HI/Prabhupada 0191 - कृष्ण को नियंत्रित कर सकते हैं - यही वृन्दावन जीवन है



Lecture on SB 6.1.52 -- Detroit, August 5, 1975

प्रभुपाद: श्री कृष्ण की कृपा से, गुरु की कृपा से, दोनों ... एक की कृपा लेने की कोशिश न करो । गुरु कृष्ण कृपाय पाय भक्ति-लता-बीज । गुरु की कृपा से कृष्ण मिलते हैं । अौर कृष्ण सेइ तोमार, कृष्ण दिते पारो । एक गुरु के पास जाना मतलब उनसे कृष्ण की भीख माँगना । कृष्ण सेइ तोमार । क्योंकि कृष्ण हैं भक्त के कृष्ण । कृष्ण मालिक हैं, लेकिन कौन कृष्ण को नियंत्रित कर सकता है? उनका भक्त । कृष्ण सर्वोच्च नियंत्रक हैं, लेकिन वे भक्त द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं । यही, कृष्ण भक्ति-वत्सल हैं ।

बस एक बड़े पिता की तरह, एक उच्च अदालत के न्यायाधीश और ... एक कहानी है कि प्रधानमंत्री ग्लैडस्टोन, उनसे मिलने कोई अाया था । और श्री ग्लैडस्टोन ने यह सूचित किया, "रुको । मैं व्यस्त हूँ ।" वह घंटों प्रतीक्षा कर रहा था, फिर वह जिज्ञासु बन गया: "यह सज्जन क्या कर रहे हैं?" तो वह भीतर देखना चाहते थे, कि ... वह एक घोड़ा बने थे, और पीठ पर अपने बच्चे को ले जा रहे थे । यही काम वह कर रहे थे । तुम देख रहे हो? प्रधानमंत्री, वह ब्रिटिश साम्राज्य को नियंत्रित कर रहे हैं, लेकिन वह स्नेह से बच्चे के नियंत्रिण मे हैं । इसे स्नेह कहा जाता है । तो इसी तरह, कृष्ण सर्वोच्च नियंत्रक हैं ।

ईश्वर: परम: कृष्ण:
सच-चिद-अानन्द-विग्रह:
अनादिर अादिर गोविन्द:
सर्व-कारण-कारणम
(ब्रह्मसंहिता ५.१)

वे सर्वोच्च नियंत्रक हैं, लेकिन वे अपने भक्त द्वारा नियंत्रित हैं, श्रीमती राधारानी । वह नियंत्रण में हैं । तो यह आसानी से समझ में नहीं आता है लीलाऍ उनके बीच लेकिन कृष्ण स्वेच्छा से अपने भक्त द्वारा नियंत्रित किये जाने के लिए सहमत हैं । यह कृष्ण की प्रकृति है । जैसे माँ यशोदा की तरह । माता यशोदा कृष्ण को नियंत्रित कर रही हैं, उन्हें बाँध रही हैं : "तुम बहुत शरारती हो, मैं तुम्हें बांध दूँगी ।" माता यशोदा के पास एक छड़ी है, और कृष्ण रो रहे हैं । कृष्ण रो रहे हैं । इन बातों का तुम अध्ययन करो । यह श्रीमद-भागवत में कहा गया है, कुंती की प्रार्थना कैसे वह प्रशंसा कर रही है कि, " मेरे प्रिय कृष्ण, तुम परम भगवान हो । लेकिन माँ यशोदा की छड़ी के डर से तुम रो रहे हो, उस दृश्य को मैं देखना चाहती हूँ । " तो कृष्ण तो इतने भक्त-वत्सल हैं कि वे सर्वोच्च नियंत्रक हैं ।

लेकिन माता यशोदा की तरह एक भक्त, राधारानी की तरह एक भक्त, गोपियों की तरह भक्त, ग्वाल लड़कों की तरह भक्त, वे कृष्ण को नियंत्रित कर सकते हैं । यही वृन्दावन जीवन है । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन तुम्हे वहाँ ले जाने की कोशिश कर रहा है । मूर्ख व्यक्ति, वे भटक रहे हैं । उन्हे इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का मूल्य क्या है यह पता नहीं है । वे मानव समाज को सर्वोच्च लाभ, सर्वोच्च स्थिति, देने की कोशिश कर रहे हैं । वे भगवान के साथ एक नहीं होना चाहते हैं, लेकिन वे भगवान को नियंत्रित करने का अधिकार दे रहे हैं । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय !