HI/Prabhupada 0743 - अगर तुम आनंद के अपने कार्यक्रम का निर्माण करते हो तो तुम्हे थप्पड़ मिलेगा



Morning Walk -- April 7, 1975, Mayapur

रामेश्वर:.... लोग आनंद ले रहे हैं, लेकिन अगर वे हमारे दोस्त हैं...

प्रभुपाद: दोनों बाते हैं, आनंद ले रहे हैं और थप्पड़ भी खा रहे हैं । तुम समझ रहे हो ? - जब बच्चे आनंद लेते हैं, कभी कभी पिता थप्पड़ भी मारता हैं । क्यूँ ?

पुष्ट कृष्ण: अवज्ञा । वे खुद के लिए या दूसरों के लिए हानिकारक कुछ करते हैं ।

प्रभुपाद: तो तुम जीवन का, भौतिक जीवन का, आनंद ले सकते हो, पिता के निर्देशन के अनुसार | तो यही भक्ति सेवा है । तो फिर तुम अानन्द लो । अन्यथा तुम्हे थप्पड़ पड़ेगी ।

त्रिविक्रम: तथाकथित आनंद ।

प्रभुपाद: हाँ । अगर तुम आनंद के अपने कार्यक्रम का निर्माण करते हो तो तुम्हे थप्पड़ पड़ेगी । अौर अगर तुम पिता की दिशा के अनुसार आनंद लेते हो, तो तुम्हे आनंद मिलेगा । यह... कृष्ण कहते हैं, "जीवन का आनंद लो । ठीक है । मन मना भव मद भक्तो मद्याजी । शांति से जिओ । मेरे बारे में हमेशा सोचो । मेरी पूजा करो ।" यह हमने निर्धारित किया है, "यहाँ आओ और कृष्ण को याद करो ।" और यह ही आनंद है । तो वे नहीं करना चाहते । वे शराब चाहते हैं । वे अवैध यौन जीवन चाहते हैं । वे मांस चाहते हैं । तो इसलिए उन्हें थप्पड़ मारा जाना चाहिए । असल में यह पूरा ब्रह्मांड हमारे आनंद के लिए बना है, लेकिन उनकी दिशा के अनुसार आनंद लो । तो फिर तुम अानन्द पाअोगे । यही देवता और राक्षस के बीच का अंतर है । दानव आनंद लेना चाहता है, जीने का अपना तरीका निर्माण करके । और देवता, वे राक्षसों की तुलना में बेहतर अानन्द पाते हैं क्योंकि वे भगवान के निर्देशन में हैं ।

जगदीश: क्यों कृष्ण इन जीवोें को ये पापी सुखों को प्रदान करते हैं ? क्यों कृष्ण इन जीवो को ये सारे पापी सुख प्रदान करते हैं ?

प्रभुपाद: साधारण सुख ?

जगदीश: पापी सुख, जैसे नशा करना...

प्रभुपाद: कृष्ण प्रदान नहीं करते हैं । तुम अपने पाप पैदा करते हो । कृष्ण कभी नहीं कहते हैं कि "तुम मांस खाअो," लेकिन तुम कसाईखाने खोलते हो, तो तुम भुगतो ।

ब्रह्मानंद: लेकिन खुशी तो है, इन पापी गतिविधियों से एक खास खुशी मिलती है ।

प्रभुपाद: यह खुशी क्या है? (हंसी)

ब्रह्मानंद: जी, कुछ लोग पसंद करते हैं... वे नशे से सुख प्राप्त करते हैं, वे सुख प्राप्त करते हैं...

प्रभुपाद: हाँ । और इसलिए वे इसके बाद की पीड़ा भुगतते हैं | यही अज्ञान है कि तुम तुरंत कुछ इन्द्रिय संतुष्टि पाते हो, लेकिन परिणाम बहुत खराब होता है । और वह पाप है ।

रामेश्वर: आपने चौथे स्कंध में लिखा है जब हमें बहुत ज्यादा इन्द्रिय सुख मिलता है जवानी में, तो हमें बुढापे में उतना ही रोग होता है ।

प्रभुपाद: हाँ । यहाँ भौतिक जीवन का मतलब है, जैसे ही तुम नियम और विनियमन का उल्लंघन करते हो, तुम्हे भुगतना होगा । इसलिए वर्णाश्रम-धर्म भौतिक जीवन में पूर्णता की शुरुआत है । यह शुरुआत है । चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम (भ.गी. ४.२३) । भगवान नें यह बनाया है । अगर तुम इस वर्णाश्रम-धर्म को अपनाते हो, तो तुम्हारे जीवन की पूर्णता शुरू होती है ।