HI/Prabhupada 0354 - एक अंधा आदमी अन्य अन्धे अादमियों को मार्ग दिखा रहा है



Lecture on SB 2.3.2-3 -- Los Angeles, May 20, 1972

प्रद्युम्न: "तात्पर्य: मानव समाज में, दुनिया भर में, लाखों अरबों पुरुष और महिलाएँ हैं, अौर उनमें से लगभग सभी कम बुद्धिमान होते हैं क्योंकि उन्हें आत्मा की बहुत कम जानकारी होती है । "

प्रभुपाद: यह हमारे लिए चुनौती है कि लाखों-अरबों पुरुष और महिलाएँ हैं दुनिया भर में, लेकिन वे बिल्कुल बुद्धिमान नहीं हैं । यह हमारे लिए चुनौती है । तो, कृष्ण भावनामृत आंदोलन, दूसरों द्वारा देखा जा सकता है पागलपन के रूप में, या हम चुनौती देते हैं कि, "तुम सब पागल आदमी हो ।" इसलिए हमारे पास एक छोटी-सी किताब है, "पागल कौन है ?" क्योंकि वे सोच रहे हैं कि, "ये सर मुंडाये हुए लड़के और लड़कियाँ पागल हैं, " लेकिन वास्तव में वे पागल हैं । क्योंकि उनमें कोई बद्धिमत्ता नहीं है । क्यों ? वे जानते नहीं हैं कि आत्मा क्या है । यह जानवर चेतना है । कुत्ते, बिल्लियाँ, वे सोचते हैं कि यह शरीर, वे यह शरीर हैं ।

यस्याात्म-बुद्धि: कुणपे त्रि-धातुके
स्वधि: कलत्रादिशु भौम इज्य-धि:
यत तीर्थ-बुद्धि: सलिले न कर्हिचिज
जनेशु अभिज्ञेषु स एव गोखर:
(श्रीमद् भागवतम् १०.८४.१३)

गो खर: । गो का मतलब है गाय और खर: का मतलब है गधा । शारीरिक अवधारणा में जो व्यक्ति है, "मैं यह शरीर हूँ ।" तो दुनिया की पूरी आबादी का ९९.९%, वे इस तरह के हैं, "मैं यह शरीर हूँ," "मैं अमरिकी हूँ", " मैं भारतीय हूँ ", "मैं अफ्रीकी हूँ", मैं यह हूँ....." और वे लड़ रहे हैं, बस बिल्लियों और कुत्तों की तरह वे लड़ रहे हैं, "मैं बिल्ली हूँ, तुम कुत्ते हो । तुम कुत्ते हो, मैं बिल्ली हूँ ।" बस । तो यह चुनौती है कि, "तुम सब दुष्ट हो," यह एक बहुत कड़ा शब्द है, लेकिन वास्तव में यह तथ्य है । यह तथ्य है । यह एक क्रांतिकारी आंदोलन है । हम हर किसी को चुनौती दे रहे हैं कि, "तुम सब, गधे और गायों और जानवरों का एक समूह हो, क्योंकि तुम्हें इस शरीर से परे ज्ञान नहीं है ।"

इसलिए यह कहा जाता है... इस अभिप्राय में, मैंने विशेष रूप से उल्लेख किया है । "क्योंकि उन्हें बहुत थोड़ा ज्ञान है आत्मा के बारे में, वे सभी बुद्धिमान नहीं हैं ।" मैंनें बड़े, बड़े प्रोफेसरों के साथ बात की है । मास्को में, वे सज्जन, प्रोफेसर कोटोव्स्कि, उन्होंने कहा, "स्वामीजी, मृत्यु के बाद, कुछ भी नहीं है । सब कुछ समाप्त हो जाता है ।" और वे देश में बड़े प्रोफेसरों में से एक है । तो यह आधुनिक सभ्यता का दोष है, कि पूरा समाज बिल्लियों और कुत्तों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है, वास्तव में । तो कैसे कोई शांति और समृद्धि हो सकती है ? यह संभव नहीं है । अंधा यथान्धैर उपनीयमाना: । एक अंधा आदमी अन्य अन्धे अादमियों को मार्ग दिखा रहा है । अगर देखने के लिए आँखें हैं, वह सैकड़ों और हजारों पुरुषों का नेतृत्व कर सकता है, "मेरे साथ आओ । मैं सड़क पार कराता हूँ ।" लेकिन अगर मार्गदर्शक आदमी, वह खुद अंधा है, वह कैसे दूसरों का नेतृत्व कर सकता है ? अंधा यथान्धैर उपनीयमाना: । इसलिए भागवत, कोई तुलना नहीं है । नहीं हो सकती है । यह दिव्य विज्ञान है । अंधा यथान्धैर उपनीयमानास ते अपीश तन्त्र्यम उरु दाम्नि बद्ध: (श्रीमद् भागवतम् ७.५.३१) । ईश-तन्त्र्यम, ये अंधे नेता, वे भौतिक प्रकृति के नियमों से बँधे हुए हैं, और वे सलाह दे रहे हैं । वे क्या सलाह दे सकते हैं ?