HI/Prabhupada 0521 - मेरी नीति रूप गोस्वामी के पद् चिन्हों को अनुसरण करना है



Lecture on BG 7.1 -- Los Angeles, December 2, 1968

कृष्णभावनामृत को समझने की कोशिश करें । बस इसके अभ्यास द्वारा, किसी न किसी तरह, आप कृष्ण की ओर आकर्षित हो जाइए । किसी तरह। येन केन प्रकारेण, किसी भी तरह । जैसे आप किसी से प्रेम करते हैं, आप किसी भी तरह उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं... यह बहुत मुश्किल नहीं है । हमें रणनीति पता है। यहाँ तक ​​कि एक जानवर, एक जानवर भी, वह चालाकी से अपने लिए चीजें पाना जानता है ।

अस्तित्व के लिए संघर्ष का अर्थ है कि हर कोई अपने उद्देश्य को पाने की कोशिश कर रहा है। कितने सारे, चतुराई से । तो आप भी प्रयास कीजिये, इन भौतिक पहुँच के बाहर की चीज़ों के पीछे पड़ने के बजाय, आप किसी तरह चतुराई से कृष्ण पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश करें । इससे आपका जीवन सफल बन जाएगा । किसी तरह । मयी आसक्त... येन केन प्रकारेण मनः कृष्ण निवेषयेत सर्वे विधि निषेधः स्युर एतयोर एव किंकराः और कृष्णभावनामृत में तो कई तरीके हैं... इस प्रक्रिया में, बहुत सारे तरीके हैं |

मैं तो बस, थोड़ा-थोड़ा करके, एक के बाद एक, ला रहा हूँ, लेकिन जो भारत में इस कृष्णभावनामृत का अभ्यास कर रहे हैं, वहाँ बहुत सारे नियम और कानून हैं । कोई कहता है कि "स्वामीजी बहुत रूढ़िवादी हैं | वह इतने सारे नियम और कानून लाये हैं," पर मैंने एक प्रतिशत भी पेश नहीं किया है । एक प्रतिशत । क्योंकि वो सभी नियम और क़ानून तुम्हारे देश में लाना संभव नहीं है ।

मेरी नीति रूप गोस्वामी के पद्-चिन्हों का अनुसरण करना है । उन्होंने कहा कि सबसे पहले किसी भी तरह कृष्ण से जुड़ जाओ । ये मेरी नीति (अस्पष्ट) । और नियम और कानून, वे उनका पालन बाद में करेंगे । सबसे पहले उन्हें कृष्ण से जुड़ने दें। तो यह योग है। कृष्ण समझाते हैं, मय्यासक्तमनाः पार्थ (भ.गी. ७.१) । तो कृष्ण से आकर्षित होने की कोशिश करो । और तुम क्यों श्रीकृष्ण से आकर्षित नहीं होगे ? कृष्णभावनामृत में तो कई अच्छी बातें हैं । हमारे पास कला है, चित्रकला है, हमारे पास नृत्य है, संगीत है, प्रथम श्रेणी का भोजन है, हमारे पास प्रथम श्रेणी के पोशाक, प्रथम श्रेणी का स्वास्थ्य, सब कुछ प्रथम श्रेणी का है । वह केवल मूर्ख बदमाश होगा जो इन प्रथम श्रेणी की चीजों से आकर्षित नहीं होगा । सब कुछ । और उसी समय ये आसान भी है । इस प्रक्रिया से नहीं जुड़ने का क्या कारण है ? कारण है कि वह एक प्रथम श्रेणी का धूर्त है । बस ।

मैं स्पष्ट रूप से आपको बताता हूँ । किसी को भी आने दो और मेरे साथ बहस करने दो, कि कृष्णभावनामृत को स्वीकार न करके वह एक प्रथम श्रेणी का धूर्त है या नहीं । मैं यह साबित कर दूँगा । तो प्रथम श्रेणी के धूर्त मत बनो । प्रथम श्रेणी के बुद्धिमान आदमी बनो । चैतन्य चरितामृत के लेखक कहते हैं कि कृष्ण येइ भजे सेइ बड़ा चतुर। जो भी व्यक्ति कृष्णभावनामृत को अपनाता है, वह प्रथम श्रेणी का बुद्धिमान आदमी है । तो प्रथम श्रेणी के मूर्ख मत बनो, लेकिन प्रथम श्रेणी के बुद्धिमान आदमी बनो । यह मेरा अनुरोध है । बहुत-बहुत धन्यवाद । (प्रणाम) कोई सवाल ? पिछले दिन तो कई छात्र थे, आज कोई नहीं आया । क्योंकि वे प्रथम श्रेणी के धूर्त रहना चाहते हैं, बस । यह एक तथ्य है | तो जब तक कोई बुद्धिमान न हो, वह कृष्णभावनामृत को अपना नहीं सकता । वे इस तरह से या उस तरह से, धोखा खाना चाहते हैं । यही सत्य है । सादी बात हैै, सरल बात है, और परिणाम बहुत महान है । वे स्वीकार करने के लिए सहमत नहीं होंगे ।