HI/Prabhupada 0645 - जिसने यह आत्मसाक्षातकार कर लिया है, वह हर जगह वृन्दावन में है



Lecture on BG 6.1 -- Los Angeles, February 13, 1969

प्रभुपाद: हाँ, तुम्हारा प्रश्न क्या है?

भक्त: क्या निर्जीव में क्षीरोदकशायी मौजूद हैं, चट्टानों की तरह निर्जीव चीजों में ? प्रभुपाद: हम्म? भक्त: क्षीरोदकशायी विष्णु निर्जीव में मौजूद हैं, पदार्थ में ?

प्रभुपाद: हाँ, हाँ, परमाणु में भी ।

भक्त: उनके चतुर्भुज रूप में...?

प्रभुपाद: अरे हाँ ।

भक्त:... उनका क्या है...?

प्रभुपाद: जहॉ भी वे रहते हैं, वे अपनी निजी सामग्री में रहते हैं । अणोर अणियान महतो महियान । वे सबसे बड़े से बड़े हैं, और वह सबसे छोटे से छोटे हैं । यही विष्णु हैं ।

अंडांतर-स्थ-परमाणु-चयानंतर-स्थम (ब्रह्मसंहिता ५.३५) ।

परमाणु का मतलब है परमाणु | तुम परमाणु को नहीं देख सकते, कितना छोटा है । वे परमाणु के भीतर हैं । वे हर जगह हैं ।

तमाल कृष्ण: प्रभुपाद, आपने हमें बताया कि कृष्ण जहाँ हैं, वही वृन्दावन है । मैं सोच रहा था, अगर कृष्ण हमारे हृदय के भीतर मौजूद है, क्या इसका मतलब यह है कि हमारे हृदय में...

प्रभुपाद: हाँ । जिसने यह अात्मसाक्षातकार कर लिया है, वह वृन्दावन में है हर जगह । अात्मसाक्षात्कारी जीव हमेशा वृन्दावन में रह रहा है । चैतन्य महाप्रभु ने कहा है । जिसने कृष्ण का अात्मसाक्षात्कार कर लिया है, फिर वह हमेशा वृन्दावन में रह रहा है । वह कहीं नहीं है... जैसे कृष्ण या विष्णु हर किसी के हृदय में रह रहे हैं, लेकिन वे कुत्ते के हृदय में भी रह रहे हैं । क्या इसका मतलब है कि वे कुत्ते की प्रवृत्ति रखते हैं ? वे वैकुण्ठ में रह रहे हैं । हालांकि वे कुत्ते के हृदय में रह रहे हैं, लेकिन वे वैकुण्ठ में रह रहे हैं । इसी प्रकार एक भक्त किसी जगह में रह रहा हो जो वृन्दावन से दूर है, लेकिन वह वृन्दावन में रह रहा है । यह एक तथ्य है । हां । (समाप्त)