HI/Prabhupada 0502 - बकवास धारणाओं का त्याग करो, कृष्ण भावनामृत की उदारता को लो



Lecture on BG 2.15 -- Hyderabad, November 21, 1972

तो प्रहलाद महाराज सलाह दे रहे हैं कि "तुम यह सब बकवास धारणाअों का त्याग करो" | वनम गतो यद धरिम अाश्रयेत (श्रीमद भागवतम ७.५.५) । सिर्फ वनम गत:, इसका मतलब है कि जीवन के इस अवधारणा से मुक्त हो जाअो, गृहम अंध-कूपम | कृष्ण भावनामृत की उदारता को अपनाओ । फिर तुम खुश हो जाअोगे । हित्वात्म-पातम गृहम अंध-कूपम वनम गतो यद धरिम अाश्रयेत (श्रीमद भागवतम ७.५.५) | हरीम अाश्रयेत । वास्तविक कार्य है हरीम अाश्रयेत । वनम गत: । वनम गत: का मतलब है वन में जाना । पूर्व में, गृहस्थ जीवन के बाद, वानप्रस्थ जीवन, सन्यास जीवन, वे जंगल में रहते थे । लेकिन जंगल जाना जीवन का मुख्य उद्देश्य नहीं है । क्योंकि जंगल में कई जानवर हैं । क्या इसका मतलब यह है कि वे आध्यात्मिक जीवन में उन्नत है? उसे मर्कट वैराग्य कहा जाता है मर्कट वैराग्य का मतलब है बंदर वैराग्य ।" बंदर नग्न है । नाग-बाबा । नंगे । और फल खाता है, बंदर, और जीवन व्यतीत करता है एक पेड़ के नीचे या पेड़ पर । लेकिन उसकी कम से कम तीन डज़न पत्नियॉ है । तो यह मर्कट वैराग्य, त्याग इस तरह का, इसका कोई मूल्य नहीं है । असली त्याग |

असली त्याग मतलब है तुम्हे इस अंध-कूप जीवन का त्याग करना होगा । और कृष्ण की शरण लेनी होगी, हरिम अाश्रयेत । अगर तुम कृष्ण की शरण लेते हो, तो तुम्हे यह सब 'वाद' को छोडना होगा । अन्यथा, यह संभव नहीं है, तुम इस 'वाद' जीवन में फँस जाअोगे । तो हित्वात्म-पातम गृहम अंध-कूपम वनम गतो यद धरिम अाश्रयेत (श्रीमद भागवतम ७.५.५)| छोडना नहीं... अगर तुम कुछ त्याग करते हो, तो तुम्हे कुछ अपनाना भी होगा । अन्यथा, परेशानी होगी । अपनाअो । यह सिफारिश है: परम दृष्टवा निवर्तन्ते (भ.गी. २.५९) | तुम अपने परिवार का जीवन, सामाजिक जीवन, राजनीतिक जीवन, यह जीवन, वे जीवन, छोड सकते हो जब तुम कृष्ण भावनाभावित जीवन जीते हो । अन्यथा, यह संभव नहीं है । अन्यथा, तुम्हे इसी जीवन को जीना होगा । तुम्हारी स्वतंत्रता का कोई सवाल ही नहीं है । चिंताओं से मुक्ति का कोई सवाल ही नहीं है । यही तरीका है |

तो यहाँ वही बात, कि तत्त्व-दर्शभि:, जो वास्तव में निरपेक्ष सत्य को जानते हैं... अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, यह वेदांत सूत्र में कहा जाता है... जैसे कल, एक लड़का मुझसे पूछ रहा था: "वेदांत क्या है? वेदांत, वेदांत का अर्थ क्या है?" यह बहुत अच्छा है, यह बहुत आसान है । वेद का मतलब है ज्ञान, और अंत का मतलब है परम । तो वेदांत का मतलब है परम ज्ञान । तो परम ज्ञान कृष्ण हैं । कृष्ण कहते हैं वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यो वेदान्त-कृद वेद-विद च अहम (भ.गी. १५.१५) । वे वेदांत के निर्माता हैं और वे वेदांत के ज्ञाता हैं । अगर वे वेदांत के ज्ञाता नही होते, तो वे कैसे वेदांत लिख सकते हैं? दरअसल, वेदांत तत्वज्ञान व्यासदेव द्वारा लिखा गया है, कृष्ण के अवतार । तो वे वेदांत-कृत हैं । और वे वेदांत-वित भी हैं । तो सवाल था कि वेदांत का मतलब अद्वैत-वाद है या द्वैत-वाद । तो यह समझना बहुत आसान है ।

वेदांत का पहला सूत्र: अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, ब्रह्म, निरपेक्ष सत्य के बारे में पूछताछ करना । अब, कहां पूछताछ करें ? अगर तुम पूछताछ करना चाहते हो, तो तुम्हे उस व्यक्ति के पास जाना चाहिए जो जानता है । इसलिए, तुरंत, वेदांत सूत्र के बहुत शुरुआत में, द्वंद्व है, कि हमें पूछताछ करनी चाहिए, और दूसरे को जवाब देना होगा । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । तो वेदांत सूत्र में, कैसे तुम कह सकते हो कि यह अद्वैत-वाद है? यह द्वैत-वाद है, शुरू से ही । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । ब्रह्म क्या है यह पूछताछ करनी चाहिए, और जवाब भी देना चाहिए, या आध्यात्मिक गुरु या शिष्य, यह द्वंद्व है । तुम कैसे कह सकते हैं कि यह अद्वैत-वाद है ? तो हमें इस तरह से अध्ययन करना चाहिए । यहाँ यह कहा जाता है, तत्त्व-दर्शिभि: | तत्त्व-दर्शिभि: का मतलब वेदांत वित, जो वेदांत जानता है । जन्मादि अस्य यत: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | निरपेक्ष सत्य को जानने वाला । जहां से सब कुछ शुरू होता है । जन्मादि अस्य यत: | यही श्रीमद-भागवतम की शुरुआत है ।