HI/Prabhupada 0260 - इंद्रियों के अादेश द्वारा हम पापी गतिविधियों में भाग लेते चले जा रहे हैं हर जीवन में



Lecture -- Seattle, September 27, 1968

व्यावहारिक रूप से समझने की कोशिश करो कि कैसे यह इन्द्रियॉ इतनी बलवान हैं । एसा नहीं है कि केवल युवक ही इंद्रियों के दास हैं । यहां तक ​​कि पचहत्तर साल की उम्र, अस्सी साल, या मौत के द्वार पर खडे, वे सभी इन्द्रियों के नौकर हैं । इन्द्रियॉ कभी संतुष्ट नहीं होतीं । यह भौतिक आदेश है । तो मैं नौकर हूँ । मैं अपने इन्द्रियों का नौकर हूँ, और अपनी इन्द्रियों की सेवा करके, न तो मैं संतुष्ट हूँ, और न ही मेरी इन्द्रियॉ संतुष्ट हैं, न ही वे मुझ से संतुष्ट हैं । अंधाधुंध है । इसलिए यह समस्या है । तो सबसे अच्छी बात यह है कि ... इसलिए कृष्ण कहते हैं, भगवान कृष्ण कहते हैं,

सर्व-धर्मान परित्यज्य
माम एकम शरणम व्रज
अहम् त्वाम सर्व-पापेभ्यो
मोक्षयिश्यामि मा शुच:
(भ.गी. १८.६६)

तुमने अपनी इन्द्रियों की सेवा की है इतने सारे जीवन में, जीवन के बाद जीवन, ८,४००,००० जीवन की प्रजातियों में । पक्षी, वे भी इन्द्रियों के अाधीन हैं । जानवर, वे भी इन्द्रियों के अाधीन हैं । पुरुष, इंसान, और हर कोई, देवता, हर कोई इस भौतिक दुनिया में , वे इन्द्रियों की संतुष्टि में लगे हुए हैं, इंद्रियों की सेवा । लेकिन कृष्ण कहते हैं, " तुम बस मुझको आत्मसमर्पण करो ।" बस मेरी सेवा करने के लिए सहमत हो जाअो । तो मैं तुम्हारा भार उठाऊँगा ।" बस । अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिश्यामि मा शुच: | क्योंकि इंद्रियों के अादेश द्वारा हम पापी गतिविधियों में भाग लेते चले जा रहे हैं हर जीवन में; इसलिए हम शरीर के विभिन्न श्रेणी में हैं । एसा मत सोचो कि हर कोई एक ही धोरण में है । नहीं ।

अपने कर्म के अनुसार हमें शरीर का एक प्रकार मिलता है । तो विभिन्न श्रेणी के शरीर, विभिन्न प्रकार की इन्द्रिय संतुष्टि के कारण हैं । तो इन्द्रिय संतुष्टि तो सूअर के जीवन में भी होता है । क्यों उसे एक सूअर का शरीर दिया गया है ? इतना कामुक कि कोई भेदभाव नहीं कि यह मां है, बहन है, या यह कौन है, या वो कौन है । यह व्यावहारिक है, तुम देखोगे । कुत्ते और सूअर, वे ऐसे ही होते हैं । मानव समाज में भी एसे कई हैं जो परवाह नहीं करते हैं कि कौन माँ है, कौन बहन है, या कौन है ये | इन्द्रियॉ इतनी बलवान हैं । और यही हमारे सभी दुखों का कारण है, समझने की कोशिश करो ।

हम जिस त्रिताप दुख से पीड़ित हैं, जिसका हम समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं, वे इंद्रियों के इस अादेश की वजह से है । इसलिए कृष्ण हैं । कृष्ण हैं । उनका नाम है मदन-मोहन । अगर तुम अपने प्रेम को इन्द्रियों से कृष्ण को स्थानांतरित करने का प्रयास करो, तो तुम परिणाम देखते हो । तुरंत तुम पाअोगे । सेवन्मुखे हि जिह्वादौ (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) | तो यह झूठा प्रयास कि "जितना भी मैं सर्वेक्षण करता हूँ, उन सब का मैं मालिक बनना चाहता हूँ, " "जितना भी मैं सर्वेक्षण करता हूँ, मैं उसका राजा हूँ," यह रवैया छोड़ दिया जाना चाहिए । हम में से हर एक संवैधानिक रूप से नौकर है ।

अब, वर्तमान समय में, हम इंद्रियों के दास हैं । अब, यह दास्यता को बदल देना चाहिए, केवल कृष्ण । सेवनमुखे हि जिह्वादौ स्वयम एव स्फुरति अद: | और जैसे ही तुम कृष्ण की दास्यता में अाते हो, तो धीरे - धीरे जैसे जैसे तुम ईमानदार बनोगे, तो कृष्ण तुम्हे सब कुछ प्रकाशित करेंगे । और कृष्ण और तुम्हारे बीच सेवा का आदान - प्रदान बहुत अच्छा होगा । या तो तुम उसे प्यार करो दोस्त, या मालिक, या प्रेमी के रूप में....... ... इतनी सारी चीज़े हैं । किसी भी तरह से तुम उनसे प्यार करने की कोशिश कर सकते हो और तुम देखो कि कितने संतुष्ट हो । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । समझने की कोशिश करो ।