HI/Prabhupada 0361 - वे मेरे गुरु हैं । मैं उनका गुरु नहीं हूँ



Lecture on BG 7.3 -- Bombay, March 29, 1971

अगर हम इस भक्ति सेवा को अपनाते हैं, तो यह जप, कृष्ण के पवित्र नाम का यह कंपन, बहुत सरल विधि, अगर हम यह अपनाते हैं ... जैसे हमनें इन लड़कों को यह जप की प्रक्रिया दी है, और उन्होंने बहुत विनम्रतापूर्वक तरीके से इसे स्वीकार किया है । और अगर वे नियमित काम करते हैं, धीरे-धीरे वे कृष्ण क्या हैं यह समझ जाएँगे । जैसे आप परमानंद में नाच रहे हैं इन उन्नत छात्रों को देख रहे हैं, आप समझ सकते हैं कि कितना वे कृष्ण को समझे हैं । एक सरल विधि । और कोई भी रोक या बंधन नहीं है: "आप हिंदू नहीं हैं ।आप हरे कृष्ण का जप नहीं कर सकते ।" नहीं । येई कृष्ण तत्व वेत्ता सेई गुरु होय (चैतन्य चरितामृत मध्य ८.१२८)। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह एक हिंदू या मुस्लिम या ईसाई या यह या वह है ।

हमें कृष्ण के विज्ञान को सीखना है, भगवद्गीता, यथार्थ । फिर वह एक आध्यात्मिक गुरु बन जाता है । ये लड़के, इस लड़के और लड़की की अभी शादी हुई है । मैं उन्हें ऑस्ट्रेलिया भेज रहा हूँ । लड़का ऑस्ट्रेलिया से आया है, लड़की स्वीडन से आई है । अब वे एकजुट हो गए हैं । अब वे सिडनी में हमारी स्थापना को सँभालेंगे । अभी मैं दो या तीन दिनों के भीतर उन्हें भेज रहा हूँ । वे मंदिर की देखभाल करेंगे और वे प्रचार भी करेंगे । यह कृष्णभावनामृत आंदोलन उनकी मदद से विस्तारित हो रहा है। मैं अकेला हूँ, लेकिन वे मेरी मदद कर रहे हैं । वे मेरे गुरु हैं । मैं उनका गुरु नहीं हूँ । (तालियाँ ) क्योंकि वे मेरे गुरु महाराज के आदेश को क्रियान्वित करने में मेरी मदद कर रहे हैं । तो यह बहुत अच्छा संयोजन है कि कोई ऑस्ट्रेलिया जा रहा है, कोई फिजी द्वीप के लिए जा रहा है, कोई हाँगकाँग जा रहा है, कोई चेकोस्लोवाकिया जा रहा है । और हम रूस जाने के लिए भी बातचीत कर रहे हैं । चीन जाने की संभावना भी है । हम प्रयास कर रहे हैं । हमने पहले से ही पाकिस्तान के लिए दो लड़कों को भेजा है - ढाका में एक और कराची में एक । (तालियाँ )

तो ये लड़के, ये अमरिकी लड़के, मेरी मदद कर रहे हैं । मुझे बहुत अफसोस है कि कोई भारतीय इस के लिए आगे नहीं आ रहा है । बेशक, कुछ हैं, लेकिन बहुत कम । उन्हें आगे आना चाहिए, भारत की युवा पीढ़ी को, उन्हें इस आंदोलन में शामिल होना चाहिए, और दुनिया भर में कृष्णभावनामृत को फैलना चाहिए । यही भारतीयों का काम है । चैतन्य महाप्रभु कहते हैं,

भारत-भूमिते हइल मनुष्य-जन्म यार
जन्म सार्थक करी कर पर उपकार
(चैतन्य चरितामृत अादि ९.४१) ।

यह परोपकार का काम, दुनिया भर में कृष्णभावनामृत का प्रसार करने का कल्याणकारी कार्य, वर्तमान समय में सबसे महत्वपूर्ण काम है । यह हर किसी को एकजुट करेगा राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, हर तरह से । कृष्ण । कृष्ण केंद्र है । यह एक तथ्य है । यह प्रगति कर रहा है । अौर अगर हम अधिक से अधिक प्रयास करते हैं, यह अधिक से अधिक प्रगति करेगा ।