HI/Prabhupada 0791 - हम प्रभु को संतुष्ट कर सकते हैं केवल प्रेम और भक्ति सेवा द्वारा



Lecture on SB 7.9.11 -- Montreal, August 17, 1968

अब पिछले श्लोक में यह समझाया गया है की न तो कोई भौतिक संपन्नता, और न ही एक योग्य ब्राह्मण बारह उच्च योग्यताअों के साथ प्रभु को संतुष्ट कर सकते हैं केवल ये सम्पन्नताओ से । हम प्रभु को संतुष्ट कर सकते हैं केवल प्रेम और भक्ति सेवा द्वारा । क्यों ? क्या वे नहीं... तो फिर क्यों इतनी संपन्नता बनाई गई है अच्छे मंदिर या चर्च बनाकर, और इतना पैसा खर्च होता है ? क्या यह प्रभु को संतुष्ट नहीं करता है ? क्यों वे इतना पैसा खर्च कर रहे हैं ?

आधुनिक अर्थशास्त्री कहते हैं यह अनुत्पादक निवेश है । क्योंकि अगर तुम एक बहुत बड़े मंदिर का निर्माण करते हो... जैसे भारत में कई मंदिर हैं, विशेष रूप से दक्षिण भारत में, उनमें से प्रत्येक एक किले की तरह है, बहुत बड़ा किला । रंगनाथम में एक मंदिर है, यह कुछ मील बड़ा है, मंदिर । सात द्वार हैं । बहुत बड़ा मंदिर है । कई अन्य मंदिर । इसी तरह, तुम्हारे देश में भी बहुत अच्छे चर्च हैं । मैं पूरे अमेरिका में घूमा हूँ और मैंने बहुत बड़े चर्चों को देखा है । यहाँ भी, मॉन्ट्रियल में, कई बड़े चर्च हैं । तो क्यों वे इतना पैसा खर्च कर रहे हैं, हालांकि आधुनिक अर्थशास्त्री कहेंगे कि यह अनुत्पादक निवेश है ?

तो यह चर्च या मंदिर या मस्जिद की इमारत अति प्राचीन काल से चली आ रही है । लोग अपना धन लगा रहे हैं, मेहनत की कमाई लगा रहे है । क्यों ? बेकार ? अनुत्पादक ? नहीं । वे नहीं जानते । वे जानते नहीं है कि यह कितना उत्पादक है । इसलिए इस नास्तिक सभ्यता में उन्होंने अच्छे सुसज्जित निर्माण करना बंद कर दिया है... वृन्दावन में गोविंदजी का सात मंजिला एक मंदिर है । चार मंज़िल राजनीतिक आधार पर औरंगजेब द्वारा तोड़ दिया गया था । अभी भी, तीन मंज़िल अभी भी हैं । अअगर कोई वहाँजाता है, तो वह उस मंदिर की अद्भुत कारीगरी को देखेगा ।

तो इसका मतलब क्या यह है कि वे राजा या अमीर आदमी, वे सब मूर्ख थे ? केवल वर्तमान समय में हम बहुत बुद्धिमान हैं ? नहीं, वे मूर्ख नहीं हैं । यही प्रहलाद महाराज की प्रार्थना में समझाया गया है । नैवात्मन: प्रभुर अयम निज लाभ पुर्णो । तुम भगवान को संतुष्ट नहीं कर सकते हो केवल एक अच्छे मंदिर के निर्माण से, लेकिन फिर भी वे संतुष्ट हैं । फिर भी, वे संतुष्ट हैं । वे हैं, निज लाभ पूर्णो । वे अपने आप में पूरी तरह से संतुष्ट हैं क्योंकि उन्हें कोई अभाव नहीं है । हम अभाव में हैं । मान लो मैं एक छोटा सा घर किराये पर ले रहा हूँ । अगर कोई कहता है, "स्वामीजी, चलिए । मैं अापके लिए एक बहुत ही अच्छा महलनुमा मंदिर का निर्माण करूँगा । आप यहाँ आइए ।" ओह, मैं बहुत ज्यादा बाध्य हो जाऊँगा । लेकिन कृष्ण, या भगवान एसे हैं क्या ? वे बहुत अच्छे ग्रहों का निर्माण कर सकते हैं, न केवल एक, दो, लेकिन लाखों और अरबों, इतने सारे अच्छे महासागरों और पहाड़ियों और पहाड़ों और जंगलों, और जीवों से भरा । और क्यों वे मेरे द्वारा निर्मित मंदिर के लिए उत्कंठित हैं ? नहीं, यह तथ्य नहीं है ।