HI/Prabhupada 0365 - इसे (इस्कॉन) एक मल समाज मत बनाओ । इसे एक शहद समाज बनाओ



Lecture on SB 1.5.9-11 -- New Vrindaban, June 6, 1969

तो यहाँ नारद मुनि सलाह दे रहें हैं कि, "अापने समझा दिया है ..." धर्मस्य च अर्थ । "विभिन्न साहित्य में अापने पूरे वेदों को बाँट दिया है समझ में आने वाली भाषा में, पुराण ।" पुराणों का मतलब है वेदों के लिए पूरक, वैदिक ज्ञान को गुणवत्ता के अनुसार समझाना । हर इंसान भौतिक प्रकृति के कुछ गुण के तहत है । कोई अंधेरे में हैं, या अज्ञानता में । उनमें से कुछ रजोगुण मे हैं । और उनमें से कुछ मिश्रित तमोगुण और रजोगुण मे हैं । और उनमें से कुछ प्रकाश में या सत्वगुण मे हैं । सभी एक ही स्तर पर नहीं हैं । पुरुषों के विभिन्न वर्ग हैं । जैसे हमारे हयग्रीव के पुस्तकालय में तुम्हें इतनी सारी दार्शनिक किताबें मिल जाएँगी । लेकिन अगर तुम साधारण आदमी के पास जाओ तो तुम्हें कुछ बेतुका साहित्य, कथा, और यौन मनोविज्ञान, यह, वह मिलेगा । स्वाद के अनुसार । स्वाद के अनुसार, विभिन्न स्वाद । क्योंकि पुरुषों के विभिन्न वर्ग हैं । यह अगले श्लोक में समझाया जाएगा । उन्होंने कहा कि नारद मुनि,

न यद् वचस् चित्र-पदम हरेर् यशो
जगत् पवित्रम प्रगृणीत कर्हिचित
तद वायसम तीर्थम उशन्ति मानसा
न यत्र हंसा निर्मन्ति उशीक-क्षया:
(श्रीमद भागवतम् १.५.१०)

तो वे तुलना कर रहे हैं व्यासदेव द्वारा लिखित सभी पुस्तकों का, वेदांत तत्वज्ञान सहित । वे कहते हैं कि यह वायसम तीर्थम । वायसम तीर्थम । वायसम तीर्थम का मतलब है कौवे । और कौवे, और उनकी आनंद की जगह । आपने कौओं को देखा है ? भारत में हमें कई कौवे मिलते हैं । अापके देश में कौवे बहुत नहीं हैं ... लेकिन भारत में कौवे, वे सब घटिया चीज़ों में आनंद लेते हैं। कौवे। तुम पाअोगे कि वे आनंद लेते हैं जहाँ कचरा फेंका जाता है, कूडे़दान में । वे कचरा उठाते हैं, पता लगाते हैं कि कहाँ बलगम है, कहाँ मवाद है। कहां ... चाहे ... बस मक्खियों की तरह । वे मल पर बैठती हैं । माक्षिकम भ्रामरा इच्छन्ति । और मधुमक्खियाँ, वे शहद लेने की कोशिश करेंगी । यहाँ तक कि पशुओं में भी आप देखोगे । शहद ... मधुमक्खिया मल में कभी नहीं आएँगी । और साधारण मक्खियाँ, वे शहद इकट्ठा करने के लिए कभी नहीं जाएँगी ।

इसी तरह, पक्षियों में विभाजन, जानवरों में विभाजन, मानव समाज में विभाजन है । तो तुम उम्मीद नहीं कर सकते हो कि साधारण व्यक्ति कृष्णभावनामृत में अाएगा । तुम देख रहे हो ? क्योंकि उन्हें मक्खियाँ बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, वे मल का स्वाद लेंगे । तुम देख रहे हो ? आधुनिक शिक्षा लोगों को पढ़ाने के लिए है कि मक्खी कैसे बनें, केवल मल । यहाँ नहीं, कृष्णभावनामृत में । लेकिन तुम इसे एक मधुमक्खी का छत्ता बना सकते हो । जो शहद की खोज में हैं, वे पता लगा लेंगे, "यहाँ कुछ है ।" तुम देख रहे हो ? इसे एक मल समाज मत बनाओ । तुम देख रहे हो ? इसे एक शहद समाज बनाओ । कम से कम, मौका दो, शहद ढूढ़ने वालों को । लोगों को धोखा मत दो । तो वे आएँगे ।

