HI/Prabhupada 0487 - कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह बाइबिल है या कुरान या भगवद गीता । हमें देखना है कि फल क्या है



Lecture -- Seattle, October 18, 1968

प्रभुपाद: तो, कोई अन्य प्रश्न?

जाहनवा: यीशु मसीह भावनामृत और कृष्ण भावनामृत शब्द तो इतने समान हैं । कृपया शब्द को जोडें, समझाए कि कैसे ये शब्द हमारे पास अाए ।

प्रभुपाद: वो मैंने कई बार समझाया है कि - एक पॉकेट डिक्शनरी और अंतर्राष्ट्रीय शब्दकोश । तुम नहीं कह सकते की जेब शब्दकोश कोई शब्दकोश नहीं है, लेकिन यह एक खास वर्ग के छात्र के लिए है । और आंतरराष्ट्रीय शब्दकोश एक खास वर्ग के छात्र के लिए है । वे सभी छात्र हैं । यीशु मसीह थे... यीशु मसीह द्वारा जो कहा गया था, वह भी भगवद भावनामृत है, लेकिन वह पुरुषों के एक खास वर्ग के लिए था । और यह पुरुषों का क्या वर्ग था ? वे पूरी तरह से सभ्य भी नहीं हैं । क्योंकि यीशु मसीह भगवान चेतना समझा रहा थे, यह उनकी गलती थी, और उन्होंने उन्हे सूली पर चढ़ाया । कैसे वर्ग के पुरुष थे वे ? अनुमान लगाअो । उनकी यही गलती थी कि वह भगवान क्या हैं यह समझा रहे थे और उन्होंने उन्हे सूली पर चढ़ाया । इनाम था सूली पर चढ़ाना । तो वह पुरुषों का किस तरह का वर्ग था ? समाज की स्थिति, समझने की कोशिश करो ।

इसलिए जो प्रभु यीशु मसीह द्वारा कहा गया था उनके लिए, वह पर्याप्त था । लेकिन जब भगवद गीता अर्जुन के जैसे एक व्यक्ति को बताई जाती है, यह अलग बात है । तो हमें समय के अनुसार, परिस्थितियों के अनुसार, दर्शकों के अनुसार बात करनी होगी । क्या तुम देख नहीं रहे हो कि यहां केवल कुछ व्यक्ति ही भाग ले रहे हैं ? क्यों? वे इस कृष्ण विज्ञान, कृष्ण भावनामृत, को नहीं समझ सकते । यह पुरुषों के सभी वर्गों के लिए नहीं है । यह उच्चतम स्तर का भगवद भावनामृत है । प्रेम । भगवान के लिए प्रेम । तो भगवान के प्रेम की शिक्षा भी है, बेशक । यह अंतर है । एक ही बात । हमेशा समझने की कोशिश करो । छोटी पॉकेट डिक्शनरी प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिए है, और अंतरराष्ट्रीय शब्दकोश है उच्चतर छात्रों के लिए, अनुस्नातक छात्र, वे दोनों शब्दकोश हैं । लेकिन यह किसी के लिए है, अौर वह किसी और के लिए है । और परीक्षण है फलेन परिचीयते ।

फलेन परिचीयते, तुम्हे समझना होगा । मान लो तुम एक जंगल में यात्रा कर रहे हो । तो कई पेड़ हैं । लेकिन तुम समझ नहीं सकते हो कि यह पेड़ क्या है, वह क्या है । लेकिन जैसे ही तुम फूल देखते हो, "ओह, यहां सेब है । ओह, ये सेब के पेड़ है ।" जैसे उस दिन तुम मुझे बता रहे थे, तुमने सेब का पेड़ कभी नहीं देखा? हां । अब, जैसे ही तुमने सेब को देखा, तुम्हे समझ में आया "यह सेब का पेड़ है । ओह! " किसी भी शास्त्र की परीक्षा है हम परमेश्वर के लिए प्रेम को कैसे विकसित कर रहे हैं । फलेन परिचीयते । यदि तुम पाते हो कि कुछ धार्मिक सिद्धांतों का पालन करके, तुम भगवान के लिए अपने प्यार को विकसित कर रहे हो, तो यह सही है । कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह बाइबिल है या कुरान या भगवद गीता । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है । हमें देखना है कि फल क्या है । अगर फल है कि लोग भगवान के लिए प्रेम को विकसित कर रहे हैं, तो यह सही है । यह समझने की कोशिश मत करो कि क्या यह अच्छा है, यह बुरा है, यह है... नहीं । परिणाम को समझने की कोशिश करो ।

उसी तरह जैसे: अगर तुम फल देखते हो, तो यह प्रथम श्रेणी है । तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह बाइबिल है या गीता । अगर तुम भगवान के लिए प्रेम को विकसित कर सकते हो बाइबल पढ़ने के द्वारा, तो यह प्रथम वर्ग का है, अौर अगर तुम भगवान के लिए प्रेम को विकसित कर सकते हो भगवद गीता से, तो यह भी प्रथम वर्ग का है । अौर अगर तुम नहीं करते हो , तो ये बाइबिल या कुरान या भगवद गीता, यह तुम पर कोई प्रभाव नहीं करता है । तो यह तुम पर निर्भर है । तुलना द्वारा नहीं, लेकिन तुम्हारी खुद के कार्यो से । अगर वास्तव में तुम प्रभु यीशु मसीह के द्वारा दिए गए निर्देश का पालन करत हो, तुम्हे भी भगवान के लिए प्रेम का विकास होगा । इसमें कोई शक नहीं है ।

इसी प्रकार अगर तुम कृष्ण की शिक्षा का पालन करते तो यदि, तो तुमारा विकास होगा । तो यह तुम पर निर्भर है । तुम पालन करने की कोशिश करो । अगर तुम पालन नहीं करते हो, बस एक तुलनात्मक अध्ययन करने की कोशिश करते हो, "यह अच्छा है" या "यह बुरा है," "यह बुरा है" या "यह अच्छा है।" यह कहा जाता है, श्रम एव हि केवलम (श्रीमद भागवतम १.२.८) - बस श्रम करना । क्यों तुलनात्मक अध्ययन? बस तुम देखो कि कितना तुम भगवान के लिए प्रेम विकसित कर रहे हो, बस । फलेन परिचीयते । "यहॉ सेब है या नहीं, यह ठीक है; कोई बात नहीं कि यह पेड़ कौन सा है । मुझे सेब से मतलब है ।"