HI/Prabhupada 0288 - जब अाप भगवान की बात करते हैं, तो क्या अाप जानते हैं कि भगवान की परिभाषा क्या है?



Lecture -- Seattle, September 30, 1968

मेहमान: शायद आपने पहले से ही इस का जवाब दिया है । मैं ठीक से नहीं कह सकता । मैंने नहीं सुना । लेकिन मुझे हमेशा सिखाया गया हैम जब से मैं एक छोटा बच्चा था, भगवान से प्यार करने के लिए, और फिर मैं सब से प्यार करूँगा । भगवान श्री कृष्ण हैं ?

प्रभुपाद: हाँ । आपके पास कोई अन्य भगवान है? कृष्ण के अलावा कोई अन्य भगवान?

मेहमान: आह, सवाल क्या था? ओह, नहीं, नहीं ...

प्रभुपाद: बस भगवान को समझने की कोशिश करें ।

अतिथि: मैं नहीं जानता था कि भगवान कृष्ण हैं ।

प्रभुपाद: नहीं, हर चीज़ की कुछ परिभाषा होती है । वैसे ही जैसे अगर मैं कहूँ "यह घड़ी है ।" तो इसकी एक परिभाषा है । घडी का मतलब है वह गोल है और एक सफेद डायल और दो हाथ है, इतने सारे कांटे हैं जो समय का संकेत करते हैं । इस तरह, मैं अापको कुछ विवरण दे सकता हूँ । तो कोई भी चीज़, जो भी अाप देखते हैं या अनुभव या समझने की कोशिश करते हैं, कोई परिभाषा होनी चाहिए । तो जब अाप भगवान की बात करते हैं, तो क्या अाप जानते हैं कि भगवान की परिभाषा क्या है ?

मेहमान: हाँ । मैं सोचता था कि वे प्रेम हैं ।

प्रभुपाद: प्रेम परिभाषा नहीं है, प्रेम कार्य है । हां, प्रेम । मैं भगवान से प्रेम करता हूँ । प्रेम मेरी क्रिया है । लेकिन भगवान की कोई परिभाषा होनी चाहिए । यह भी आप जानते हैं । अभी आप भूल गए हैं । अब, एक शब्द में, वे कहते हैं "ईश्वर महान हैं ।" तो आप कैसे किसी की महानता का परीक्षण करते हैं? अगला मुद्दा । अगर आप कहते हैं कि "यह आदमी बहुत महान है," अब एक समझ होनी चाहिए कि कैसे अाप अनुमान लगाऍगे कि वे महान हैं । ये समझ के विभिन्न चरण हैं । तो आप कैसे समझते हैं कि भगवान महान हैं ? आपके हिसाब से, कि इससे, इस मुद्दे पर, ईश्वर महान हैं ?

जैसे अापके बाइबिल में यह कहा जाता है, "भगवान नें कहा है, 'सृजन होने दो,' और सृष्टि हुई ।" है कि नहीं ? यह बयान नहीं है? तो यहाँ महानता है । उन्होंने केवल कहा "सृजन होने दो," और सृजन हुअा । आप ऐसा कर सकते हैं? मान लीजिए आप बहुत अच्छे सुतार हैं । क्या अाप कह सकते हैं "एक कुर्सी का सृजन होने दो" और एकदम से एक कुर्सी अाती है? क्या यह संभव है? मान लीजिए आप इस घड़ी के निर्माता हैं । क्या आप कह सकते हैं कि "मैं कहता हूँ, घडी का सृजन होने दो" और तुरंत वहां घड़ी है ? यह संभव नहीं है ।

इसलिए भगवान का नाम है सत्य-संकल्प । सत्य-संकल्प । सत्य-संकल्प का मतलब है जो भी वह सोचते हैं, वह तुरंत मौजूद होता है । भगवान ही नहीं, लेकिन जिन्होंने योग पूर्णता को प्राप्त किया है, वे भगवान की तरह इच्छा नहीं कर सकते हैं, लेकिन लगभग । अद्भुत बातें ... एक योगी, अगर वह पूर्ण है, अगर वह कुछ इच्छा करता है कि, "मैं यह चाहता हूँ," तुरंत वह वहाँ है । यह सत्य-संकल्प कहा जाता है । इस तरह, कई उदाहरण हैं । यही महानता है । क्या मैं .. जैसे आधुनिक वैज्ञानिकों की तरह, वे कुछ अंतरिक्ष मशीन की उड़ान भरने की कोशिश कर रहे हैं, अच्छी गति में, ताकि वे चंद्र ग्रह पर जा सकें । अमेरिका, रूस और अन्य देशों से बहुत से वैज्ञानिक, वे कोशिश कर रहे हैं । लेकिन वे नहीं कर सकते हैं । उनका स्पुतनिक वापस आ रहा है ।

लेकिन भगवान की शक्ति को देखें । लाखों ग्रह बस कपास की तरह तैर रहे हैं । यह महानता है । तो कोई भी बकवास, अगर वह कहता है कि , "मैं भगवान हूँ," वह एक दुष्ट है । ईश्वर महान हैं । अाप भगवान के साथ खुद की तुलना नहीं कर सकते हैं । कोई तुलना नहीं है । लेकिन धूर्तता चल रही है । "हर कोई भगवान है । मैं भगवान हूं, तुम भगवान हो ।" - तो वह कुत्ता है । अाप भगवान की शक्ति दिखाऍ, फिर आप कह सकते हैं । सबसे पहले लायक बनें, फिर इच्छा करें । क्या शक्ति हैं अापके पास? हम हमेशा निर्भर हैं । तो ईश्वर महान हैं, और हम भगवान पर निर्भर हैं । इसलिए स्वाभाविक निष्कर्ष यह है कि हमें भगवान की सेवा करनी है यही (अस्पष्ट) पूरा है । सेवा का अर्थ है प्रेम के साथ ।

जब तक ... जैसे इन लड़कों की तरह, मेरे शिष्य, वे मेरी सेवा कर रहे हैं । जो भी मैं कह रहा हूँ, वे तुरंत क्रियान्वित कर रहे हैं । क्यों? मैं एक विदेशी हूँ, एक भारतीय हूं । दो या तीन साल पहले वे मुझे नहीं जानते थे, और न ही मैं उन्हे नहीं जानता था । वे क्यों कर रहे हैं ? यह प्रेम है । सेवा का मतलब है प्रेम का विकास । तो जब तक अाप भगवान के लिए अपने प्रेम का विकास नहीं करते हैं अाप उनकी सेवा नहीं कर सकते हैं । कहीं भी । जब अाप कुछ सेवा देते हैं तो यह प्रेम पर आधारित है । जैसे मां असहाय बच्चे को सेवा देने की तरह । क्यों? प्रेम । तो इसी तरह से, हमारा जीवन पूर्ण होगा जब हमारा प्रेम पूर्ण होगा पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के साथ । तो फिर ठीक है । आपको यह सीखना है । यह कृष्ण भावनामृत है - कृष्ण के साथ रिश्ते में । जैसे मैं अपने शिष्यों से प्रेम करता हूँ, मेरे शिष्य मुझसे प्रेम करते हैं । क्यों? माध्यम क्या है? कृष्ण ।