HI/Prabhupada 0415 - छह महीने के भीतर तुम भगवान बन जाओगे, मूर्ख निष्कर्ष



Lecture & Initiation -- Seattle, October 20, 1968

तो जीवन की अवधि इस युग में बहुत अनिश्चित है। किसी भी समय हम मर सकते हैं। लेकिन यह जीवन, मानव जीवन, एक उदात्त लाभ के लिए है। वह क्या है? हमारे जीवन की दयनीय हालत का स्थायी समाधान करने के लिए । इस में ... जब तक हम इस भौतिक रूप में हैं, यह शरीर, हमें एक शरीर से दूसरे में बदलना होगा, एक शरीर से दूसरे को । जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि (भ.गी. १३.९)। पुनरावृत्त जन्म, पुनरावृत्त मौत । आत्मा अमर है, शाश्वत है, लेकिन बदल रही है, जैसे तुम पोशाक बदल रहे हो। तो इस समस्या पे वे धान नहीं दे रहे हैं, लेकिन यह एक समस्या है । मानव जीवन इस समस्या का एक समाधान करने के लिए है, लेकिन न तो उनके पास किसी भी प्रकार का ज्ञान है, और न ही वे इन समस्याओं का हल निकालने के बारे में बहुत गंभीर हैं। तो अवधि, अगर तुम्हे जीवन की एक लंबी अवधि मिलती है, तो मौका है कि तुम किसी से मिल सकते हो, तुम्हे कुछ अच्छी संगत मिल सकती है ताकि तुम अपने जीवन का समाधान कर सको । लेकिन यह भी अब असंभव है क्योंकि हमारे जीवन की अवधि बहुत कम है ।

प्रायेण अल्पायुश: सभ्य कलौ अस्मिन् युगे जना: मन्दा: । और जो भी हमें जीवन की अवधि मिली है, हम उसका ठीक से उपयोग नहीं कर रहे हैं । हम बस जानवर की तरह इस जीवन का उपयोग कर रहे हैं, सिर्फ खाना, सोना, संभोग और बचाव । बस । इस उम्र में अगर कोई भर पेट खाता है, वह सोचता है, "ओह, मेरे दिन का कार्य समाप्त हो गया है। " अगर कोई एक पत्नी और दो या तीन बच्चों का पालन कर सकता है, तो माना जाता है कि वह एक बहुत बड़ा आदमी है। वह एक परिवार का पालन कर रहा है। क्योंकि ज्यादातर वे किसी भी जिम्मेदारी के बिना, परिवार के बिना हैं। यह इस उम्र के लक्षण हैं। तो हालाँकि हमें कम अायु का जीवन मिला है, फिर भी हम बहुत गंभीर नहीं हैं।

मंदा: बहुत मन्द गति से। जैसे यहॉ, हम इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रचार कर रहे हैं। कोई भी गंभीर नहीं है जानने के लिए या समझने के लिए कि यह आंदोलन क्या है। अौर अगर किसी को दिलचस्पी है तो वे धोखे में रहना चाहते हैं। वे कुछ सस्ता चाहते हैं आत्मज्ञान के लिए । उनके पास पैसा है, वे कुछ फीस का भुगतान करना चाहते हैं किसी को, और अगर वह कहता है कि "मैं तुमको कुछ मंत्र देता हूँ और तुम, पंद्रह मिनट का ध्यान करो, छह महीने के भीतर तुम भगवान बन जाअोगे," वे चाहते हैं यह चीजें। मंदा: मंदा-मतयो । मंदा-मतयो का मतलब है बहुत मूर्ख निष्कर्ष । वे सोचते नहीं है कि "क्या जीवन की समस्याओं का समाधान, केवल पैंतीस डॉलर देकर खरीदा जा सकता है? " वे इतने मूर्ख बन गए हैं। क्योंकि अगर हम कहते हैं कि अपने जीवन की समस्याओं का समाधान करने के लिए तुम्हे इन सिद्धांतों का पालन करना होगा, "ओह, यह बहुत मुश्किल है। मुझे पैंतीस डॉलर का भुगतान करने दो और हल निकल अाएगा, एक समाधान निकल अाएगा । " तुम देख रहे हो?

तो वे धोखे में रहना चाहते हैं। वे कहे जाते हैं मंदा-मतयो। और धोखेबाज आते हैं और उन्हें धोखा देते हैं। मंदा: सुमंद-मतयो मंद-भाग्या (श्रीमद भागवतम १.१.१०) । मंद-भाग्या का मतलब है कि वे बदकिस्मत भी हैं । अगर भगवान भी आते हैं और खुद का प्रचार करते हैं, "मेरे पास आओ ।" ओह, वे इसकी भी परवाह नहीं करते हैं। तुम देख रहे हो? इसलिए बदकिस्मत । अगर कोई आता है और तुम्हे दस लाख डॉलर देने का प्रस्ताव रखता है, अगर तुम कहते हो, "मुझे यह पसंद नहीं है," तो क्या तुम बदकिस्मत नहीं हो? तो चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि

हरेर् नाम हरेर् नाम हरेर् नाम एव केवलम्
कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१)

"आत्मज्ञान के लिए तुम बस हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और परिणाम देखो ।" नहीं। वे स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए बदकिस्मत हैं। अगर तुम सबसे अच्छा प्रचार कर रहे हो, सबसे आसान प्रक्रिया, लेकिन वे स्वीकार नहीं करेंगे, वे धोखे में रहना चाहते हैं ... तुम देख रहे हो? मंदा: सुमंद-मतयो मंद-भाग्या हि उपद्रता: (श्रीमद भागवतम १.१.१०) । और इतनी सारी बातों से परेशान - यह ड्राफ्ट बोर्ड, यह बोर्ड, वह बोर्ड, इतनी सारी चीजें । यह उनकी स्थिति है। छोटा जीवन, मंद गति, कोई समझ नहीं है । और अगर वे समझना चाहते हैं, वे धोखे में रहना चाहते हैं, वे बदकिस्मत हैं, और परेशान । यह वर्तमान दिनों की स्थिति है। कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम अमेरिका में या भारत में पैदा हुए हो, यही हर जगह की स्थिति है।