HI/Prabhupada 0176 - कृष्ण तुम्हारे साथ सर्वदा रहेंगे यदि तुम कृष्ण से प्रेम करो



Lecture on SB 1.8.45 -- Los Angeles, May 7, 1973

तो हमें यह विशेष शक्ति मिली है, लेकिन हम नहीं जानते । उदाहरण उस तरह दिया जाता है । हिरण की नाभि में कस्तूरी है और जिसकी गंध बहुत अच्छी है, इसलिए वह यहाँ और वहाँ, इधर और उधर, यहाँ और वहाँ कूद रहा है । यह सुगंध कहाँ है ? उसे पता नहीं है कि वह सुगंध उसकी नाभि में ही है । आप देखते हैं । सुगंध उसी में है, लेकिन वह पता लगा रहा है, "यह कहाँ है ? यह कहाँ है ?" इसी तरह हमारे भीतर इतने सारे निष्क्रिय विशेष शक्तियाँ हैं । हम अनजान हैं । लेकिन यदि आप विशेष योग प्रणाली का अभ्यास करेंगे, उनमें से कुछ को आप बहुत अच्छी तरह से विकसित कर सकते हैं । जैसे पक्षी उड़ रहे हैं, लेकिन हम उड़ नहीं सकते हैं । कभी-कभी हम इच्छा करते हैं, "मेरे पास कबूतर के पंख होते..." कविता है: "मैं तुरंत जा सकता था ।" लेकिन वह विशेष शक्ति आपके भीतर भी है । यदि आप योग अभ्यास विकसित करें, तो आप भी हवा में उड़ सकते हैं । यह संभव है । एक ग्रह है जो सिद्धलोक कहालाया जाता है । सिद्धलोक में, निवासी, उन्हें कहा जाता है ... सिद्धलोक का अर्थ है उनके पास कई विशेष शक्तियाँ हैं । हम कई मशीनों द्वारा चंद्र ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं । वे उड़ सकते हैं । जैसे ही वे इच्छा करें, वे जा सकते हैं ।

तो यह विशेष शक्ति हर किसी में है । इसे विकसित करना होगा । परास्य शक्तिर् विविधैव श्रुयते (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.६५, तात्पर्य) । हमारे पास कई सुप्त शक्तियाँ हैं । इसको विकसित करना होगा । कृष्ण की तरह । जैसे चार या पाँच साल पहले, आपको नहीं पता था कि कृष्ण कौन हैं । प्रयास करके आप कृष्ण को समझ पा रहे हैं, भगवान क्या है, हमारा संबंध क्या है । तो मनुष्य जीवन इस तरह के प्रयास के लिए है, इसके लिए नहीं कि भौजन कहाँ है, आश्रय कहाँ है, यौन संबंझ कहाँ है । ये सब पहले से ही है । तस्यैव हेतोः प्रयतेत कोविदो न लभ्यते (श्रीमद् भागवतम् १.५.१८) । ये बातें हमारी चर्चा का विषय नहीं है । ये सब पहले से ही हैं । यह पक्षीयों और जानवरों के लिए भी पर्याप्त हैं और मनुष्यों की तो बात ही क्या है ? लेकिन वे इतने बदमाश हो गए हैं । वे केवल इन विचारों में मग्न हैं कि भौजन कहाँ है, यौन संबंध कहाँ है, आश्रय कहाँ है, रक्षा कहाँ है । यह भ्रष्ट सभ्यता है, पथभ्रष्ट । इन बातों का कोई सवाल नहीं है... समस्या बिल्कुल भी नहीं है । वे नहीं देख रहे हैं कि जानवरों को कोई समस्या नहीं है, पक्षीयों को कोई समस्या नहीं है । क्यों मानव समाज में इस तरह की समस्या होगी ? यह सब समस्या ही नहीं हैं ।

असली समस्या यह है कि कैसे जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के इस पुनरावृत्ति को रोका जाए । यह असली समस्या है । यह समस्या कृष्ण भावनामृत आंदोलन के द्वारा हल किया जा रहा है । यदि आप केवल समझें कि कृष्ण कौन हैं, तयक्त्वा देहं पुनर् जन्म नैति भ.गी. ४.९) , फिर कोई और अधिक भौतिक जन्म नहीं है । तो यह कृष्णभावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है, अगर आप कृष्ण के साथ मित्रता करें, तब अाप कृष्ण के साथ बात कर सकते हैं । जैसे युधिष्ठिर महाराज ने अनुरोध किया: "कृष्ण, कृपया कुछ दिन अौर ठहर जाइए ।" तो कृष्ण, कुछ दिन और नहीं, कृष्ण आपके साथ सदैव रहेंगे यदि आप कृष्ण से प्रेम करते हैं ।

बहुत-बहुत धन्यवाद ।