HI/Prabhupada 0163 - धर्म का मतलब है भगवान द्वारा दिए गए संहिता और कानून



Lecture on BG 4.3 -- Bombay, March 23, 1974 जीवन का उद्देश्य है घर को वापस जाना, भगवद धाम । यही जीवन का उद्देश्य है । हम इस भौतिक बद्ध जीवन में गिर गए हैं । हम पीड़ित हैं । लेकिन हम नहीं जानते । हम इतने मूर्ख हैं । बस जानवर की तरह । जीवन का उद्देश्य क्या है हमें पता ही नहीं है । जीवन का उद्देश्य भी भगवद गीता में वर्णित है कि जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोषानुदर्शनम् (भ गी १३.९) | जब हम समझ सकते हैं कि " जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी की पुनरावृत्ति की यह प्रक्रिया, मैं यह नहीं चाहता ..." कोई भी मरना नहीं चाहता है, लेकिन मौत उस पर थोपी जाती है । वह सोचता नहीं है कि, "यह मेरी समस्या है। मैं मरना नहीं चाहता लेकिन मौत यकीनन अाएगी।" इसलिए यह समस्या है । कोई भी इस समस्या को हल करने के लिए सावधान नहीं है । वे बस लगे हुए हैं, मेरे कहने का मतलब है, अस्थायी समस्याऍ । अस्थायी समस्याऍ तो समस्याओं नहीं हैं । असली समस्या यह है कि कैसे मृत्यु को रोकें, जन्म को रोकें, बुढ़ापे को रोकें, और कैसे बीमारी को रोकें । असली समस्या यही है । यह हो सकता है जब तुम भौतिक संसार से मुक्त हो जाते हो । यही हमारी समस्या है ।

तो कृष्ण फिर से यहां आते हैं ... यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत (भ गी ४.७), धर्मस्य ग्लानि: ग्लानि: इसका मतलब है जब यह विकृत हो जाता है । तो लोग तथाकथित धर्म के नाम पर, निर्माण कर रहे हैं, "यह हमारा धर्म है ।" "यह हिंदू धर्म है ।" "यह मुस्लिम धर्म है ।" "यह ईसाई धर्म है ।" या "यह बुद्ध धर्म है ।" और "यह सिख धर्म है ।" "यह वह धर्म है, यह धर्म है ..." उन्होंने इतने सारे धर्मों का निर्माण किया है, इतने सारे धर्म । लेकिन सच्चा धर्म है धर्मम तु साक्षाद भगवत प्रणीतम ( श्रीमद भागवतम ६.३.१९) |

धर्म का मतलब है भगवान द्वारा दिए गए संहिता और कानून, भगवान द्वारा दिए गए । यही धर्म है । धर्म की सरल परिभाषा है: धर्मम तु साक्षाद भगवत प्रणीतम ( श्रीमद भागवतम ६.३.१९) | जैसे कानून राज्य द्वारा दिया जाता है, सरकार द्वारा । तुम कानून का निर्माण नहीं कर सकते । मैंने बार बार कहा है । कानून सरकार द्वारा बनाई जाती है । इसी तरह, धर्म ईश्वर द्वारा बनाया गया है । अगर तुम भगवान के धर्म को स्वीकार करते हो, तो वह धर्म है । और भगवान का धर्म क्या है? अगर तुम खड़े हो, तो तुम यहां खड़े रहो । अन्य लोग देख रहे हैं । भगवान का धर्म है ... तुम भगवद गीता में पाअगे, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज (भ गी १८.६६) । यह भगवान का धर्म है । "तुम यह सभी बकवास धर्मों को छोड़ो । तुम एक भक्त बनो, मेरे प्रति आत्मसमर्पित आत्मा बनो ।" यही धर्म है ।