HI/Prabhupada 0460 - प्रहलाद महाराज साधारण भक्त नहीं हैं , वह नित्य-सिद्ध हैं



Lecture on SB 7.9.7 -- Mayapur, February 27, 1977

तो प्रहलाद महाराज... पिता के साथ कुछ मतभेद था, लेकिन वे साधारण व्यक्ति नहीं थे । उनके पिता हो सकते हैं... वह एक बहुत, बहुत बड़े आदमी हैं, आप देखते हो । उन्होंने पूरे ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त की । तो वे एक गरीब आदमी के बेटे नहीं थे । वे बहुत अमीर आदमी के बेटे थे, प्रहलाद महाराज । और वह पर्याप्त रूप से अपने पिता द्वारा शिक्षित किए गए थे । बेशक, पांच साल के भीतर । तो जन्मैश्वर्य-श्रुत-श्री । सब कुछ था, लेकिन प्रहलाद महाराज भौतिक परिस्थितियों पर निर्भर नहीं कर रहे थे । वे निर्भर कर रहे थे अपनी उन्मादपूर्ण दिव्य आनंद से भरी भक्ति सेवा पर । यही चाहिए । तो उस अवस्था पर तुरंत हम नहीं पहुँच सकते हैं । वह नित्य-सिद्ध हैं ।

जैसे मैं समझा जा रहा था, जब भी कृष्ण अवतरित होते हैं, उनके नित्य-सिद्ध भक्त, सहयोगी, वे भी आते हैं । तो गौरंगेर संगी-गणे नित्य-सिद्ध बोली माने, तार हय व्रजभूमी वास, ऐसे, नरोत्तम दास ठाकुर... जैसे, श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधार श्रीवासादि गौरा भक्त वृन्द । तो चैतन्य महाप्रभु के यह सहयोगी वे नित्य-सिद्ध हैं । तुम उन्की अवहेलना नहीं कर सकते हो अौर अपनी कल्पना से, कि: "मैं बस पूजा करूँगा..." (तोड़) कृष्ण प्रकट हुए - पंच-तत्व । कृष्ण ईश हैं, और नित्यानंद प्रभु, वे प्रकाश हैं, भगवान के पहले विस्तार । भगवान के कई विस्तार हैं । अद्वैत अच्युत अनादि अनंत-रूपम अाद्यम पुराण-पुरुषम (ब्रह्मसंहिता ५.३३) | उनके हजारों और हजारों हैं ।

तो पहला विस्तार बलदेव-तत्त्व, नित्यानंद हैं; और उनके अवतार, अद्वैत; और उनकी आध्यात्मिक शक्ति, गदाधर; और उनकी तटस्थ शक्ति, श्रीवास । तो चैतन्य महाप्रभु अवतरित हुए हैं पंच के साथ ..., पंच-तत्वात्मकम । तुम कुछ भी उपेक्षा नहीं कर सकते हो । अगर तुम सोचते हो कि "मैं बस पूजा करेगा...," ओह, वह एक महान अपराध है, "... चैतन्य महाप्रभु या केवल चैतन्य-नित्यानंद" नहीं । तुम्हे पूजा करनी चाहिए पंच-तत्व, पंच-तत्वात्मकम कृष्णम, पूर्णता से । इसी तरह, हरे कृष्ण महा मंत्र, सोलह नाम, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, (भक्त जपते हैं) हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । तो तुम मिश्रण नहीं कर सकते हो । तुम्हे शास्त्र के अनुसार करना चाहिए । महाजन येन गत: स पंथा: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६) |

अगर तुम शास्त्र से विचलित होते हो, तो तुम कभी सफल नहीं होगे ।

य: शास्त्र विधिम उत्सृज्य
वर्तते काम-कारत:
न सिद्धिम अवाप्नोति
न सुखम न पराम गतिम
(भ.गी. १६.२३)
तो अगर तुम प्रहलाद महाराज के स्तर पर पहुँचना चाहते हो, हमें तुरंत उनकी नकल नहीं करनी चाहिए । हमें पालन करना चाहिए साधना-भक्ति, साधना-भक्ति, सामान्य तरीके से; और कृपा-सिद्ध, वह विशेष है । यह अनगिनत है । अगर कृष्ण चाहते हैं, तो वे तुरंत किसी को बहुत महत्वपूर्ण बना सकते हैं । यही कृपा-सिद्ध है । तो भक्तों की तीन श्रेणियां हैं: नित्य-सिद्ध और साधना-सिद्ध और कृपा-सिद्ध । प्रहलाद महाराज नित्य-सिद्ध हैं । वे साधारण साधना-सिद्ध नहीं हैं या... बेशक, अंत में कोई अंतर नहीं है, साधना-सिद्ध या कृपा-सिद्ध या नित्य-सिद्ध, लेकिन हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रहलाद महाराज साधारण भक्त नहीं हैं, वह नित्य-सिद्ध हैं । इसलिए तत्काल उनमे दिव्य लक्षण का विकास हुअा, अष्ट-सिद्धि । अष्ट-सिद्धि, तुमने भक्तिरसामृतसिन्धु में पढ़ा होगा । 

तो परमानंद, एकाग्र-मनसा । एकाग्र-मनसा, "पूरे ध्यान के साथ ।" हमें पूरा ध्यान लगाने के लिए सैकड़ों और हजारों वर्ष लग सकेते हैं, पूरा ध्यान । लेकिन प्रहलाद महाराज - तुरंत । तत्काल, पांच साल का लड़का, क्योंकि वे नित्य-सिद्ध हैं । हमेशा हमें याद रखना चाहिए कि हम नकल नहीं कर सकते हैं । "अब, प्रहलाद महाराज तुरंत एकाग्र-मनासा, और मैं भी बन जाऊँगा।" नहीं । यह संभव नहीं है । संभव हो सकता है, लेकिन उस तरह से नहीं हो सकता है ।