HI/Prabhupada 0298 - अगर तुम कृष्ण की सेवा करने के लिए उत्सुक हो, यही असली संपत्ति है



Lecture -- Seattle, October 4, 1968

प्रभुपाद: कोई प्रश्न?

विष्णुजन: कैसे हम कृष्ण को पूर्ण सेवा प्रदान कर सकते हैं?

प्रभुपाद: अपनी चिंता से । (हँसी, "हरिबोल!") अगर तुम कृष्ण की सेवा करने के लिए चिंतित हो, यही असली संपत्ति है । कृष्ण असीमित हैं । क्या सेवा कर सकते हैं हम उनकी ? और उनके असीमित सेवक भी हैं । क्या सेवा उन्हे चाहिए तुमसे और मुझसे ? वे अपने आप में परिपूर्ण हैं । उनको किसी भी सेवा की आवश्यकता नहीं है । लेकिन अगर तुम उनकी सेवा करने के लिए उत्सुक हो, तो वे मना नहीं करते हैं । ये उनकी दया है, वह उनकी उदारता है ।

तो जितना अधिक तुम कृष्ण की सेवा के लिए अपनी चिंता में वृद्धि करते हो, उतना अधिक यह पूर्ण हो जाता है । वे असीमित हैं । तुम्हारी चिंता, तुम असीमित हो जाते हो । तो प्रतिस्पर्धा है । जितना अधिक तुम कृष्ण की सेवा करते हो, उतना ही वे तुम्हे स्वीकार करते हैं और उतना अधिक वे तुम्हें बुद्धिमत्ता देते हैं । आप देखते हो ? तो आध्यात्मिक दुनिया असीमित है ।

सेवा का कोई अंत नहीं है, और सेवा को स्वीकार करने का कोई अंत नहीं है । ऐसा नहीं है । इसलिए उत्सुकता । तत्र लौल्यम एक मूल्यम (चैतन्य चरितामृत मध्य ८.७०)| यह है ... मैं जवाब का निर्माण नहीं कर रहा हूँ, लेकिन मैं तुम्हे सबूत दे रहा हूँ रूप गोस्वामी हमारे, आचार्य से । वे कहते हैं कि कृष्ण भक्ति-रस-भाविता मति: क्रीयताम यदि कुतो अपि लभ्यते: "मेरे प्रिय सज्जन, मेरे प्यारे लड़के और लड़कियों, अगर तुम खरीद सकते हो..., तुम्हारी कृष्ण से प्रेम करने की भावना - 'मैं ज्यादा से ज्यादा कृष्ण को कैसे प्रेम कर सकता हूँ ' - इतनी यह चिंता, अगर तुम इस मति: को खरीद सकते हो," - मतलब है बुद्धि; यह 'बहुत अच्छी बद्धिमत्ता है, 'मैं कृष्ण की सेवा कैसे करूँ..." कृष्ण भक्ति-रस-भाविता मति: । मति: का मतलब है बुद्धि या मन की स्थिति, कि "मैं कृष्ण की सेवा करूँगा ।" "अगर तुम मन की इस स्थिति को कहीं भी खरीद सकते हो, तो तुरंत खरीद लो ।"

तो अगला सवाल यह होगा "ठीक है, मैं खरीद लूँगा । कीमत क्या है, तुम जानते हो?" "हां, मैं कीमत जानता हूँ । " "क्या कीमत है?" "लौल्यम, बस तम्हारी उत्सुकता, बस ।" लौल्यम एकम मूल्यम (चैतन्य चरितामृत मध्य ८.७०)। "आह, मैं यह पा सकता हूँ ।" नहीं । न जन्म कोटिभिस सुकृितभिर लभ्यते । यह उत्सुकता, कृष्ण को कैसे प्रेम करें, यह कई जन्मों के बाद भी उपलब्ध नहीं होती है । तो अगर तुममे उस चिंता की एक चुटकी भी है "कैसे मैं कृष्ण की सेवा कर सकता हूँ ?" तुम्हे पता होना चाहिए कि तुम सबसे भाग्यशाली आदमी हो । एक चुटकी केवल, लौल्य, यह चिंता, "मैं कैसे कृष्ण की सेवा कर सकता हूँ ?" यह बहुत अच्छा है । फिर श्री कृष्ण तुम्हे बुद्धि देंगे ।

तेषाम सतत युक्तानाम
भजताम प्रीति पूर्वकम
बुद्धि योगम ददामि तम
(भ.गी. १०.१०)

