HI/Prabhupada 0350 - हम कोशिश कर रहे हैं लोगों को योग्य बनाने के लिए ताकि वे कृष्ण को देख सकें



Lecture on BG 7.2 -- Nairobi, October 28, 1975

ब्रह्मानंद: वे कह रहे हैं कि वेदों से हमें पता चलता है कि कृष्ण असीमित हैं, खासकर जब वे गोपियों के साथ रासलीला का प्रदर्शन कर रहे थे । इसलिए यदि कृष्ण असीमित हैं, क्यों उन्होंने नहीं किया ...?

भारतीय आदमी: खुद को दुनिया भर में प्रकट नहीं किया ताकी सभी जीवों को घर वापस जाने के लिए बराबर मौका मिल सके ? ब्रह्मानंद: क्यों स्वयं को दुनिया भर में प्रकट नहीं किया ताकी सभी जीवों को बराबर का मौका मिल सके...?

प्रभुपाद: हाँ, वह पूरी दुनिया में प्रकट हैं, लेकिन आपके पास उन्हें देखने के लिए आँखें नहीं हैं । यह तुम्हारा दोष है । कृष्ण हर जगह मौजूद हैं । लेकिन जैसे सूरज आसमान में मौजूद है । क्यों तुम अभी नहीं देख पा रहे हो ? हम्म ? इसका जवाब दो । अापको लगता है कि सूरज आकाश में नहीं है ? आपको लगता है कि सूर्य नहीं है ? तो छत पर जाओ और सूरज को देखो । (हँसी) क्यों तुम अपने आप को एक बदमाश साबित कर रहे हो कि, "नहीं, नहीं, कोई सूरज नहीं है ।" क्या यह पढे-लिखे पुरुषों द्वारा स्वीकार किया जाएगा ? क्योंकि आप सूरज नहीं देख सकते हो, तो कोई सूरज नहीं है ? क्या यह किसी भी विद्वान द्वारा स्वीकार किया जाएगा ? रात में तुम सूरज नहीं देख सकते, तो यदि तुम किसी भी विद्वान व्यक्ति से कहो, किसी भी, जो जानता है चीज़ों को, "नहीं, नहीं, कोई सूरज नहीं है," क्या वह स्वीकार करेगा ? वह कहेगा कि, "सूर्य है । बदमाश, आप नहीं देख सकते ।" बस । "अाप सिर्फ अपनी धूर्तता से बाहर निकलो । तब आप देखोगे ।" नाहम प्रकाश सर्वस्य योग-माया-समावृत: (भ.गी. ७.२५), कृष्ण ने कहा । वह दुष्टों के संपर्क में नहीं अाते, लेकिन जो जानता है, वह देख रहा है ।

प्रेमांजन-च्छुरित भक्ति विलोचनेन
संत: सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति
यम श्यामसुन्दरम अचिन्त्य गुण स्वरूपम...
(ब्रह्मसंहिता ५.३८)

भक्त हमेशा कृष्ण को देखते हैं। उनके लिए, वे हमेशा उपस्थित हैं। और दुष्टों के लिए, वे नहीं देखे जा सकते । फर्क यही है । तो आपको अदुष्ट बनना होगा, फिर आप देख पाएँगे । ईश्वर: सर्व-भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) । हर किसी के हृदय में कृष्ण उपस्थित हैं । लेकिन क्या अाप जानते हो ? आप देख सकते हो ? आप उनके साथ बात कर सकते हो ? वे अापके हृदय के भीतर हैं, वे उपस्थित हैं । लेकिन वह किसके साथ बात करते हैं ? तेषाम सतत्-युक्तानाम भजताम प्रीति-पूर्वकम ददामि बुद्धि-योगम तम (भ.गी. १०.१०) । वे अपने भक्तों के साथ बात करते हैं जो उनकी सेवा में लगे हुए हैं चौबीस घंटे । ये भगवद्गीता में दिया गया है । आप भगवद्गीता नहीं पढ़ते हैं ? तो हर चीज़ में योग्यता की आवश्यकता है । तो यह कृष्णभावनामृत आंदोलन का मतलब है हम कोशिश कर रहे हैं लोगों को योग्य बनाने की ताकि वे कृष्ण को देख सकें । योग्यता के बिना, आप कैसे देख सकते हैं ? योग्यता की आवश्यकता है ।