HI/Prabhupada 0516 - तुम स्वतंत्रता का जीवन प्राप्त कर सकते हो, यह कहानी या उपन्यास नहीं है



Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968

प्रभुपाद: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि (ब्रह्मसंहिता ५.२९) ।

भक्त: गोविन्दम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि ।

प्रभुपाद: तो हम पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, गोविन्द, की पूजा कर रहे हैं । यही हमारा काम है । गोविंद की पूजा करने का प्रभाव क्या है ? जैसे लोग चंद्र ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं, बहुत छोटा सा प्रयास । अगर वे चंद्र ग्रह पर चले भी गए, उन्हें बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा, क्योंकि वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रमा ग्रह २०० डिग्री नीचे है शून्य बिंदु से । तो हम इस ग्रह की ठंडी जलवायु को सहन नहीं कर सकते, तो हमें क्या लाभ होगा अगर हम चंद्र ग्रह पर चले भी जाएँ ? और चंद्र ग्रह सबसे नजदीकी ग्रह है । अन्य लाखों ग्रह हैं, और वैज्ञानिकों का कहना है कि सर्वोच्च ग्रह तक पहुँचने के लिए, चालीस हज़ार साल लगेंगे । और कौन चालीस हज़ार सालों के लिए जीने वाला है और वापस आने वाला है ?

ये व्यावहारिक कठिनाइयाँ हैं, और इसलिए हमें बद्ध-जीवात्मा कहा जाता है । हमारी गतिविधियाँ बद्ध हैं, अाज़ाद नहीं । लेकिन तुम स्वतंत्रता का जीवन प्राप्त कर सकते हो, असीमित शक्ति, असीमित खुशी, असीमित आनंद की जिंदगी । संभावना है । यह कहानी या उपन्यास नहीं है । हम इस ब्रह्मांड में इतने सारे ग्रहों को देखते हैं । हमारे पास इतने सारे उड़ने वाले वाहन हैं, लेकिन हम सबसे पास वाले से भी संपर्क नहीं कर सकते हैं । हम इतने सीमित हैं । लेकिन अगर हम गोविंद की पूजा करें, तो यह संभव है । तुम कहीं भी जा सकते हो । हमने इन बयानों को लिखा है अपनी छोटी सी पुस्तिका, "अन्य ग्रहों की सुगम यात्रा" में । यह संभव है । एसा मत सोचो कि यह ग्रह ही सब कुछ है । अन्य कई-कई लाखो बहुत अच्छे ग्रह हैं । वहाँ खुशी का धोरण, आनंद का धोरण कई गुना अधिक है यहाँ के आनंद की तुलना में जो हम ले रहे हैं । तो यह कैसे संभव है ?

मैं भगवद गीता के सातवें अध्याय को पढ़ता हूँ, जो गोविंद ने खुद बोला है । भगवद गीता, सातवाँ अध्याय । भगवान कृष्ण कहते हैं,

मयी अासक्त मना: पार्थ
योगम युन्जन् मद-अाश्रय:
असंशयम समग्रम माम
यथा ज्ञास्यसि तच श्रुणु
(भ.गी. ७.१)

अब, यहाँ योगम शब्द भी समझाया गया है । कृष्ण नें किस तरह के योग की सिफारिश की है ? मय अासक्त-मना: | मन को हमेशा कृष्ण से जोडे़ रखना, यह योग प्रणाली । यह कृष्णभावनामृत योग प्रणाली है । वर्तमान समय में, वे अपने मन को ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, कुछ शून्य पर, अवैयक्तिक, अपने स्वयं की कल्पना के अनुसार । वास्तविक प्रक्रिया है मन को किसी चीज़ पर केंद्रित करना । लेकिन उस चीज़ को अगर हम शून्य बनाते हैं, तो उस तरह से हमारे मन को केंद्रित करना बहुत मुश्किल है । यह भगवद गीता के बारहवें अध्याय में भी स्पष्ट किया है कि: क्लेशो अधिकतरस तेषाम अव्यक्तासक्त-चेतसाम (भ.गी. १२.५) ।

जो लोग कुछ अवैयक्तिक और शून्य पर ध्यान करने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी परेशानी अधिक है उन लोगों की तुलना में जो श्री भगवान पर ध्यान कर रहे हैं । यह समझाया गया है । क्यों ? अव्यक्ता हि गतिर दुखं देहवद्भिर अवाप्यते । हम अपने मन (को) कुछ अवैयक्तिक पर केंद्रित नहीं कर सकते हैं । अगर तुम अपने पिता, माँ, दोस्त के बारे में सोचते हो, या जिससे तुम प्यार करते हो, तुम इस तरह की सोच को जारी रख सकते हो एक साथ घंटों के लिए । लेकिन अगर कोई लक्ष्य नहीं है मन में तुम्हारे, तो यह बहुत मुश्किल है । लेकिन लोगों को कुछ शून्य और अवैयक्तिक पर ध्यान केंद्रित करना सिखाया जा रहा है ।