"जो प्रेम और स्नेह के साथ मेरी सेवा में लगा है, किसी भी पाखंड के बिना, " तब श्री कृष्ण सब कुछ समझ सकते हैं । वे तुम्हारे भीतर, मेरे भीतर हैं । तब वे तुम्हे बुद्धि देंगे: "मेरे प्रिय लड़के, तुम इस तरह से करो ।" और एसा करके, क्या वह हासिल करेगा? येन माम उपयान्ति ते: "वह मेरे पास वापस आ जाएगा ।" और क्या लाभ उसे वहाँ जाकर मिलेगा? यद गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम मम (भ.गी. १५.६) | माम हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्यु: पाप योनय: ((भ.गी. ९.३२)) | दुःखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५) । वहाँ बहुत सारे हैं । कृपया करके भगवद गीता यथार्थ पढ़ें । तुम्हे सही ज्ञान मिलेगा, भगवान का विज्ञान । यही मनुष्य का अध्ययन है ।

तो बस तुम्हारी उत्सुकता ही कृष्ण की सेवा की पूर्णता है । उत्सुकता बढ़ाअो । और उत्सुकता का मतलब है अगर तुम कृष्ण से प्रेम करते हो, तो उस उत्सुकता में वृद्धि होगी तुम्हारे प्रेम की वृद्धि के साथ: "मैं कैसे कृष्ण की सेवा करूँ ?" क्योंकि तुम स्वैच्छिक दास हो, कोई भी मजबूर नहीं कर रहा है । इसका मतलब है कि जब तक तुम कृष्ण से प्रेम नहीं करते हो, वह उत्सुकता कैसे बढ़ेगी ? तो कृष्ण से प्रेम करने के लिए ऐसी बहुत सी बातें हैं । शुरुआत है श्रवणम कीर्तनम । यह श्रवणम, श्रवणम, और जप करना । श्रवण करना, तुम हरे कृष्ण श्रवण कर रहे हो, तुम भगवद गीता सुन रहे हो, तुम श्रीमद-भागवतम सुन रहे हो कृष्ण के बारे में , और जप कर रहे हो । यह शुरुआत है । फिर, स्वाभाविक रूप से,

श्रवणम कीर्तनम विष्णो:
स्मरणम पाद सेवनम
अर्चनम वंदनम दास्यम
सख्यम अात्म-निवेदनम
(श्रीमद भागवतम ७.५.२३)

कृष्ण की सेवा में ये नौ प्रकार की विभिन्न किस्में तुम्हे प्रबुद्ध करेंगी, तुम्हे कृष्ण भावनामृत में अग्रिम करेंगी, और तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा । कोई अन्य प्रश्न? समझने की कोशिश करो, प्रश्न । एसा नहीं है कि हम जबरन जोर दे रहे हैं , तुमारे पास बुद्धि है । कृष्ण नें तुम्हे बुद्धि दी है । अपनी बुद्धि से समझने की कोशिश करो, लेकिन टालने की कोशिश मत करो । अपने सवाल समझने के लिए करो, टालने के लिए सवाल मत करो । प्रश्न दो प्रकार के होते हैं । यह सवाल तुम्हारी मदद नहीं करेगा । अगर तुम टालने की कोशिश करते हो, तो कृष्ण तुम्हे टालने में मदद करेंगे, अौर अगर तुम कृष्ण पर कब्जा करना चाहते हो, तो कृष्ण तुम्हारी मदद करेंगे कि कैसे तुम कब्जा कर सकते हो । दो बातें चल रही हैं । जो पथ तुम चाहते हो, तुम स्वीकार कर सकते हो । ये यथा माम प्रपद्यन्ते तांस तथैव भजामि अहम (भ.गी. ४.११) | कृष्ण मदद करते हैं व्यक्ति के दृष्टिकोण के अनुसार ।

अगर ... हैं ... जैसे कई दार्शनिक हैं, वे कृष्ण को भूल जाना चाहते हैं । . जैसे तुम पाअोगे डॉ. राधाकृष्णन की किताब में, नौवे अध्याय में कृष्ण नें कहा है, मनमना भव मदभक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५) | अनुवाद ठीक है, लेकिन वे टिप्पणी करते हैं, "तुम्हे कृष्ण को आत्मसमर्पण नहीं करना है।" जरा देखो | इसका मतलब है उसके किताब लिखने की पूरी प्रक्रिया व्यक्तियों को गुमराह करने के लिए है, कि कैसे हम कृष्ण को भूल सकते हैं । तो अगर कोई कृष्ण को भूलना चाहता है, कृष्ण उसे एसी बुद्धिमत्ता देगा कि वह कृष्ण को समझने में कभी सक्षम नहीं होगा । लेकिन अगर कोई कृष्ण को प्रेम करने की कोशिश करता है, कृष्ण को समझने कि, तो वे पूरी बुद्धि देंगे । तुम समझ सकते हो । यही श्री कृष्ण हैं । तुम्हे पूरी आजादी मिली है । लेकिन अगर तुम कृष्ण को भूल जाते हो, तो तुम्हे माया की सेवा करनी होगी, और अगर तुम कृष्ण से प्रेम करते हो, तो माया तुम्हे छोड़ देगी ।