: "मैं यह शरीर हूँ।" स्वयं? उन्हें स्वयं की कोई जानकारी नहीं है। ये दुष्ट, उन्हें लगता है कि, "मैं यह शरीर हूँ।" आत्मा का मतलब है शरीर, आत्मा का मतलब है स्वयं, आत्मा का अर्थ है मन। तो इस अात्माभिमानी का मतलब है जीवन की शारीरिक अवधारणा। बालक। बालक का मतलब है एक मूर्ख, बच्चा। अात्माभिमानिनाम् बालकानाम्। जो लोग जीवन की शारीरिक अवधारणा के तहत हैं, वे बच्चे, मूर्ख, या जानवरों की तरह हैं। स्वरूप दामोदर: इसलिए मैं इस श्लोक के माध्यम से, पुनर्जन्म के सिद्धांत की व्याख्या करने की योजना बना रहा हूँ। प्रभुपाद: हाँ। स्थानांतरगमन। भ्रमद्बि: भ्रमद्बि: का मतलब है स्थानांतरगमन, एक शरीर से दूसरे में भटकना। वैसे ही जैसे मैं यहाँ हूँ। मेरा अपना शरीर है, एक पोशाक, आवरण. और जब मैं भारत जाता हूँ, तो यह आवश्यक नहीं है। तो वे एसे ले रहे हैं कि यह शरीर इस तरह से विकसित हुअा है। लेकिन नहीं। इधर, कुछ शर्त के तहत, मैं यह पोशाक स्वीकार करता हूँ। एक अन्य जगह में, कुछ शर्त के तहत, मैं एक और पोशाक स्वीकार करता हूँ। तो मैं महत्वपूर्ण हूँ, न कि यह पोशाक। लेकिन यह दुष्ट पोशाक का ही अध्ययन कर रहे हैं। इसे कहा जाता है अात्माभिमानाम्, पोशाक, शरीर का विचार।