तो यहाँ नारद मुनि कहते हैं, "आपने इतनी सारी किताबें संकलित की हैं, ठीक है । क्या विचार है ? विचार है धर्मादय: । तुम धार्मिक सिद्धांत पढ़ा रहे हो । " बीस हैं, विंशति, धर्म-शास्त्र: । यह मनु संहिता, पराशर मुनि के कानून, और सामाजिक रीति - रिवाज, यह, वह । बहुत सारे हैं । ये मूल रूप से अलग संतों द्वारा दिए गए हैं, लेकिन व्यासदेव ने उसे उचित उपयोग के लिए संकलित किया है । लोग उन्हें समझ सकते हैं । तो उन्होंने सभी पुस्तकों की व्याख्या की है मानव समाज के इस्तेमाल के लिए, निस्संदेह । कैसे धार्मिक बनें, आर्थिक स्थिति को कैसे विकसित करें, मुक्ति को कैसे समझें, कैसे संतुष्ट रहें, प्रतिबंधपूर्वक, इन्द्रिय-संतुष्टि ।

जैसे किताबों में, व्यासदेव की किताबों में, तुम्हें यह विभिन्न प्रकार के मिलेंगे ... जैसे जो मांस खाते हैं । वह भी व्यासदेव द्वारा बताया गया है, तामसिक-पुराण में, पुराण ऐसे लोगों के लिए जो तमोगुण में हैं । तो वह किसी को भी इनकार नहीं करते हैं । उन्होंने इस तरह से किताबों को बनाया है कि कोई भी व्यक्ति जो यह किताबें पढ़ता है... जैसे एक स्कूल में विभिन्न वर्ग हैं और विभिन्न पुस्तकों को विभिन्न वर्गों के लिए संस्तुति की जाती है । इसी तरह, व्यासदेव ने इतनी अच्छी तरह से पूरे वैदिक साहित्य को पुराणों के रूप में दिया है, कि कोई भी आदमी उच्चतम स्थिति तक ऊपर उठाया जा सकता है इस तरह की किताबें पढ़कर । उदाहरण के लिए जो नशे का, मांस खाने का और यौन-जीवन का आदी है, यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है । लोके व्यवाायामिश-मद्य-सेवा नित्या हि जन्तोर न हि तत्र चोदना । (श्रीमद भागवतम् ११.५.११), किसी को भी पढ़ाने की ज़रूरत नहीं है, पढ़ाने की । किसी को भी कैसे संभोग करना है यह सिखाया जाना ज़रूरी नहीं है । किसी को भी पढ़ाने की ज़रूरत नहीं है, मेरा मतलब है, नशा करने के लिए । आप देख रहे हो नशा, नशे में धुत्त व्यक्ति, वे स्वतः ही हो गए हैं ? कोई विश्वविद्यालय नहीं है । कोई शिक्षा प्रणाली है ।

"तुम... यह एलएसडी ले लो ।" नहीं । यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है । शराब, एलएसडी, गांजा, पान लेने के लिए, नशे में धुत्त होना, ओह, बहुत आसानी से आप जान सकते हो । यौन जीवन का उपयोग करना ... लोके व्यवाय.... ये स्वाभाविक प्रवृत्ति है । वे हो सकते हैं ... स्वत: वे हो सकते हैं । कोई सवाल ही नहीं है ... फिर किताब का क्या फायदा है ? किताब है प्रतिबंधित करने के लिए । वे यह नहीं जानते । व्यासदेव जब सलाह दे रहे हैं कि तुम्हें विवाह के माध्यम से यौन-जीवन करना चाहिए, इसका मतलब प्रतिबंध है । मतलब है प्रतिबंध । तुम बिना रोक-टोक यहाँ और वहाँ यौन जीवन नहीं कर सकते । एक पत्नी या एक पति है, और वह भी सीमित है: केवल बच्चे पैदा करने के लिए यौन जीवन हो सकता है । ऐसी बहुत-सी बातें हैं ।

पूरा विचार प्रतिबंध का है । एेसा नहीं है कि, "क्योंकि मुझे एक पत्नी मिली है यह यौन जीवन के लिए एक मशीन है ।" नहीं, नहीं । एक शादी का मतलब यह नहीं है । शादी का मतलब यह नहीं है । यह प्रतिबंध है । पूरी वैदिक सभ्यता, पुरुषों को दिव्य मंच पर लाने के लिए है, उसकी सारी बकवास आदतों को सीमित करके शून्य करने के लिए है । लेकिन सब अचानक नहीं । धीरे-धीरे, गुणवत्ता के अनुसार । इसी तरह, मांस खाने का आदी जो है: "ठीक है ।" वैदिक साहित्य कहता है, " ठीक है । तुम मांस खा सकते हो । लेकिन देवता के सामने एक पशु का बलिदान करो, देवी काली, और तुम खा सकते हो ।" ताकी जो आदमी मांस खा रहा है, वह विद्रोह न करे ।