HI/Prabhupada 0436 - सभी हालतों में हंसमुख हो जाएगा, और वह केवल कृष्ण भावनामृत में दिलचस्पी रखेगा



Lecture on BG 2.8-12 -- Los Angeles, November 27, 1968

भक्त: श्लोक ११, श्री भगवान ने कहा: "ज्ञान भरे शब्दों में बात करते हुए तुम उसके लिए शोक मना रहे हो जो विलाप के योग्य नहीं है । जो बुद्धिमान हैं वे न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए विलाप करते हैं (भ.गी. २.११) |"

तात्पर्य: "भगवान नें तत्काल एक शिक्षक का स्थान ले लिया और अपने छात्र को डाटा, परोक्ष रूप से उसे एक मूर्ख बुलाया । प्रभु नें कहा "तुम एक विद्वान व्यक्ति की तरह बात कर रहे हो, लेकिन तुम्हे पता नहीं है कि कौन विद्वान है, जो यह जानता है कि शरीर क्या है और आत्मा क्या है, अौर शोक नहीं करता है शरीर की किसी भी स्थिति के लिए, जीवन में नहीं और न ही मृत हालत में । ' जैसे कि बाद के अध्यायों में बताया गया है, यह स्पष्ट हो जाएगा कि ज्ञान का मतलब है जानना पदार्थ और अात्मा को और दोनों के नियंत्रक को । अर्जुन नें तर्क किया कि धार्मिक सिद्धांतों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए राजनीति या समाजशास्त्र की तुलना में, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि पदार्थ, आत्मा और परम का ज्ञान ज्यादा महत्वपूर्ण है धार्मिक औपचारिकताअों से । अौर क्योंकि उनमें इस ज्ञान की कमी थी, उन्हे एक बहुत विद्वान व्यक्ति के रूप में खुद को पेश नहीं करना चाहिए | क्योंकि वे एक बहुत विद्वान आदमी नहीं थे, फलस्वरूप वे विलाप कर रहे थे उसके लिए जो विलाप के योग्य नहीं था । शरीर का जन्म होता है और आज या कल समाप्त होना उसकी किस्मत है । इसलिए शरीर आत्मा की तरह महत्वपूर्ण नहीं है । जो यह जानता है वही वास्तव में विद्वान है । उसके लिए भौतिक शरीर की किसी भी स्थिति में विलाप का कोई कारण नहीं है ।"

प्रभुपाद: वे कहते हैं, श्री कृष्ण कहते हैं, कि "यह शरीर जिंदा या मुर्दा, विलाप के योग्य नहीं है ।" मृत शरीर, मान लो जब शरीर मर चुका है, उसका कोई मूल्य नहीं है । विलाप का क्या उपयोग है? तुम कई हजारों वर्षों के लिए विलाप कर सकते हो, यह वापस जीवित नहीं होगा । तो मृत शरीर पर विलाप का कोई कारण नहीं है । और अब जहाँ तक आत्मा का संबंध है, वह अनन्त है । अगर वह मर हुअा भी लगता है, या यह शरीर की मृत्यु के साथ, वह मरता नहीं है । तो क्यों कोई अभिभूत हो, "ओह, मेरे पिता, मर चुके है, मेरी फलाना रिश्तेदार, मर चुके है " और रो रहा है? वह मरा नहीं है । यह ज्ञान हमें होना चाहिए । फिर वह सभी हालतों में प्रसन्न हो जाएगा, और वह केवल कृष्ण भावनामृत में दिलचस्पी रखेगा । जीवित या मृत शरीर के लिए विलाप करने का कोई कारण नहीं है । यही इस अध्याय में कृष्ण ने निर्देश दिया है । अागे पढो ।

भक्त: "एसा कोई समय नहीं था जब मैं नहीं मौजूद था, या तुम, या ये सभी राजा । और न ही भविष्य में हम में से कोई मौजूद नहीं रहेगा । (भ.गी. २.१२) "

तात्पर्य: "वेदों में, कठ उपनिषद में, साथ ही श्वेताश्वतर उपनिषद में, यह कहा गया है कि ..."

प्रभुपाद: (उच्चारण को ठीक करते हुए) श्वेताश्वतर । कई उपनिषद हैं, उन्हें वेद कहा जाता हैं । उपनिषद वेदों की सुर्खियॉ हैं । जैसे एक अध्याय का एक शीर्षक होता है, इसी प्रकार यह उपनिषद वेदों की सुर्खियॉ हैं । १०८ उपनिषद हैं, मुख्य । उनमे से, नौ उपनिषद बहुत महत्वपूर्ण हैं । तो उन नौ उपनिषदों में, श्वेताश्वतर उपनिषद, तैत्तिरेय उपनिषद, अैतरेय उपनिषद, ईशोपनिषद, ईश उपनिषद, मुन्डक उपनिषद, मान्डूक्य उपनिषद, कठोपनिषद, यह उपनिषद बहुत महत्वपूर्ण हैं । और जब भी तर्क होता है किसी बात पर, हमें इन उपनिषदों से संदर्भ देना चाहिए ।