HI/Prabhupada 0405 - राक्षस समझ नहीं सकते हैं कि भगवान एक व्यक्ति हैं । यह आसुरी है



Lecture on SB 7.7.30-31 -- Mombassa, September 12, 1971

राक्षस समझ नहीं सकते हैं कि भगवान एक व्यक्ति हैं । यह आसुरी है । वे नहीं ... वे समझ नहीं सकते हैं । मुश्किल यह है कि एक राक्षस भगवान को समझने की कोशिश करता है खुद के साथ तुलना करके । डॉ. मेंढक, डा. मेंढक की कहानी । डॉ. मेंढक अटलांटिक महासागर को समझने की कोशिश कर रहा है, अपने तीन फुट के कुऍ के साथ तुलना करके, बस । जब उसे बताया जाता है कि अटलांटिक महासागर है, तो वह सिर्फ अपने सीमित स्थान के साथ उसकी तुलना करता है । यह चार फीट हो सकता है, या पांच फुट हो सकता है, यह दस फुट हो सकता है क्योंकि वह तीन फीट के भीतर है । उसके दोस्त ने सूचित किया "ओह, मैंने पानी का एक जलाशय देखा है, विशाल पानी ।"

तो वह उस विशालता, वह सिर्फ अंदाज़ा लगा रहा है, "कितना विशाल हो सकता है? मेर कुअॉ तीन फीट है, वह चार फुट, पांच फुट, "अब यह ऐसे सोच रहा है । लेकिन वह लाखों फीट बढाकर सोचे, लेकिन फिर भी वह उससे बडा है । यह दूसरी बात है । इसलिए, नास्तिक व्यक्ति, राक्षस, वे अपने तरीके से सोचते रहते हैं कि भगवान, श्री कृष्ण, इस तरह से हो सकते हैं, कृष्ण एसे हो सकते हैं, श्री कृष्ण वैसे हो सकते हैं । आम तौर पर वे सोचते हैं कि मैं कृष्ण हूँ । कैसे कहते हैं? कृष्ण महान नहीं है । उन्हे विश्वास नहीं है कि ईश्वर महान है । वह सोचता है कि भगवान मेरी ही तरह है, तो मै भी भगवान हूँ । यह राक्षसी है ।